Shardiya Navratri 2024: नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा, जानिए पूजा विधि और मंत्र…

नवरात्रि में पहले दिन मां दुर्गा का आह्वान, स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा किया जाता है। इसके बाद मां दुर्गा जी की प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। ऐसे में इस दिन किस विधि से पूजा की जाती है, मंत्र क्या है, क्या भोग लगाएं? इसके बारे में जानना बेहद जरूरी है। तो चलिए, यहां VAMA के ज्योतिषाचार्य डॉ. आचार्य देव से जानते हैं- नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा कैसे करें?

Shardiya Navratri 2024: हिंदू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि का त्योहार आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू हो जाते हैं।

इस वर्ष यह त्योहार 3 अक्टूबर से शुरू होकर 12 अक्टूबर 2024 तक मनाया जाएगा। इस दौरान माता के नौ रूपों की पूजा होती है। हर दिन किसी एक रूप का खास महत्व होता है। ये नौ रुप अलग-अलग सिद्धियां देते हैं। इसमें मां शैलपुत्री से लेकर मां कालरात्रि जैसे नौ रुप हैं।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

पहले दिन मां दुर्गा का आह्वान, स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इसके बाद मां दुर्गा जी की प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। ऐसे में इस दिन किस विधि से पूजा की जाती है, मंत्र क्या है, क्या भोग लगाएं? इसके बारे में जानना बेहद जरूरी है।

तो चलिए, यहां VAMA के ज्योतिषाचार्य डॉ. आचार्य देव से जानते हैं- नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा कैसे करें?

सबसे पहले मां दुर्गा जी का प्रथम स्वरूप को जान लेते हैं।  

मां दुर्गा का पहला रूप शैलपुत्री

शैलपुत्री: मां दुर्गा का पहला रूप

देवी दुर्गा के प्रथम स्वरूप ‘शैलपुत्री’ का अर्थ है, पर्वत की पुत्री। मां शैलपुत्री के माथे पर अर्धचंद्र सुशोभित है। देवी दुर्गा के प्रथम स्वरूप, शैलपुत्री को शांति और सौभाग्य की प्रतीक माना जाता है। मां शैलपुत्री की पूजा, धन, रोजगार और स्वास्थ्य के लिए की जाती है।

कहा जाता है कि मां शैलपुत्री का विधि-विधान से पूजन किया जाए तो व्यक्ति की कुंडली में मौजूद चंद्र दोष दूर हो जाता है। साथ ही घर में सौभाग्य की वृद्धि होती है। 

आइए अब यहां जानते हैं कि माता शैलपुत्री की पूजा विधि और मंत्र क्या है?

मां शैलपुत्री की पूजा विधि (Maa Shailputri Puja Vidhi)

  • शारदीय नवरात्रि 2024 के पहले दिन यानी 3 अक्टूबर को स्नानादि से निवृत्त होकर विधि-विधान से कलश स्थापना करें।
  • कलश के पास ही मां शैलपुत्री की प्रतिमा या उनके चित्र को लाल या सफ़ेद रंग के आसन पर रखें।
  • अब माता शैलपुत्री को कुमकुम और अक्षत का तिलक लगाएं।
  • माता की तस्वीर के पास धूप दिखाएं उसके बाद उनकी विधिवत पूजा करें।
  • मां शैलपुत्री को सफ़ेद पुष्प बेहद ही प्रिय होते हैं, इसलिए उन्हें इस रंग के फूल अवश्य चढ़ाएं।
  • इसके बाद मां के प्रिय भोग को चढ़ाएं।
  • पूजा के समापन के पहले देवी शैलपुत्री की आराधना मंत्रों का पाठ करें।
  • साथ ही दुर्गा स्तोत्र, सप्तशती और चालीसा इत्यादि का पाठ अवश्य करें।
  • पूजा समाप्त हो जाने के बाद मां शैलपुत्री से क्षमा याचना मांगें।
  • उसके बाद मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।

मां शैलपुत्री के लिए भोग (Maa Shailputri Bhog)

मान्यताओं के अनुसार देवी शैलपुत्री को सफेद वस्तुएं बेहद प्रिय हैं। सफेद फूलों और मिठाइयों का भोग लगाने से मां बेहद प्रसन्न होती है। ऐसे में उन्हें सफेद रंग की चीजें चढ़ाना काफी शुभ माना जाता है।

इसदिन आप सफेद बर्फी या दूध से बनी शुद्ध मिठाई का भोग लगा सकते हैं। ऐसा करने से भक्तों को सभी कष्टों और रोगों से मुक्ति मिलती है। 

देवी शैलपुत्री की आराधना मंत्र (Maa Shailputri Puja Mantra)

  • “ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः”
  • या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।
  • वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।

मां शैलपुत्री मंत्र (Maa Shailputri Mantra)

या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।

शिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभंगिनी

पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी

रत्नयुक्त कल्याणकारिणी

वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌

VAMA द्वारा आयोजित ऑनलाइन पूजा में भाग लें (अपने नाम और गोत्र से पूजा संपन्न कराएं)
पूजा का नाममंदिर (स्थान)
ऋण मुक्ति पूजाऋण मुक्तेश्वर महादेव मंदिर (उज्जैन)
शनि साढे़ सातीशनि शिंगणापुर देवस्थानम, महाराष्ट्र
राहु ग्रह शांति पूजाजरकुटिनाथेश्वर महादेव मंदिर, प्रयागराज
माँ बगलामुखी महापूजामाँ बगलामुखी धाम, उज्जैन
पितृ दोष शांति एवं त्रिपिंडी श्राद्ध पूजाधर्मारण्य तीर्थ, गया, बिहार

शैलपुत्री माता की आरती (Maa Shailputri Ki Arati)

शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।

शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी

पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे। 

ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू। 

सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी। 

उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो। 

घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के। 

श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं। 

जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।  

मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो। 

मां शैलपुत्री की कथा (Maa Shailputri Ki Katha)

एक बार राजा प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन के लिए सभी देवी-देवताओं को अपने घर आने का निमंत्रण भेज दिया, लेकिन राजा दक्ष ने भगवान शिव को नहीं बुलाया। 

जबकि उनकी पुत्री देवी सती को लगा था कि उन्हें भी बुलावा भेजा जाएगा। परंतु उनके यहां यज्ञ में आने का निमंत्रण नहीं आया। 

फिर भी देवी सती को उस यज्ञ में जाने का मन हुआ, लेकिन शिवजी ने उन्हें मना कर दिया।

शिवजी ने सती को बोला कि अभी उनके पास यज्ञ में जाने के लिए कोई निमंत्रण नहीं आया है इसलिए वहां जाना ठीक नहीं होगा। 

फिर भी देवी सती ने उनकी बात नहीं मानीं। बार-बार यज्ञ में जाने का आग्रह करने के कारण भगवान शिव ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी।

फिर देवी सती जब अपने पिता राजा दक्ष के यहां पहुंची तो जाकर उन्होंने देखा कि अपने पिता के यहां कोई भी उनसे सम्मान और प्रेम के साथ बात नहीं कर रहा था। 

वहीं देवी सती की अन्य बहनें भी उनका तथा शिवजी का मजाक उड़ा रहीं थीं। स्वयं देवी सती जे पिता प्रजापति दक्ष ने भी सती का अपमान करने का मौका नहीं छोड़ा। 

इस प्रकार वहां मौजूद सभी लोग सती के साथ रूखा व्यवहार कर रहे थे लेकिन जब सती जी की माता ने अपनी बेटी को देखा तो प्यार से गले लगा लिया। परंतु अन्य सभी का ऐसा व्यवहार देखकर सती बहुत ही दुखी हो गईं। तब अपना और अपने पति शिवजी का अपमान उनसे सहन न हुआ।

इसके बाद इस अपमान से अत्यंत दुखी होकर सती ने उसी समय वहां यज्ञ की अग्नि में कूदकर स्वयं के प्राण त्याग दिए। जैसे ही भगवान भोलेनाथ को इस बात की जानकारी हुई तो वे भी बहुत दुखी हो गए। इसके बाद दुखी भगवान शिव क्रोध से आगबबूला होते हुए राजा दक्ष के यहां गए और तुरंत यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। 

मान्यता है कि इसी सती ने फिर हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया।

ये तो थी, मां शैलपुत्री की पूजा विधि और मंत्रों की बात। ऐसे ही सनातन धर्म की अन्य पूजा और मंत्रों की जानकारी के लिए वामा ऐप से जुड़े रहें।