Kumbh Mela 2025: कुंभ मेला 2025 के लिए शाही स्नान की तिथियां, यहां जानें

प्रयागराज में कुंभ मेला कब लगेगा? जानिए, कुंभ का महत्व, शाही स्नान की तारीख, कुंभ स्नान का लाभ और कुंभ से जुड़ी और भी महत्वपूर्ण जानकारी…

Kumbh Mela Prayagraj 2025 (कुंभ मेला पर्व 2025): इस बार कुंभ मेला प्रयागराज में 29 जनवरी 2025 से शुरू हो रहा है। आपको बता दें, कुंभ स्नान अमृत स्नान के समान होता है। इस शाही स्नान से जन्म जन्मातंर के पापों का नाश होता है। जीवन के कष्ट समाप्त होते हैं। कुंभ मेले का महापर्व ग्रहों की चाल पर निर्धारित होता है।

मकरस्थे दिवानाथे वृषराशिगते गुरौ ||

प्रयागे  कुंभ योगो वै माघमासे विधुक्षये ||

अन्य सभी पर्वों की तरह ही कुंभ मेले का पर्व भी ग्रहों की चाल पर आधारित होता है। वृष राशि में गुरु और मकर राशि के सूर्य होने पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।

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पूजा का नाममंदिर (स्थान)
ऋण मुक्ति पूजाऋण मुक्तेश्वर महादेव मंदिर (उज्जैन)
माता कामाख्या महापूजामाता कामाख्या शक्तिपीठ (गुवाहाटी)
शनि साढे़ सातीशनि शिंगणापुर देवस्थानम,महाराष्ट्र
लक्ष्मी कुबेर महायज्ञ और रुद्राभिषेकजागेश्वर कुबेर मंदिर ,अल्मोड़ा, उत्तराखंड
राहु ग्रह शांति पूजाजरकुटिनाथेश्वर महादेव मंदिर ,प्रयागराज
Kumbh Mela

कुंभ का आयोजन कहाँ कहाँ होता है

पौराणिक कथा से ज्ञात होता है, समुद्र मंथन के बाद अमृत कलश को लेकर विवाद हुआ। विवाद में अमृत की कुछ बूंदें धरती पर गिरी। जहाँ अमृत की बूंदें गिरी वहां कुंभ मेले का आयोजन होता है। हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग और नासिक में गिरी। तभी से इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। 

कुंभ का आयोजन कब होता है 

अर्ध-कुंभ का आयोजन हर 6 वर्ष के अंतर पर होता है। परन्तु महा-कुंभ मेले का आयोजन केवल वृष राशि में गुरु होने पर और मकर राशि में सूर्य के होने पर होता है। चार अलग स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है। हर 6 साल में अर्ध-कुंभ का आयोजन होता है, हर स्थान पर होने वाला कुंभ अलग-अलग स्थिती में होता है। परन्तु महा-कुंभ  केवल 12 साल में एक बार ही होता है। जो प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर होता है। 

12 वर्ष में ही क्यों होता कुंभ है 

शास्त्रों से प्रमाण प्राप्त होते हैं, जिनसे पता लगता है। वृष राशि में गुरु के आने से  महा-कुंभ  का आयोजन होता है। अब प्रश्न पैदा होता है की 12 साल में ही क्यों। 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देव गुरु बृहस्पति 1 वर्ष राशि परिवर्तन करते हैं। जिस से गुरु 12 वर्ष में सभी राशियों का भोग कर के दुबारा वृष राशि में आते हैं। इस लिए 12 वर्ष बाद ही महा-कुंभ का आयोजन होता है।

कुंभ से जुड़ी कथा (अमृत कलश)

पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कलश की रक्षा के लिए इंद्र के पुत्र, जयंत अमृत कलश को लेकर देवताओं की अनुमति से बहुत दूर तक भागे। परन्तु राक्षसों से उनका युद्ध हुआ, जो देवताओं के 12 दिव्य दिन और हमारी सौर गणना के अनुसार 1200 वर्षों तक चला।

परन्तु उस कलश की रक्षा करते हुए अमृत की कुछ बूंदें धरती पर भी गिरी और जहाँ ये बूंदें गिरी वहां आज भी महा-कुंभ नाम से मनाया जाता है। 

सूर्य देव ने भी इस कलश की रक्षा की, उसे टूटने से बचाया। गुरु बृहस्पति ने भी अमृत कलश की रक्षा की, चन्द्र देव ने भी राक्षसों से कलश की रक्षा की। यही कारण है इनके योग से ही महा-कुंभ पर्व का आयोजन होता है। 

कुंभ पर्व से जुड़ी तिथियाँ

माना जाता है की पौष मास की एकादशी से माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी। पौष मास की पूर्णिमा से माघ मास की पूर्णिमा तक पूरा सौर या चन्द्र मास मतांतर से संक्रांति तक पूरा महीना सूर्य उदय से पहले किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने का विधान है। 

माघे मासे च य: स्नायान्नैरन्तर्येण भारत! 

पौण्डरीकं फलं तस्य दिवसे दिवसे भवेत् ||

कुंभ का महा पर्व एक महीने तक चलने वाला पर्व है। इस पर्व में अलग-अलग तीर्थ या पवित्र नदियों में स्नान करने का विधान है। इस एक महीने में त्रिवेणी (संगम) में स्नान करने का विशेष महत्व है। त्रिवेणी घाट पर दान और जाप का और भी अधिक फल प्राप्त होता है।

 कुंभ स्नान की प्रमुख तिथियाँ ‎(Kumbh Mela Dates):

 कुंभ पर्व में स्नान कब करें ये बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। 

‎पहला स्नान 10 जनवरी 2025

पौष मास की एकादशी तिथि को कुंभ का पहला स्नान किया जाएगा। इस दिन को पुत्रदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन स्नान और दान पुण्य देने से विशेष पुण्य लाभ होता है।

‎दूसरा स्नान 13 जनवरी 2025

पौष मास की पूर्णिमा तिथि पर सोमवार के दिन दूसरा स्नान किया जाएगा। इस दिन त्रिवेणी संगम में स्नान करने से पुण्य और लाभ मिलता है। मतांतर से एकादशी और पूर्णिमा अलग-अलग तिथि पर स्नान करने का महत्व है। 

‎तीसरा स्नान 14 जनवरी 2025

पौष मास कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मंगलवार के दिन तीसरा स्नान किया जाएगा। इस दिन सूर्य की संक्रांति होने से इस दिन स्नान और दान का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। इस दिन गंगा स्नान के साथ-साथ त्रिवेणी संगम में स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन पहला शाही स्नान होता है।

चौथा स्नान 29 जनवरी 2025

माघ मास की अमावस्या तिथि पर चौथा स्नान होता है। इस अमावस्या तिथि को मौनी अमावस्या तिथि कहा जाता है। इस दिन गुरु वृष में और सूर्य मकर राशि में होते हैं। इस लिए ये दिन बहुत ख़ास हो जाता है। इस दिन दुर्लभ योग बन रहा है। इस दिन त्रिवेणी संगम में स्नान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन दूसरा शाही स्नान होता है। इस दिन कुंभ मेले का प्रमुख शाही स्नान का विशेष दिन होता है।

इस दिन मठाधीशों, शंकराचार्यों एवं सन्त महात्माओं का शाही स्नान होगा।

शास्त्रों के अनुसार इस दिन त्रिवेणी संगम में स्नान करने से जन्म जन्मान्तर के पापों का नाश होता है। विगत कल्प पर्यंत में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है।  

“काश्याः शतगुणं प्रोक्तं गंगा-यामुन-संगमे। 

सहस्त्रगुणिता सापि भवेत् पश्चिम वाहिनी ।।”

“पश्चिमाभिमुखी-गंगा कालिन्द्या सह संगता।

हंति कल्पकृतं पापं सा माघे नृपदुर्लभा ।।”

‎पाचवां स्नान 2 फरवरी 2025

माघ मास की पंचमी तिथि के दिन पांचवा स्नान किया जाता है। ये बसंत पंचमी के दिन किया जाता है। इस दिन कुंभ मेले का तीसरा शाही स्नान किया जाता है। 

‎छठा स्नान 4 फ़रवरी 2025

माघ के महीने की सप्तमी के दिन छठा स्नान होता है। इस दिन रथ सप्तमी मंगलवार के दिन गंगा और त्रिवेणी संगम में स्नान करने का पुण्य फल प्रप्त होता है।

“अरुणोदयवेलायां शुक्ला माघस्य सप्तमी । 

प्रयागे यदि लम्येत कोटि-सूर्यग्रहैः समा ।।”

धर्म शास्त्र के अनुसार सूर्य उदय से पहले सप्तमी तिथि में त्रिवेणी में स्नान कर के पुण्य संचय किया जाता है। 

सातवाँ स्नान 12 फ़रवरी 2025

माघ मास की पूर्णिमा तिथि के दिन सूर्य कुंभ में संक्रांति कर रहे हैं। इस लिए ये दिन और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। इस दिन के पुण्य स्नान को शास्त्रों में विशेष महत्वपूर्ण बताया गया है। इस दिन को माघ माह के स्नान की अंतिम तिथि के रूप में भी जाना जाता है। 

इस दिन के पुण्य स्नान से धर्मनिष्ठ सज्जन स्नान दान कर के पुण्य प्राप्त करते हैं। 

‎आठवां स्नान 26 फ़रवरी 2025

फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन कुंभ पर्व का अंतिम स्नान माना जाता है। इस दिन महाशिवरात्रि का पर्व भी मनाया जाता है। इसी दिन कुंभ मेले का समापन होता है। श्रद्धालु यात्रियों के साथ ही कुंभ मेला भी 12 वर्ष के लिए त्रिवेणी घाट से विदाई लेता है।

इसके अलावा भी इस समय में ऐसी महत्वपूर्ण तिथियाँ आती हैं जिनमे स्नान किया जाता है। जैसे षट्तिला एकादशी जो 25 जनवरी को है। साथ ही भीष्म अष्टमी जो 5 फ़रवरी को है। जया एकादशी जो 8 फरवरी को है। और भीष्म नवमी जो की 9 फ़रवरी को है। इन तिथियों में भी त्रिवेणी संगम पर स्नान करने का विशेष महत्व होता है। 

कुंभ मेले के समय में जो लोग पितृ तर्पण और जप दान आदि करते हैं, उस से उन्हें करोड़ों गुणा फल प्राप्त होता है।

कुंभ मेले के स्थान (त्रिवेणी संगम) ना जा सकें तो क्या करें 

अगर आपकी श्रद्धा है, कुंभ स्नान करने की परन्तु आप किसी कारण से नही जा पा रहे हैं। तो आप अपने आस-पास की किसी भी महा नदी में स्नान कर सकते हैं। अगर आप वो भी नही कर सकते हैं, तो आपको घर में ही अपने स्नान के जल में गंगा जी का पवित्र जल डाल कर स्नान करना चाहिए। घर में ही पितरों का पूजन कर अपने इष्ट का ध्यान और मंत्र जाप करना चाहिए।

ऐसे ही ज्योतिष,त्योहार, और सनातन धर्म की महत्वपूर्ण जानकारी के लिए VAMA ब्लॉग अवश्य पढ़ें।