Hariyali Amavasya 2024: हरियाली अमावस्या पे करें शिव और वनस्पति पूजा
![हरियाली अमावस्या 2024](https://vama.app/blog/wp-content/smush-webp/2024/07/हरियाली-अमावस्या-2024.jpg.webp)
Hariyali Amavasya 2024: हरियाली तीज का नाम तो आपने सुना ही होगा उस से ठीक 3 दिन पहले आती है हरियाली अमावस्य। इस बार ये त्योहार 4 अगस्त 2024 के दिन मनाया जा रहा है।
![](https://vama.app/blog/wp-content/smush-webp/2024/07/हरियाली-अमावस्या-2024-1.jpg.webp)
इस दिन को बहुत धूम धाम से मनाया जाता है। आपको बता दें श्रावन मास की शिवरात्रि के अगले दिन मनाया जाने वाला ये पर्व बहुत महत्वपूर्ण है। माना जाता है इसी दिन के बाद से हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण पर्व शुरू हो जाते हैं, जो होली के त्योहार तक मनाए जाते हैं।
ग्रीम ऋतु के बाद वर्षा ऋतु के आने पर मौनसून के मौसम की शुरुआत के साथ ही इस त्योहार का आगाज होता है। इसी के साथ त्योहारों की बारिश भी शरू हो जाती है।
हरियाली अमावस्या 2024: तिथि और समय (Hariyali Amavasya Tithi)
श्रावन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्य तिथि को हरियाली अमावस्य तिथि के नाम से जाना जाता है, इस साल हरियाली अमावस्या का यह त्योहार 4 अगस्त 2024 के दिन मनाया जाएगा।
हरियाली अमावस्या तिथि प्रारंभ – 3 अगस्त 2024 शनिवार दोपहर 03 बजकर 51 मिनट से।
हरियाली अमावस्या तिथि समाप्त – 04 अगस्त 2024, रविवार दोहपर 04 बजकर 41 मिनट तक।
हरियाली अमावस्या का महत्व (Hariyali Amavasya Mahatva)
श्रावन मास में वर्षा ऋतु में आने वाला ये पर्व उत्साह से मनाया जाता है। श्रावन मास में शिव की पूजा का विशेष महत्व होता है, इस लिए इस दिन शिव जी की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन जिनके पितरों को सद्गति की प्राप्ति नही हुई हैं वो पितृ पूजन कर के शिव की कृपा से उन्हें मोक्ष प्रदान करने के लिए पूजा करते हैं।
भारत देश विविधताओं का देश है। इस लिए ये पर्व अलग-अलग प्रान्तों में अलग अलग नाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस त्योहार को गतारी अमावस्या, आंध्र प्रदेश में इसे चुक्कल अमावस्या और उड़ीसा में इस त्योहार को चितलगी अमावस्या के नाम से मनाया जाता है।
हरियाली अमावस्या के दिन क्या करें (Hariyali Amavasya Pe kya karen)
भारत देश हिन्दू विचारों का देश है। यहाँ परम्परा में हर कार्य भगवान जी की पूजा से शुरू होता है। श्रावन मास महादेव की पूजा का महीना है, इस लिए इस दिन भी सुबह जल्दी उठ कर भगवान की पूजा करने का विशेष महत्व माना जाता है।
वैष्णव इस दिन भगवान विष्णु जी के धाम में जा कर भगवान जी का दर्शन करते हैं, और विष्णु जी की पूजा करते हैं। कहीं-कहीं विष्णु नाम के कीर्तन देखे जाते हैं। लोग राम कृष्ण नाम के भजन गाते हैं और अपने आराध्य देव को मानते हैं।
जैसा इस दिन का नाम है, उसी के अनुसार आज के दिन पौधा लगाने का विधान शास्त्रों में माना जाता है। वर्षा ऋतु में किसी भी पौधे के फलने-फूलने का अच्छा समय होता है। इस दिन पौधे लगाए जाते हैं। जिस से धरती हरी-भरी हो जाती है। इसी कारण इस दिन का नाम हरियाली अमावस्य पड़ा है।
कौनसा वृक्ष लगाने से होती है इच्छा पूरी जाने
- लक्ष्मी प्राप्ति के लिए – तुलसी, आंवला, बिल्वपत्र और केले का पौधा लगाने चाहिएं।
- आरोग्य प्राप्ति के लिए – आंवला, पलाश, ब्राह्मी, अर्जुन, तुलसी और सूरजमुखी के पौधे लगाने चाहिएं।
- सौभाग्य प्रप्ति के लिए – अर्जुन, अशोक, नारियल या वट का पौधे लगाएं।
- संतान प्रप्ति के लिए – बिल्व, नीम, नागकेशर, पीपल या अश्वगन्धा के पौधे लगाएं।
- सुख प्राप्ति केलिए – कदम्ब, नीम या धनी छायादार पौधे लगाएं।
- आनंद प्राप्ति के लिए – पारिजात, मोगरा, रातरानी और गुलाब के पौधे लगाएं।
इस बार हरियाली अमावस्या 04 (रविवार) अगस्त को आ रही है। आप अपने घर पर अपनी इच्छा अनुसार पौधे लगा सकते हैं।
![](https://vama.app/blog/wp-content/smush-webp/2024/07/Untitled-design.jpg.webp)
हरियाली अमावस्या पर रुद्राभिषेक (Hariyali Amavasya par Rudhrabhishek)
हरियाली अमावस्या के दिन रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन रात में बुरी आत्माओं का विशेष प्रभाव होता है। इस दिन तंत्र विद्या का प्रयोग करने के लिए विशेष रात्रि होती है। इस रात्रि में चंद्रमा पृथ्वी से सबसे अधिक दूरी पर होते हैं। जिसके कारण इस रात में तंत्र साधना की जाती है जो विशेष सफलता देती है।
शिव ही भूत प्रेत के स्वामी होने के कारण रुदाभिषेक करने से जीवन की सभी बुरी शक्तियों से छुटकारा मिलता है। जिसके प्रभाव से मनुष्य का जीवन सरल हो जाता है।
हरियाली अमावस्या पूजा विधि और कथा
हिन्दू धर्म के अनुसार सूर्योदय से पहले उठने का विधान है। आज के दिन भी सूर्योदय से पहले उठ कर स्नान इत्यादि से निवृति कर भगवान शिव की पूजा की जाती है।
जैसा इस दिन का नाम है, उसी के अनुसार आज के दिन सुहागन महिलाएं हरे रंग की चूड़ी और हरे वस्त्र धारण करती हैं। आज के दिन सुहागन महिलाएं हरी चूड़ी और हरे वस्त्रों का दान भी करती हैं।
इस दिन सुहागिन महिलाओं के द्वारा अपने सुहाग की लम्बी आयु के लिए व्रत भी रखा जाता है। सबके जीवन में खुशियाँ हों जीवन हरा-भरा हो ऐसी कामना की जाती है। वहीं शादीशुदा पुरुष भी अपने जीवन साथी को हरे रंग की वस्तुओं की भेंट देते हैं।
आपको बता दें अगर आप ये सब कार्य दोपहर से पहले करते हैं, तो आपके लिए बहुत शुभ होता है। क्योंकि इस पूजा और पर्व मानाने का समय दोपहर पहले का ही होता है।
जैसा इस पर्व के नाम से ही ज्ञात होता है। इसका नाम हरियाली के नाम से है तो इस दिन वनस्पति के रूप में वृक्षों की पूजा की जाती है। इस दिन पुरुष और स्त्री मिल कर वृक्षों की परिक्रमा कर के उनकी पूजा करते हैं।
हरियाली अमावस्या को लेकर एक कथा भी प्रचलित है: वैसे तो देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे लेकर कई सारी कथाएं प्रचलित है। लेकिन हम आपको सबसे प्रचलित कथा बता रहे हैं। प्राचीन काल में एक राजा का एक बेटा था। उसकी पत्नी ने एक दिन चोरी से पूजा में चढाई हुई मिठाई खा ली और पूछे जाने पर झूठ बोलते हुए चूहे पर इल्जाम लगा दिया। इस बात को सुनकर चूहे को काफी गुस्सा आया और उसने असली चोर को राजा के सामने लाने का संकल्प लिया।
एक दिन राजा के महल में कुछ अतिथि आए। राजा ने उन्हें सम्मान सहित अतिथि गृह में ठहराया। चूहे ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए राजा की पुत्र-वधू को सबक सिखाने का मन बनाया। चूहे ने राजा की पुत्र-वधू के कुछ कपड़े मेहमानों के कमरे में लाकर रख दिए। जब सुबह राजा की पुत्र-वधू के कपड़े अतिथि गृह में मिले तो तरह-तरह की बाते होने लगी। इस बात का पता चलते ही राजा ने पुत्र-वधू को घर से बाहर निकाल दिया।
घर के पास एक पेड़ था, जिसकी पूजा राजा की पुत्र-वधू सहित कई महिलाएं किया करती थी, और पूजा करती गुडधानी का प्रसाद बांटती थी। एक दिन राजा उधर से गुजर रहे थे, तभी उन्हें पेड़ के पास जलाए हुए दीयों की बात करने की आवाज आई। जब राजा उनके पास गया तो सभी दीयों में तेल था, और जल रहे थे। लेकिन एक दीया बुझा हुआ था। जब अन्य दीयों ने उससे पूछा कि तुम में तेल क्यों नहीं डाला गया, तो उसने कहा कि मैं राजा के घर का दीया हूं।
मुझ में राजा की पुत्र-वधू तेल चढ़ाती थी। लेकिन, राजा की पुत्र-वधू ने एक बार चोरी करके मिठाई खा ली और चूहे का नाम लगा दिया। जब चूहे को गुस्सा आया तो राजा की पुत्र-वधू के कपड़े मेहमान के कमरे में रख दिए थे, तब राजा ने उसे घर से निकाल दिया। तब से यहां पूजा करने कोई नहीं आता। इस बात को सुनकर राजा को अफसोस हुआ और उसने अपनी पुत्र-वधू को वापस बुला लिया और पुत्र-वधू का घर फिर से बस गया।