Ganesh Chalisa: गणेश चालीसा पाठ की विधि और फ़ायदे

गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) का विधि पूर्वक पाठ करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही किसी भी कार्यों में आ रही समस्याएँ दूर होती हैं।

Ganesh Chalisa: देवों के देव गणेश जी प्रथम पूजनीय भगवान हैं। गणेश भगवान बहुत शीघ्र अपने भक्तों पर अनुकंपा करते हैं। गणेश जी की साधना में गणेश चालीसा मुख्य रूप से अपना प्रभाव दिखाती है।

गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) का विधि पूर्वक पाठ करने से मनुष्य को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही किसी भी कार्यों में आ रही समस्याएँ दूर होती हैं।

गणेश भगवान का सिमरन यदि किसी भी कार्य से पहले किया जाए तो वह कार्य निश्चित रूप से सफल होते हैं। गणेश चालीसा का पाठ करने से मनुष्य को जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहती है।

तो आइए, इस ब्लॉग में गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) की सही पाठ विधि और लाभ को जानें।

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पूजा का नाममंदिर (स्थान)
ऋण मुक्ति पूजाऋण मुक्तेश्वर महादेव मंदिर (उज्जैन)
शनि साढे़ सातीशनि शिंगणापुर देवस्थानम,महाराष्ट्र
लक्ष्मी कुबेर महायज्ञ और रुद्राभिषेकजागेश्वर कुबेर मंदिर ,अल्मोड़ा, उत्तराखंड
राहु ग्रह शांति पूजाजरकुटिनाथेश्वर महादेव मंदिर ,प्रयागराज

गणेश चालीसा पाठ विधि (Ganesh Chalisa Path Vidhi)

गणेश जी को देवों में प्रथम स्थान दिया गया है। पंचदेव पूजन में गणेश जी को मुख्य स्थान प्राप्त है। गणेश जी की वंदना करने के लिए किसी विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं है।

  • गणेश जी की पूजा में प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्ति हों। 
  • शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  • शुद्ध आसन बिछाएं। 
  • पूजा की सारी सामग्री एकत्र करें। 
  • गुरु जनों का ध्यान करके गणेश जी का पूजन आरंभ करें। 
  • गणेश जी का ध्यान करें व शुद्ध जल से गणेश जी की प्रतिमा को स्नान करवाएं।
  • सामर्थ्य अनुसार गणेश जी का दूध, दही, शहद, घी, शक्कर से अभिषेक करें। गणेश जी को यथा सामर्थ्य वस्त्र पहनाए। 
  • गणेश जी को चंदन का तिलक लगाएं। 
  • श्रद्धा अनुसार फल, फूल, मिठाई गणेश जी को अर्पण करें। 
  • गणेश जी की पूजा में हरी दूर्वा चढ़ाने का विशेष फल प्राप्त होता है। 
  • गणेश जी को चार लड्डू का भोग लगाएं। 
  • गणेश चालीसा का पाठ (Ganesh Chalisa Path) करें। 
  • गणेश जी के अन्य मंत्रों जाप करें।

गणेश चालीसा पाठ (Ganesh Chalisa Path)

॥ दोहा ॥

जय गणपति सदगुण सदन,

कविवर बदन कृपाल ।

विघ्न हरण मंगल करण,

जय जय गिरिजालाल ॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय गणपति गणराजू ।

मंगल भरण करण शुभः काजू ॥1॥

जै गजबदन सदन सुखदाता ।

विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥2॥

वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।

तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥3॥

राजत मणि मुक्तन उर माला ।

स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥4॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।

मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥5॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।

चरण पादुका मुनि मन राजित ॥6॥

धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।

गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥7॥

ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।

मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥8॥

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।

अति शुची पावन मंगलकारी ॥9॥

एक समय गिरिराज कुमारी ।

पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥10॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।

तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥11॥

अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।

बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥12॥

अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।

मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥13॥

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।

बिना गर्भ धारण यहि काला ॥14॥

गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।

पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥15॥

अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।

पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥16॥

बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।

लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥17॥

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।

नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥18॥

शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।

सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥19॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा ।

देखन भी आये शनि राजा ॥ 20॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।

बालक, देखन चाहत नाहीं ॥21॥

गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।

उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥22॥

कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।

का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥23॥

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।

शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥24॥

पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।

बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥25॥

गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।

सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥26॥

हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।

शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥27॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।

काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥28॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो ।

प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥29॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।

प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥30॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।

पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥31॥

चले षडानन, भरमि भुलाई ।

रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥32॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।

तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥33॥

धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।

नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥34॥

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।

शेष सहसमुख सके न गाई ॥35॥

मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।

करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥36॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।

जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥37॥

अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।

अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥ 38॥ 

श्री गणेश यह चालीसा 

पाठ करै कर ध्यान ॥39॥

नित नव मंगल गृह बसै 

लहे जगत सन्मान ॥40॥

॥ दोहा ॥

सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश ।

पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश ॥

गणेश चालीसा पाठ के फ़ायदे (benefits of Ganesh Chalisa)

गणेश भगवान देवों में सर्वप्रथम पूजे जाने वाले देवता हैं। गणेश जी की कृपा से मनुष्य को जीवन के सभी बंधनों से छुटकारा प्राप्त होता है।

  • गणेश चालीसा का पाठ करने से जीवन की सभी समस्या समाप्त हो जाती हैं।
  • गणेश चालीसा का पाठ करने से संतान की प्राप्ति होती है। 
  • गणेश चालीसा का पाठ करने से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है। 
  • गणेश चालीसा का पाठ करने से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है। 
  • गणेश चालीसा का पाठ करने से मनुष्य को सभी बंधनों से मुक्ति मिलती है। 
  • गणेश भगवान सभी रोगों को शांत करने वाले हैं। 
  • गणेश चालीसा का पाठ करने से किसी भी कार्य में विभिन्न नहीं आता। 
  • गणेश चालीसा का पाठ करने से मनुष्य कीर्ति को प्राप्त करता है।
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