Ahoi ashtami 2023: अहोई अष्टमी व्रत आज, जानिए पूजा विधि और व्रत कथा

संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं अहोई अष्टमी व्रत (ahoi ashtami vrat) रखती हैं। आइए यहां जानें, अहोई अष्टमी व्रत की संपूर्ण जानकारी और व्रत कथा

Ahoi ashtami 2023: अहोई अष्टमी का पर्व कार्तिक मास की अष्टमी तिथि को करवा चौथ के 4 दिन बाद मनाया जाता है। यह व्रत माता अहोई को समर्पित है, जो मां पार्वती जी की स्वरूप हैं।

अहोई अष्टमी का व्रत (ahoi ashtami vrat) महिलाएं अपनी संतान प्राप्ति और उसकी लम्बी उम्र व अच्छे स्वास्थ्य के लिए करती हैं। महिलाएं इस दिन अहोई माता की पूजा करती हैं। साथ ही इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है। 

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अहोई अष्टमी का व्रत (ahoi ashtami vrat) काफी कठोर माना जाता है। इस दिन महिलाएं बिना जल ग्रहण किए व्रत रखती हैं और फिर तारे देखने के बाद ही व्रत तोड़ती हैं।

तो चलिए यहां जानते हैं, इस वर्ष अहोई अष्टमी पर्व (ahoi ashtami vrat) कब मनाया जाएगा और इस व्रत की पूजा विधि और महत्व क्या है?

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अहोई अष्टमी का महत्व

अहोई अष्टमी महिलाओं द्वारा किया जाने वाला विशेष पर्व है। अहोई अष्टमी का व्रत (ahoi ashtami vrat) करने से संतान की शिक्षा, करियर, कारोबार और उसके पारिवारिक जीवन की बाधाएं दूर हो जाती हैं।

मान्यता है कि जिन महिलाओं की संतान दीर्घायु नहीं होती हो या गर्भ में ही नष्ट हो जाते हैं तो इस व्रत को करने से उन्हें संतान प्राप्ति और संतान की दीर्घायु होने का आशीर्वाद मिलता है। 

अहोई अष्टमी 2023 की शुभ मुहूर्त (Ahoi Ashtami 2023 Muhurat)

इस वर्ष अहोई अष्टमी का पर्व 5 नवंबर, 2023 दिन रविवार को पड़ रहा है। पंचांग के अनुसार, अहोई अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त 5 नवंबर को सुबह 12 बजकर 59 मिनट से अगले दिन 6 नवंबर को सुबह 3 बजकर 18 मिनट तक है। 

आपको बता दें, उदया तिथि के कारण अहोई अष्टमी का व्रत (ahoi ashtami vrat) 5 नवंबर को रखा जाएगा।

  • अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त- 5 नवंबर, दिन रविवार 5:27 शाम से 06:45 तक
  • तारों को देखने के लिए शुभ समय- 5 नवंबर, रविवार 5:51 (सायं)

अहोई अष्टमी पूजन की सामग्री (ahoi ashtami puja samagri)

जल से भरा हुआ कलश, पुष्प, धूप-दीप, रोली, दूध-भात, मोती की माला या चांदी के मोती, गेंहू, घर में बने 8 पुड़ी और 8 मालपुए और दक्षिणा।

ahoi ashtami puja samagri

अहोई अष्टमी की पूजा विधि (ahoi ashtami puja vidhi)

  • सबसे पहले प्रातः काल नित्यकर्मों से निवृत होकर स्नान करें।
  • अब पूजा स्थल को साफ करके यहां धूप-दीप जलाएं।
  • अहोई माता का का स्मरण कर पूजा का संकल्प लें। 
  • दिन भर निर्जला व्रत का पालन करें।
  • सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर पूजा आरम्भ करें।
  • पूजा स्थल को साफ करके यहां चौकी की स्थापना करें। (चौकी की स्थापना हमेशा उत्तर-पूर्व दिशा या ईशान कोण में की जाती है।)
  • चौकी को गंगाजल से पवित्र करें। इस पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं।
  • अब इस पर माता अहोई की प्रतिमा स्थापित करें।
  • गेंहू के दानों से चौकी के मध्य में एक ढेर बनाएं, इस पर पानी से भरा एक तांबे का कलश रखें।
  • चौकी पर माता अहोई के चरणों में मोती की माला या चांदी के मोती रखें।
  • अब आचमन कर, चौकी पर धुप-दीप जलाएं और अहोई माता जी को पुष्प चढ़ाएं।
  • अहोई माता को रोली, अक्षत, दूध और भात अर्पित करें।
  • दक्षिणा के साथ 8 पुड़ी, 8 मालपुए एक कटोरी में लेकर चौकी पर रखें।
  • अब हाथ में गेहूं के सात दाने और फूलों की पखुड़ियां लेकर अहोई अष्टमी की व्रत कथा (ahoi ashtami vrat katha) पढ़ें। 
  • कथा पूर्ण होने पर, हाथ में लिए गेहूं के दाने और पुष्प माता के चरणों में अर्पण कर दें
  • इसके बाद मोती की माला को गले में पहन लें। अगर आपने चांदी के मोती पूजा में रखें हैं तो इन्हें एक साफ डोरी या कलावा में पिरोकर गले में पहनें।
  • इसके पश्चात् माता दुर्गा की आरती करें।
  • अब तारों और चन्द्रमा को अर्घ्य देकर इनकी पंचोपचार (हल्दी, कुमकुम, अक्षत, पुष्प और भोग) के द्वारा पूजा करें।
  • इसके बाद जल ग्रहण करके अपने व्रत का पारण करें। 
  • पूजा में रखी गई दक्षिणा अपनी सास या घर की बुजुर्ग महिला को दें। 
  • इसके बाद भोजन ग्रहण करें।

इस विधि से व्रत करने से अहोई माता प्रसन्न होकर संतान प्राप्ति और उनके मंगलमय जीवन का आशीर्वाद देती हैं। 

अहोई अष्टमी की व्रत कथा (ahoi ashtami vrat katha)

किसी भी व्रत में पौराणिक कथाओं का विशेष महत्व होता है। व्रत कथा सुनने से जातक को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 

अतः अहोई अष्टमी का व्रत (ahoi ashtami vrat) करने वाली सभी महिलाओं के व्रत को पूर्ण करने के लिए हम यह व्रत कथा लेकर आए हैं। तो आइए, अहोई अष्टमी की व्रत कथा (ahoi ashtami vrat katha) का पाठ करें। 

प्राचीनकाल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था, उसके 7 लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की पत्नी, घर की लीपा-पोती करने के लिए मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। उसी जगह एक सेह की मांद भी थी। भूल से उस स्त्री के हाथ से कुदाली, सेह के बच्चे को लग गई, जिससे वह सेह का बच्चा उसी क्षण मर गया। यह सब देखकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुःख हुआ, परन्तु अब वह करती भी क्या, तो वह स्त्री पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई।

इस प्रकार कुछ दिन बीतने के बाद, उस स्त्री की पहली संतान की मृत्यु हो गई। दुर्भाग्यपूर्ण फिर दूसरी और तीसरी संतान भी देवलोक सिधार गईं। यह सिलसिला यहीं नहीं रुका, एक वर्ष में उस स्त्री की सातों संतानों की मृत्यु हो गई।

इस प्रकार एक-एक करके अपनी संतानों की मृत्यु को देखकर साहूकार की पत्नी अत्यंत दुखी रहने लगी। अपनी सभी संतानों को खोने का दुख उसके लिए असहनीय था।

एक दिन उसने अपने पड़ोस की स्त्रियों को अपनी व्यथा बताते हुए, रो-रोकर कहा कि, “मैंने जान-बूझकर कोई पाप नहीं किया, एक बार मैं मिट्टी खोदने को खदान में गई थी। मिट्टी खोदने में सहसा मेरी कुदाली से एक सेह का बच्चा मर गया था, तभी से एक वर्ष के भीतर मेरी सातों संतानों की मृत्यु हो गई।”

यह सुनकर उन स्त्रियों ने धैर्य देते हुए कहा कि तुमने जो यह बात हम सबको सुनाकर पश्चाताप किया है इससे तेरा आधा पाप तो नष्ट हो गया। अब तुम माँ पार्वती की शरण में जाओ और अष्टमी के दिन सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी पूजा करो और क्षमा याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा समस्त पाप धुल जाएगा और तुम्हें पहले की तरह ही पुत्रों की प्राप्ति हो जाएगी। 

उन सबकी बात मानकर उस स्त्री ने कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को व्रत किया तथा हर साल व्रत व पूजन करती रही। फिर उसे ईश्वर की कृपा से सात पुत्र प्राप्त हुए। तभी से अहोई अष्टमी की परम्परा चली आ रही है।

अहोई माता की आरती (Ahoi Mata ki Aarti)

॥ आरती अहोई माता की ॥
जय अहोई माता,जय अहोई माता।
तुमको निशदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता॥

जय अहोई माता…॥
ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जग माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता॥

जय अहोई माता…॥
माता रूप निरंजनसुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता॥

जय अहोई माता…॥
तू ही पाताल बसंती,तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशकजगनिधि से त्राता॥

जय अहोई माता…॥
जिस घर थारो वासावाहि में गुण आता।
कर न सके सोई कर लेमन नहीं धड़काता॥

जय अहोई माता…॥
तुम बिन सुख न होवेन कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता॥

जय अहोई माता…॥
शुभ गुण सुंदर युक्ताक्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता॥

जय अहोई माता…॥
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता॥

जय अहोई माता…॥

ये तो थी, अहोई अष्टमी 2023 का महत्व, शुभ मुहूर्त और व्रत कथा (ahoi ashtami 2023) की बात। ऐसे ही सनातन धर्म की अन्य त्योहारों की जानकारी के लिए वामा ऐप (Vama App) से जुड़े रहें। 

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