Vinayaka Chaturthi 2024: विनायक चतुर्थी कब है? जानिए व्रत का महत्व, पूजा विधि और व्रतकथा
Vinayaka Chaturthi 2024: हिंदू कलैंडर में प्रत्येक माह दो चतुर्थी आती है। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) कहा जाता है।
ये दोनों चतुर्थी तिथि भगवान गणेशजी को समर्पित है। इस दिन भगवान गणेश की आराधना करना बेहद मंगलमय माना जाता है। इस दिन भगवान गणेशजी की पूजा और व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
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तो आइए, VAMA के इस ब्लॉग में विनायक चतुर्थी का महत्व, पूजा विधि और व्रत कथा को जानते हैं।
सबसे पहले जानते हैं, विनायक चतुर्थी 2024 में कब-कब है? (vinayak chaturthi 2024 list)
विनायक चतुर्थी कब है? (साल 2024 के लिए विनायक चतुर्थी की सूची)
आगामी विनायक चतुर्थी की तिथि 2024
तिथि | दिनांक |
विनायक चतुर्थी अगस्त 2024 | 08 अगस्त (गुरुवार) |
विनायक चतुर्थी सितम्बर 2024 | 07 सितम्बर (शनिवार) |
विनायक चतुर्थी अक्तूबर 2024 | 07 अक्तूबर (सोमवार) |
विनायक चतुर्थी नवम्बर 2024 | 05 नवम्बर (मंगलवार) |
विनायक चतुर्थी दिसम्बर 2024 | 05 दिसम्बर (गुरुवार) |
विनायक चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त (Vinayak Chaturthi Shubh Muhurat)
विनायक चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त (Vinayak Chaturthi Shubh Muhurat) मध्याह्न काल होता है। शास्त्रों में इस दौरान भगवान गणेश की सच्चे मन से आराधना करने से सभी परेशानियों का निवारण होता है और भगवान गणेशजी का आर्शीवाद प्राप्त होता है।
अतः आप भी विनायक चतुर्थी 2024 सूची (vinayak chaturthi 2024 list) के अनुसार प्रतिमाह शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेशजी का पूजा और व्रत करके उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
विनायक चतुर्थी का महत्व (vinayak chaturthi ka mahatva)
सनातन धर्म में विनायक चतुर्थी का खास महत्व है। प्रतिमाह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को इस व्रत करने से व्यक्ति के सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं।
विनायक चतुर्थी (vinayak chaturthi) के दिन गणपति बप्पा की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के जीवन के सभी दुख खत्म हो जाते हैं। साथ ही घर में सुख-समृद्धि, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ ज्ञान एवं बुद्धि की प्राप्ति भी होती है। साथ ही बड़े से बड़े विघ्न को टाला जा सकता है।
विनायक चतुर्थी की पूजा विधि (vinayak chaturthi puja vidhi)
- विनायक चतुर्थी (vinayak chaturthi) के शुभ दिन पर प्रातः काल स्नानादि करके लाल या पीले वस्त्र धारण कर लें।
- पूजा स्थल पर पीला या लाल कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें।
- उसके बाद उन्हें सिंदूर का तिलक लगाएं।
- अब उन्हें दूर्वा, फल, फूल उनकी चरणों में अर्पित करें।
- इसके बाद उन्हें लड्डूओं का भोग लगाएं।
- फिर दीपक जलाकर भगवान गणेश की आरती करें।
- इसके बाद गणेश जी के मन्त्रों का जाप करें।
- अंत में भगवान गणेश को प्रणाम कर प्रसाद वितरण करें।
- पूरे दिन फलाहारी व्रत रखकर अगले दिन पंचमी तिथि में व्रत का पारण करें।
विनायक चतुर्थी व्रत कथा (Vinayak Chaturthi Vrat Katha)
एक बार की बात है माता पार्वती और भगवान शिव एक नदी के पास बैठे हुए थे, तभी अचानक माता पार्वती ने चौपड़ खेलने की इच्छा ज़ाहिर की। लेकिन समस्या की बात यह थी कि वहाँ उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो खेल में निर्णायक की भूमिका निभा सके।
इस समस्या का समाधान निकालते हुए शिव और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाल दी।
इस समस्या का समाधान निकालते हुए शिव और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाल दी।
मिट्टी से बने बालक को दोनों ने यह आदेश दिया कि तुम खेल को अच्छी तरह से देखना और यह फैसला लेना कि कौन जीता और कौन हारा। खेल शुरू हुआ जिसमें माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात देकर विजयी हो रही थीं।
खेल चलता रहा लेकिन एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया। बालक की इस गलती ने माता पार्वती को बहुत क्रोधित कर दिया जिसकी वजह से गुस्से में आकर बालक को श्राप दे दिया की वह बालक लंगड़ा हो जायेगा और जिसके बाद वो बालक लंगड़ा हो गया।
बालक ने अपनी भूल के लिए माता से बहुत क्षमा मांगी और उसे माफ़ कर देने को कहा। बालक को बार-बार निवेदन करते देख, माता ने कहा कि अब श्राप वापस तो नहीं हो सकता लेकिन वह एक उपाय बता सकती हैं जिससे वह श्राप से मुक्ति पा सकेगा।
माता पार्वती ने उपाय बताते हुए कहा कि संकष्टी वाले दिन पूजा करना और व्रत की विधि का पालन सच्चे मन से करना।
बालक ने व्रत की विधि को जानकर पूरी श्रद्धा पूर्वक और संपूर्ण विधि अनुसार व्रत किया। उसकी सच्ची आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उस बालक को दर्शन दिए। भगवान गणेश ने उस बालक से उसकी इच्छा पूछी।
तभी बालक ने गणेश जी से माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की अपनी इच्छा को ज़ाहिर किया। गणेश जी ने उस बालक की मांग को पूरा कर दिया और उसे शिवलोक पहुँचा दिया, लेकिन जब वह पहुँचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले।
माता पार्वती भगवान शिव से नाराज़ होकर कैलाश छोड़कर कहीं चली गई थी। जब शिवजी ने उस बच्चे को पूछा की तुम यहां कैसे आए तो उसने बताया कि गणेश की पूजा से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है।
यह जानने के बाद भगवान शिव ने भी पार्वती को मनाने के लिए उस व्रत को किया जिसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न होकर वापस कैलाश लौट आती हैं।
ये तो थी, विनायक चतुर्थी व्रत का महत्व, पूजा विधि और व्रत कथा की जानकारी। सनातन धर्म की ऐसे ही अन्य व्रत अनुष्ठान और व्रत कथा को जानने के लिए VAMA APP से जुड़े रहें।
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