Chhath Puja 2023: छठ पूजा विधि और इसका महत्व
Chhath Puja 2023: छठ पूजा लोक आस्था का एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस पर्व में भगवान सूर्य और छठी माता की उपासना की जाती है। मान्यता है कि छठी मैया निःसंतानों को संतान प्रदान करती हैं। छठ पर्व (Chhath Puja) को खुले आकाश में नदियों, जलाशयों के किनारे घाट पर किए जाने का विधान है।
यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष छठ पर्व 19 नवंबर, दिन रविवार को पड़ रहा है। मान्यता है कि छठ पूजा व्रत (Chhath puja vrat) करने से घर में सुख-समृद्धि और आती है।
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तो चलिए VAMA के इस ब्लॉग में जानते हैं, छठ पूजा की संपूर्ण विधि और महत्व क्या है?
सबसे पहले छठ पूजा के महत्व को जान लेते हैं।
छठ पूजा का महत्व (Importance of Chhath Puja)
छठ पूजा का महत्व वैदिक काल से चला आ रहा है। इस पर्व में शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। संपूर्ण विधि-विधान और पवित्रता के साथ छठ पूजा (Chhath Puja) करने से रोग-दोष दूर होते हैं, संपन्नता आती है और पति की उम्र लंबी होती है। साथ ही संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
छठ पर्व में महिलाएं 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं और संतान की सुख, समृद्धि और दीर्घायु की कामना के लिए छठी मैया की पूजा करती हैं।
आइए, अब जानते हैं छठ पर्व के प्रत्येक दिन का महत्व और पूजा विधि
छठ पूजा विधि (Chhath Puja Vidhi)
आपको बता दें, छठ महापर्व चार दिनों तक चलता है। जिसकी शुरुआत दिवाली के बाद भाई दूज के तीसरे दिन नहाय खाय से होती है और चौथे यानी अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद समाप्त होती है।
1. प्रथम दिन – नहाय खाय का महत्व और पूजा विधि
छठ पर्व के पहले दिन को ‘नहाय खाय’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन प्रातः काल में घर की साफ सफाई की जाती है। इस दिन सूर्योदय के पहले व्रती नदी में स्नान के बाद नए वस्त्र धारण कर शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन व्रती के भोजन ग्रहण करने के बाद ही घर के बाकी सदस्य भोजन ग्रहण करने का विधान है।
- नहाय खाय की तिथि- 17 नवंबर, 2023, दिन- शुक्रवार
- सूर्योदय 06:45,
- सूर्यास्त शाम 05:27
2. दूसरा दिन – खरना का महत्व और पूजा विधि
छठ पर्व के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस दिन प्रातः काल स्वच्छ होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद पूरे दिन निर्जला उपवास किया जाता है। संध्या के समय घर के बाकी सदस्यों के साथ गुड़ से बनी चावल की खीर का सेवन किया जाता है।
- खरना की तिथि- 18 नवंबर, 2023, दिन- शनिवार
- सूर्योदय सुबह 06:46 बजे
- सूर्यास्त शाम 05:26 बजे
3. तीसरा दिन – छठ, संध्या अर्घ्य का महत्व और पूजा विधि
छठ पर्व के तीसरे दिन का बड़ा महत्व है। इस दिन शाम को बांस की टोकरी में पूजा की सम्पूर्ण सामग्री को लेकर घाट पर जाते हैं, इसके बाद अर्घ्य का सूप सजाया जाता है। घाट पर पहुंचने के बाद व्रत करने वाली महिलाएं सूर्य को अर्घ्य देती हैं।
अर्घ्य के समय सूर्य देव को जल और दूध चढ़ाया जाता है और प्रसाद से भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है। अर्घ्य देने के बाद रात्रि में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है।
- संध्या अर्घ्य की तिथि- 19 नवंबर, 2023, दिन- रविवार
- सूर्यास्त शाम 05:26 बजे
छठ पूजा के दिन अर्घ्य देने की विधि
- एक बांस के सूप में केला एवं अन्य फल, प्रसाद, ईख आदि रखकर उसे पीले वस्त्र से ढक दें।
- इसके बाद दीप जलाकर सूप में रखें और सूप को दोनों हाथों में लेकर अस्त होते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दें।
- अर्घ्य देते समय सूर्य मंत्र (ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकम्पया मां भक्त्या गृहाणार्घ्य दिवाकर:) का जाप करें।
4. चौथा दिन – उषा अर्घ्य का महत्व और पूजा विधि
छठ पर्व के अंतिम दिन सप्तमी की प्रातः काल में सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। इसके बाद छठ माता से अपनी संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति का आशीर्वाद मांगा जाता है।
पूजा के बाद व्रत करने वाली महिलाएं कच्चे दूध का शरबत और थोड़ा प्रसाद ग्रहण करके व्रत को पूरा करती हैं, जिसे पारण कहा जाता है।
आइए, अब छठ पूजा की सम्पूर्ण पूजा सामग्री को जान लेते हैं।
छठ पूजा पूजा सामग्री (Chhath puja samagri)
- बांस या पीतल का सूप
- दूध और जल के लिए गिलास
- चम्मच
- सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तांबे का कलश
- बड़ी टोकरी
- थाली
- दीपक
- खाजा
- गुजिया
- गुड़
- दूध से बनी मिठाइयां
- लड्डू
- दूध
- जल
- शहद
- गंगाजल
- चंदन
- चावल
- सिंदूर
- धुपबत्ती
- कुमकुम
- कपूर
- मिट्टी के दीए
- तेल और बाती
- नारियल
- ऋतुफल
- कलावा
- सुपारी
- फूल और माला
- शरीफा
- नाशपाती
- बड़ा वाला नींबू (डाभ)
- सिंघाड़ा
- सुथनी
- शकरकंदी
- मूली
- बैंगन
- हल्दी
- अदरक का पौधा
- पत्ते लगे हुए ईख
- केले
- गेहूं
- चावल
- आटा इत्यादि
ये छठ पर्व के लिए कुछ सामान्य पूजन सामग्री हैं। इसके अलावा आप अपने क्षेत्र की परंपरा और क्षमतानुसार भी पूजा में अन्य चीजें शामिल कर सकते हैं।
आइए अब छठ पूजा की व्रत कथा को जान लेते हैं।
छठ पूजा व्रत कथा (Chhat Puja Vrat Katha)
कहा जाता है कि छठ पूजा (Chhat Puja) की शुरूआत रामायण काल में हुई थी। रावण का वध कर जब भगवान श्री राम और माता सीता वनवास काटकर अयोध्या लौटे तब उन्होंने इस उपवास का पालन किया था।
एक अन्य कथा महाभारत काल से भी जुड़ी हुई है। मान्यता है कि कर्ण सूर्यदेव के पुत्र होने के साथ उनके परम भक्त भी थे और वह पानी में कई घंटों तक खड़े रहकर उनको अर्घ्य देते थे और उनका पूजन करते थे।
पांडवों के अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए द्रौपदी भी सूर्यदेव की उपासना किया करती थी। कहते हैं कि उनकी इस श्रद्धा ने पांडवों को उनका राजपाट वापस दिलाने में मदद की थी।
ये तो थी, छठ पूजा की संपूर्ण विधि, कथा और पूजन सामाग्री की जानकारी। ऐसे ही सनातन धर्म की अन्य त्योहार और व्रतकथा जानने के लिए वामा ऐप से जुड़े रहें।