Maa Durga Aarti: मां दुर्गा आरती का करें पाठ, होगी हर मनोकामना पूर्ण

मां दुर्गा जी की आरती (Maa Durga Aarti) को सच्चे भाव से करने पर भक्तों को अपने अंदर एक विशेष ऊर्जा का एहसास होता है।

Maa Durga Aarti: मां दुर्गा को शक्ति रूप में पूजा जाता है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार मां दुर्गा की उत्पत्ति सभी देवताओं से निकलने वाली अलौकिक किरण से उस समय हुई थी, जब दानवी शक्ति शुंभ और निशुंभ नामक दो भाइयों ने तीनों लोकों में अपने नरसंहार से हाहाकार मचा रखा था। 

उन आसुरी शक्तियों के सामने त्रिदेव कहे जाने वाले विष्णु जी, ब्रह्माजी और शंकर जी भी असहाय हो चुके थे। उस समय त्रिदेव और इंद्र देव सहित सभी देवताओं ने मिलकर एक ऐसी शक्ति का आह्वान किया, जो उन दुराचारी दैत्यों का विनाश कर सभी को उनसे मुक्ति दिला सके। उस समय सभी देवों की प्रार्थना की शक्ति से मां भवानी की उत्पत्ति हुई थी। 

उस समय जिस प्रकार मां दुर्गा ने उन दैत्यों का संहार कर सभी को उनके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। उसी प्रकार मां भवानी अपने सच्चे भक्तों के हर कष्ट हर लेती है। 

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मां दुर्गा जी की आरती (Maa Durga ji ki Aarti) में उनके स्वरूप का संक्षेप में वर्णन है।

मां दुर्गा जी की जय अम्बे गौरी आरती (om jai ambe gauri) को सच्चे भाव और अर्थ समझकर करने पर मनुष्य को अपने अंदर एक विशेष ऊर्जा का प्रवाह होता हुआ एहसास होता है।

अतः मां भवानी की आरती हर व्यक्ति को नियमित रूप से करनी चाहिए। इससे मनुष्य में जीवन में आने वाली हर कठिनाई और कष्टों से निपटने की आंतरिक शक्ति मिलती है। परंतु भक्त यह ख्याल रखें कि मां दुर्गा जी की आरती (Maa Durga ji ki Aarti) शुद्ध उच्चारण के साथ सच्चे भाव से ही करना चाहिए। 

मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन मां दुर्गा की आरती (Maa Durga ji ki Aarti) जरूर करें।

मां दुर्गा की आरती : जय अम्बे गौरी

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।

तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥

जय अम्बे गौरी

माँग सिन्दूर विराजत, टीको मृगमद को।

उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको॥

जय अम्बे गौरी

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।

रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै॥

जय अम्बे गौरी

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।

सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥

जय अम्बे गौरी

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।

कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥

जय अम्बे गौरी

शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती।

धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती॥

जय अम्बे गौरी

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।

मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥

जय अम्बे गौरी

ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी।

आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥

जय अम्बे गौरी

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरूँ।

बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु॥

जय अम्बे गौरी

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।

भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥

जय अम्बे गौरी

भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।

मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी॥

जय अम्बे गौरी

कन्चन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।

श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥

जय अम्बे गौरी

श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै।

कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै॥

जय अम्बे गौरी

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