शमी का वृक्ष क्यों है पवित्र? जानिए, दशहरा पर शमी पूजा का महत्व 

Shami Tree: भारत में प्रकृति उपासना का इतिहास रहा है। यहाँ नदियों और वृक्षों के पूजन का विशेष महत्व है। गंगा, जमुना, सरस्वती यहाँ पूजनीय हैं तो पीपल, वट और तुलसी जैसे वानस्पतिक देवताओं को भी विशेष सम्मान प्राप्त है। इसी क्रम में सनातन धर्म की ये परंपरा रही है कि दशहरा के दिन शमी का वृक्ष पूजा जाता है। इसके पत्तों का स्वर्ण मुद्राओं के प्रतीक के रूप में आदान-प्रदान किया जाता है। शमी वृक्ष की पूजा से आप भी विशेष लाभ ले सकते हैं, क्योंकि ये पेड़ वास्तु की दृष्टि से भी बहुत पवित्र माना गया है। 

आइए, इसके पौराणिक महत्व और पूजा विधि के बारे में विस्तार से जानते हैं। 

शमी का वृक्ष कैसा होता है (How to identify Shami Tree)

शमी का वृक्ष पहचानना थोड़ा मुश्किल होता है, क्योंकि इसका पौधा अन्य पेड़ों जैसे गुलमोहर, खैर, कीकर और छुईमुई की तरह दिखाई देता है। शमी के पौधे की सबसे बड़ी पहचान ये होती है कि तने से शाखाएँ निकलने वाले स्थान पर भी इसमें पत्ते लगे होते हैं और इसपर केवल पीले रंग के फूल आते हैं। शमी को लोक भाषाओं में खेजड़ी और वीरतरु के नाम से भी जाना जाता है। 

शमी वृक्ष का इतिहास (History of Shami Tree in Hindi) 

शमी के पेड़ का उल्लेख सनातन धर्म के दोनों महाग्रन्थों में मिलता है। रामायण के अनुसार भगवान राम ने रावण से युद्ध करने से पहले शमी की पूजा की थी और महाभारत में अज्ञातवास जाने से पहले पांडवों ने अपने शस्त्र शमी वृक्ष में ही छुपाए थे।शमी को महत्व देने के पीछे एक और पौराणिक कथा प्रचलित है- 

कौत्स ऋषि, महर्षि वर्तन्तु के शिष्य थे। महर्षि वर्तन्तु ने ही उनका लालन-पालन किया और शिक्षा भी दी। शिक्षा पूरी होने के बाद जब कौत्स ऋषि ने महर्षि वर्तन्तु से गुरु दक्षिणा के बारे में पूछा तो उन्होंने चौदह विद्याओं के बदले में चौदह हजार सहस्त्र स्वर्ण मुद्राओं की मांग की। कौत्स ऋषि असमंजस में पड़ गए, उन्होंने तत्कालीन अयोध्या नरेश राजा रघु से सहायता लेने का निर्णय लिया। राजा रघु अपनी दानशीलता के लिए बहुत लोकप्रिय थे, लेकिन उन्होंने कौत्स ऋषि के आने से ठीक पहले एक यज्ञ में अपनी अधिकतर सम्पति दान कर दी थी, परिणामस्वरूप, उनका राजकोष खाली हो चुका था।

राजा रघु, कौत्स ऋषि को निराश नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने कहा कि हम स्वर्ग पर आक्रमण करके इंद्र का खजाना ले आते हैं, जिससे हमारा कोष दोबारा भर जाएगा। जब इंद्र ने ये बात सुनी तो उन्होनें अपने कोषाध्यक्ष कुबेर को राजा रघु के राज्य में स्वर्ण की वर्षा करने का आदेश दिया।

कुबेर जी ने अगले ही दिन राजा रघु के राज्य में शमी वृक्ष के माध्यम से सोने की मुद्राओं की वर्षा की जिससे उनका भंडार दोबारा भर गया। इस तरह से वो कौत्स ऋषि को गुरुदक्षिणा देने में मदद कर पाए। जिस दिन स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा हुई उस दिन आश्विन शुक्ल दशमी थी, जिसे बाद में विजयादशमी के रूप में मनाया जाने लगा। इसीलिए विजयादशमी (दशहरा) के दिन शमी वृक्ष की पूजा की जाती है। 

दशहरा पर शमी की पूजा कैसे करें (Shami Tree Puja Vidhi) 

दशहरा के दिन प्रदोषकाल में आप शमी वृक्ष को गंगाजल से सींचें और उसके नीचे कोई शस्त्र रखें। शमी के वृक्ष को धूप, दीप, पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें। अब हाथ जोड़कर इस मन्त्र का जाप करें- 

“शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी।

अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।

करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया।

तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।”

शमी वृक्ष का महत्व (Importance of Shami Tree in Hindi)

शमी का महत्व सिर्फ दशहरा पर्व तक सीमित नहीं है, इसे वास्तु और शनि दोष निवारण में भी बहुत उपयोगी माना गया है। घर से निगेटिविटी को दूर रखने के लिए आपको घर की दक्षिण दिशा में शमी का पौधा लगाना चाहिए। प्रत्येक शनिवार को शमी के पेड़ का पूजन करना चाहिए और इसके नीचे सरसों का दीपक लगाना चाहिए। ऐसा करने से आप हमेशा विपत्तियों से दूर रहेंगें और आपकी आर्थिक स्थिति में निरंतर सुधार होगा। 

आपने इस ब्लॉग में जाना कि दशहरा के दिन शमी का वृक्ष क्यों पूजा जाता है और इसके पीछे क्या पौराणिक मान्यताएं हैं। शमी, भगवान राम का पूजनीय वृक्ष है और इसके माध्यम से शनिदेव की कृपा भी मिलती है तो इस दशहरा से पहले आप इस पवित्र वृक्ष को अपने घर में स्थापित कर सकते हैं और इससे आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।