Navgrah Shanti ke Upay: नव ग्रह शांति के लिए करें इन मंत्रों का पाठ, सभी ग्रहों का मिलेगा आशीर्वाद…
Navgrah Shanti ke Upay: सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु इन्हें ज्योतिष शास्त्र में नवग्रह कहा गया है। इन सभी ग्रहों का प्रभाव अलग-अलग है। इन सभी ग्रहों के प्रभाव के अनुसार ही उनके उपाय किए जाते हैं।
जब किसी ग्रह की अनुकूलता प्राप्त न हो रही हो, तो जीवन में उसके अभाव से कष्टों की प्राप्ति होती है। यदि हम उन ग्रहों के प्रभाव को बढ़ा लें, तो हमें उसका अनुकूल प्रभाव प्राप्त होने लगता है।
यदि किसी ग्रह के प्रभाव की अधिकता हो जाती है, तो उसके कारण भी जीवन में कष्टों का सामना करना पड़ता है। यदि हम प्रतिकूल ग्रहों के लिए स्थिति अनुसार कुछ उपाय करें तो उन ग्रहों का शुभ फल प्राप्त किया जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों के उपाय के लिए मंत्र, मणि और औषधि के रूप में तीन प्रकार के उपाय बताए गए हैं।
किसी भी ग्रह के अनुकूल फल की प्राप्ति के लिए सबसे पहले उस ग्रह के निमित्त जप करने का विधान है। जाप करना एक ऐसा विधान है, जिससे प्रतिकूल ग्रह का प्रभाव बहुत जल्दी अनुकूलता में बदलता दिखाई देता है। मंत्र के विषय में कहा गया है, कि जो मन की समस्या का समाधान करने वाला है वो ही मंत्र होता है।
तो आइए प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य डॉ आचार्य देव से जानते हैं, नवग्रहों से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां और नवग्रह शांति के उपाय (Navgrah Shanti ke Upay)
नवग्रह शांति के उपाय (Navgrah Shanti ke Upay)
सभी ग्रहों की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मंत्र दे रहे हैं। इस मंत्र का जाप बिना किसी कारण भी सुबह नियमित रूप से करना चाहिए।
“ॐ ब्रह्मामुरारि त्रिपुरान्तकारी भानु: शशि भूमिसुतो बुध च।
गुरु च शुक्र: शनि राहु केतव: सर्वेग्रहा: शान्ति करा: भवन्तु।।”
ज्योतिष शास्त्र में कुंडली के अनुसार ग्रहों के उपाय अलग-अलग किए जाते हैं। कुंडली के अनुसार जो ग्रह अनुकूल नही होता, उसका जाप किया जाता है। समय और सुविधा के अनुसार हर ग्रह के 3 प्रकार के मंत्र दिए जा रहे हैं…
नव ग्रह मंत्र (Nav Grah Mantra)
सूर्य ग्रह के मंत्र:-
सूर्य का वैदिक मंत्र
ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।।
सूर्य का तांत्रिक मंत्र
ॐ घृणि सूर्याय नमः।।
सूर्य का बीज मंत्र
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।।
चंद्र ग्रह के मंत्र:-
चंद्र का वैदिक मंत्र
ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते क्षत्राय महते
ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय।
इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा
सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा।।
चंद्र का तांत्रिक मंत्र
ॐ सों सोमाय नमः।।
चंद्रमा का बीज मंत्र
ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः।।
मंगल ग्रह के मंत्र:-
मंगल का वैदिक मंत्र
ॐ अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्।
अपां रेतां सि जिन्वति।।
मंगल का तांत्रिक मंत्र
ॐ अं अंङ्गारकाय नम:।।
मंगल का बीज मंत्र
ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः।।
बुध ग्रह के मंत्र:-
बुध का वैदिक मंत्र
ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेथामयं च।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत।।
बुध का तांत्रिक मंत्र
ॐ बुं बुधाय नमः।
बुध का बीज मंत्र
ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः।
गुरु ग्रह के मंत्र:-
गुरु का वैदिक मंत्र
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।
गुरु का तांत्रिक मंत्र
ॐ बृं बृहस्पतये नमः।।
बृहस्पति का बीज मंत्र
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः।।
शुक्र ग्रह के मंत्र:-
शुक्र का वैदिक मंत्र
ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।।
शुक्र का तांत्रिक मंत्र
ॐ शुं शुक्राय नमः।।
शुक्र का बीज मंत्र
ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः।।
शनि ग्रह के मंत्र:-
शनि का वैदिक मंत्र
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्त्रवन्तु न:।।
शनि का तांत्रिक मंत्र
ॐ शं शनैश्चराय नमः।।
शनि का बीज मंत्र
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।
राहु ग्रह के मंत्र:-
राहु का वैदिक मंत्र
ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृध: सखा।
कया शचिष्ठया वृता।।
राहु का तांत्रिक मंत्र
ॐ रां राहवे नमः।।
राहु का बीज मंत्र
ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः।।
केतु ग्रह के मंत्र:-
केतु का वैदिक मंत्र
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे।
सुमुषद्भिरजायथा:।।
केतु का तांत्रिक मंत्र
ॐ कें केतवे नमः।।
केतु का बीज मंत्र
ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः।।
ग्रह और रत्न ( Grah aur Ratan)
ग्रहों से निकलने वाली किरणों के रंग के अनुसार ही ग्रहों के लिए रत्न धारण करने का विधान है। ज्योतिष शास्त्र में जैसी ग्रहों की स्थित्ति होती है, उसी अनुसार रत्न धारण करने का उपाय किया जाता है। अगर किसी ग्रह की शुभ स्थिति हो परन्तु उसका शुभ फल प्राप्त ना हो रहा हो, तो उसके निमित्त रत्न धारण करने का विधान है।
रत्नों का विषय ज्योतिष शास्त्र में विस्तृत रूप से प्राप्त होता है। जब हम किसी ग्रह के प्रभाव के अभाव में होते हैं, तो उसके प्रभाव को अपने शरीर से निकलने वाली किरणों के माध्यम से बढ़कर उसका अनुकूल फल प्राप्त करते हैं। ऐसी स्थिति में ज्योतिष शास्त्र में रत्न धारण करने का उपाय किया गया है। आईए जानते हैं किस ग्रह के लिए कौन सा रत्न धारण करें…
नव ग्रहों के रत्न:-
सूर्य का रत्न :- माणिक्य
चंद्रमा का रत्न :- मोती
मंगल का रत्न :- मूंगा
बुध का रत्न :- पन्ना
गुरु का रत्न :- पुखराज
शुक्र का रत्न :- हीरा
शनि का रत्न :- नीलम
राहू का रत्न :- गोमेद
केतु का रत्न :- लहसुनिया
नवग्रहों के उपरत्न:-
सूर्य के उपरत्न:– सूर्यकांत मणि, तामड़ा
चंद्रमा के उपरत्न:- चंद्रकांत मणि
मंगल के उपरत्न:– लाल अकीक, संघ मूंगी, रतुआ
बुध के उपरत्न:- मरगज, जबरजंद
गुरु के उपरत्न:- सुनेला या सोनल
शुक्र के उपरत्न:- कुरंगी, तुरमली, दतला
शनि के उपरत्न:– काला अकीक, जमुनिया नीली, लाजवर्त
राहू के उपरत्न:- भारतीय गोमेद, साफी, तुरसा
केतु के उपरत्न:- फिरोजा, संघीय, गोदंत
नव ग्रहों की औषधि
आयुर्वेद के शास्त्रों से हमें प्राप्त होता है कि सभी ग्रहों का प्रभाव अलग-अलग प्रकार की औषधि पर होता है। जिस प्रकार के ग्रह का जैसी औषधि पर प्रभाव होता है उस औषधि को ग्रहण या धारण करने से उसके प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है। आइए जानते हैं कौन से ग्रह के लिए कौन सी औषधि धारण करें या खाएं…
सूर्य की औषधि
बेल की जड़, लाल फूल, मुलहठी, केसर व देवदारू
चंद्रमा की औषधि
खिरनी की जड़, सिप्पी, सफेद चंदन और पंचगव्य
मंगल की औषधि
अनंत मूल, देवदारू, लाल चंदन और गुड़हल के पुष्प
बुद्ध की औषधि
विधारा की जड़ अच्छे से कूट कर, गाय का थोड़ा सा गोबर, कमल गट्टा, छोटा सा कोई हरा फल, शहद और थोड़े से चावल
गुरु की औषधि
हल्दी, चमेली, शहद, मुलेठी और गिलोय
शुक्र की औषधि
इलायची, सफेद कमल, मेंसिंल और केसर
शनि की औषधि
काली उड़द, काले तिल, लौंग और कोई भी सुगंध वाला फूल
राहु की औषधि
तिल, नागबेल, लोबान या कस्तूरी, तिल, मोती, गजमद, लोध्र फूल
केतु की औषधि
लोबान, सरसों, देवदारू
नवग्रह चालीसा (Navgrah Chalisa)
॥ दोहा ॥
श्री गणपति गुरुपद कमल,
प्रेम सहित सिरनाय ।
नवग्रह चालीसा कहत,
शारद होत सहाय ॥
जय जय रवि शशि सोम बुध,
जय गुरु भृगु शनि राज।
जयति राहु अरु केतु ग्रह,
करहुं अनुग्रह आज ॥
॥ चौपाई ॥
॥ श्री सूर्य स्तुति ॥
प्रथमहि रवि कहं नावौं माथा,
करहुं कृपा जनि जानि अनाथा ।
हे आदित्य दिवाकर भानू,
मैं मति मन्द महा अज्ञानू ।
अब निज जन कहं हरहु कलेषा,
दिनकर द्वादश रूप दिनेशा ।
नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर,
अर्क मित्र अघ मोघ क्षमाकर ।
॥ श्री चन्द्र स्तुति ॥
शशि मयंक रजनीपति स्वामी,
चन्द्र कलानिधि नमो नमामि ।
राकापति हिमांशु राकेशा,
प्रणवत जन तन हरहुं कलेशा ।
सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकर,
शीत रश्मि औषधि निशाकर ।
तुम्हीं शोभित सुन्दर भाल महेशा,
शरण शरण जन हरहुं कलेशा ।
॥ श्री मंगल स्तुति ॥
जय जय जय मंगल सुखदाता,
लोहित भौमादिक विख्याता ।
अंगारक कुज रुज ऋणहारी,
करहुं दया यही विनय हमारी ।
हे महिसुत छितिसुत सुखराशी,
लोहितांग जय जन अघनाशी ।
अगम अमंगल अब हर लीजै,
सकल मनोरथ पूरण कीजै ।
॥ श्री बुध स्तुति ॥
जय शशि नन्दन बुध महाराजा,
करहु सकल जन कहं शुभ काजा ।
दीजै बुद्धि बल सुमति सुजाना,
कठिन कष्ट हरि करि कल्याणा ।
हे तारासुत रोहिणी नन्दन,
चन्द्रसुवन दुख द्वन्द्व निकन्दन ।
पूजहिं आस दास कहुं स्वामी,
प्रणत पाल प्रभु नमो नमामी ।
॥ श्री बृहस्पति स्तुति ॥
जयति जयति जय श्री गुरुदेवा,
करूं सदा तुम्हरी प्रभु सेवा ।
देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानी,
इन्द्र पुरोहित विद्यादानी ।
वाचस्पति बागीश उदारा,
जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा ।
विद्या सिन्धु अंगिरा नामा,
करहुं सकल विधि पूरण कामा ।
॥ श्री शुक्र स्तुति ॥
शुक्र देव पद तल जल जाता,
दास निरन्तन ध्यान लगाता ।
हे उशना भार्गव भृगु नन्दन,
दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन ।
भृगुकुल भूषण दूषण हारी,
हरहुं नेष्ट ग्रह करहुं सुखारी ।
तुहि द्विजबर जोशी सिरताजा,
नर शरीर के तुमही राजा ।
॥ श्री शनि स्तुति ॥
जय श्री शनिदेव रवि नन्दन,
जय कृष्णो सौरी जगवन्दन ।
पिंगल मन्द रौद्र यम नामा,
वप्र आदि कोणस्थ ललामा ।
वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा,
क्षण महं करत रंक क्षण राजा ।
ललत स्वर्ण पद करत निहाला,
हरहुं विपत्ति छाया के लाला ।
॥ श्री राहु स्तुति ॥
जय जय राहु गगन प्रविसइया,
तुमही चन्द्र आदित्य ग्रसइया ।
रवि शशि अरि स्वर्भानु धारा,
शिखी आदि बहु नाम तुम्हारा ।
सैहिंकेय तुम निशाचर राजा,
अर्धकाय जग राखहु लाजा ।
यदि ग्रह समय पाय हिं आवहु,
सदा शान्ति और सुख उपजावहु ।
॥ श्री केतु स्तुति ॥
जय श्री केतु कठिन दुखहारी,
करहु सुजन हित मंगलकारी ।
ध्वजयुत रुण्ड रूप विकराला,
घोर रौद्रतन अघमन काला ।
शिखी तारिका ग्रह बलवान,
महा प्रताप न तेज ठिकाना ।
वाहन मीन महा शुभकारी,
दीजै शान्ति दया उर धारी ।
॥ नवग्रह शांति फल ॥
तीरथराज प्रयाग सुपासा,
बसै राम के सुन्दर दासा ।
ककरा ग्रामहिं पुरे-तिवारी,
दुर्वासाश्रम जन दुख हारी ।
नवग्रह शान्ति लिख्यो सुख हेतु,
जन तन कष्ट उतारण सेतू ।
जो नित पाठ करै चित लावै,
सब सुख भोगि परम पद पावै ॥
॥ दोहा ॥
धन्य नवग्रह देव प्रभु,
महिमा अगम अपार ।
चित नव मंगल मोद गृह,
जगत जनन सुखद्वार ॥
यह चालीसा नवोग्रह,
विरचित सुन्दरदास ।
पढ़त प्रेम सुत बढ़त सुख,
सर्वानन्द हुलास ॥
॥ इति श्री नवग्रह चालीसा ॥
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