Nitya Puja Vidhi: नित्य पूजा विधि और मंत्र, यहां जानें
Nitya Puja Vidhi: जीवन को आनंद से जीने के लिए नित्य कर्म और पूजा का बहुत महत्व है, क्या होता है ये सब करने से, क्यों की जाती है और कब करें जिस से पूरा लाभ आपको प्राप्त हो सके…
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पूजा का नाम | मंदिर (स्थान) |
ऋण मुक्ति पूजा | ऋण मुक्तेश्वर महादेव मंदिर (उज्जैन) |
शनि साढे़ साती | शनि शिंगणापुर देवस्थानम,महाराष्ट्र |
लक्ष्मी कुबेर महायज्ञ और रुद्राभिषेक | जागेश्वर कुबेर मंदिर ,अल्मोड़ा, उत्तराखंड |
राहु ग्रह शांति पूजा | जरकुटिनाथेश्वर महादेव मंदिर ,प्रयागराज |
नित्य पूजा कैसे करें
जीवन जीना एक कला है। जो इस कला को सीख गया उसका जीवन सफ़ल समझा जाता है। जीवन जीने की कला में कुछ मुख्य बिंदु दिनचर्या से जुड़े होते हैं। अगर दिनचर्या ठीक हो तो जीवन की बहुत सी समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है।
“पहला सुख निरोगी काया” जीवन के सुखों के वर्णन में धन से अधिक महत्व शरीर को दिया गया है। अगर शरीर ठीक है, तो किसी भी प्रकार के धन की प्राप्ति करना सरल है। परन्तु शरीर को ठीक रखने के लिए विज्ञान और हमारे शास्त्रों में कुछ ऐसे नियम बताए गए हैं, जो सीधे तौर पर हमे प्रभावित करते हैं।
जीवन को सुगम बनाने के लिए नियमों का विशेष महत्व है। जिस प्रकार सड़क पर चलने के नियम सड़क पर चलना आसान बनाते हैं। उसी तरह नित्य कर्म में पालन किए जाने वाले नियम जीवन को आसान बनाते हैं। इन्ही नियमों में एक नियम हैं, नित्य पूजा पाठ करना और नित्य कर्म करना जो जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
नित्य कर्म (संध्या) के लाभ
हिन्दू धर्म के सभी कार्य किसी प्रयोजन से किए जाते हैं। नित्य कर्म को अगर ठीक से पालन किया जाए तो शरीर की वात, पित और कफ़ प्रकृति को नियंत्रण करने के लिए और सकारात्मक उर्जा को बढ़ाने के लिए नित्य कर्म की क्रिया का पालन करना बहुत जरूरी है।
नित्य कर्म केवल पूजा पाठ का हिस्सा ही नही, ये जीवन को संतुलन करने की एक विशेष क्रिया है। शरीर की प्रकृति को अनुकूल कर के बहुत सी बिमारियों से बचा जा सकता है। प्रकृति को नियंत्रण में कर के शरीर को संतुलित किया जा सकता है।
- नित्य कर्म से शरीर संतुलित होता है।
- नित्य कर्म से रोगों से मुक्ति मिलती है।
- नित्य कर्म से एकाग्रता की बढोत्तरी होती है।
- नित्य कर्म से निर्णय शक्ति का का विकास होता है।
- नित्य कर्म का पालन करने से शरीर का बल बढ़ता है।
नित्य कर्म (संध्या) ना करने का दोष
संध्या करने का ऐसे तो कोई लाभ शास्त्र में नहीं बताया गया है। परन्तु ना करने का दोष अवश्य बताया गया है। क्यों जैसा संध्या का नियम है उसके अनुसार बल एकाग्रता और शरीरिक विकास होता है। परन्तु जब हम नही करते हैं तो जीवन सामान्य रूप से भी चलता है। परन्तु जो लाभ नित्य कर्म से जीवन में होना होता है उसका आभाव हो जाता है।
- जीवन में नियमित्ता नहीं आ पाती।
- तेज का अभाव होता है।
- आँखों की रौशनी पर पड़ता है गहरा असर जो एक साथ नजर नही आता परन्तु समय आने पर नजर आता है।
- प्रात: अमृत वर्षा का लाभ नहीं मिल पाता।
- प्रात: स्वच्छ वायु का लाभ नहीं मिल पाता।
नित्य कर्म और धर्म
नित्य कर्म की विधि में एकाग्रता वृद्धि के लिए किसी प्रतीक का ध्यान किया जाता है। सनातन में इसे इष्ट साधना या ध्यान करना कहते हैं। किसी भी प्रकार की ध्यान और साधना के लिए एकाग्रता का होना बहुत जरुरी होता है। इसी ध्यान साधना के क्रम में इष्ट का निर्धारण किया जाता है, जिसे धर्म से जोड़ा जाता है। क्योंकि हम किसका ध्यान करते हैं और कैसे करते हैं वो विधि ही दिखाती है की हम किस तरह के धर्म का आचरण करते हैं।
जिसका ध्यान और पूजन हम करते हैं उसी प्रकार की प्रवृति और प्रकृति का निर्माण होता है। जो जीवन में आचरण को प्रभावित करता है, क्योंकि हमारे ध्यान की मुद्रा ही हमारे शरीर की क्रियाओं पर प्रभाव डालती है। इसका जीवन शैली पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।
बुद्धि में क्षमता होती है किसी भी कल्पना को सार्थक और सिद्ध करने की। उसके आधार पर ही विचारों का संचार होता है। क्योंकि जैसा चिंतन हमारी बुद्धि करती है, वैसी ही विचार धारा का निर्माण होता है। विचारों से ही हमारे संस्कारों का निर्माण होता है, जिस से धर्म की स्थापना होती है।
नित्य पूजा कैसे करें
नित्य कर्म करने के लिए निर्मल और शुद्ध मन की जरूरत होती है। इसके लिए सुबह का समय सबसे उत्तम माना जाता है। इसके साथ-साथ सूर्य उदय और सूर्य अस्त का समय जिसे संध्या का समय कहा जाता है, वो समय बहुत उत्तम माना जाता है।
- प्रात: सूर्य उदय से 90 मिनट पहले के समय संध्या में बिस्तर छोड़ दें।
- शौच इत्यादि नित्य कर्म से निवृत हों।
- योग अभ्यास और शारीरक व्यायाम करें।
- शुद्ध शीतल जल से स्नान करें।
- निर्मल और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- शुद्ध आसन पर बैठें।
- प्रणायाम इत्यादि कार्य करें।
- पूजा के पञ्च पात्र लेकर बैठें।
- गुरु जनों का ध्यान कर के इष्ट देव का ध्यान करें।
- देव, ऋषि, और पितृ तर्पण कर के अपने इष्ट देव का पूजन करें।
- अपने इष्ट मंत्र का जाप करें।
सूर्य उदय के समय सूर्य भगवान को अर्घ्य अवश्य दें।
ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्।।
सूर्य नमस्कार
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते।।
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