Kanya Daan: शादी में कन्या दान को महादान क्यों कहा गया है, इससे कौन सा पुण्य मिलता है, यहां जानें
Kanya Daan: हिन्दू धर्म के सभी रीति रिवाजों का बहुत महत्व है। हिन्दू धर्म में विवाह को 7 जन्मों के संबध से जोड़कर देखा जाता है। माना जाता है कि विवाह ना केवल एक जन्म के सम्बन्ध स्थपित करता है, अपितु ये 7 जन्मों के सम्बन्ध स्थापित करता है।
सनातन धर्म के 16 संस्कारों में विवाह एक संस्कार है। सनातन परम्परा में विवाह संस्कार (Vivah Sanskar) को एक पवित्र संस्कार माना जाता है। आपको बता दें,16 संस्कारों के क्रम में विवाह 15 वां संस्कार है।
जीवन की 4 अवस्थाएं बताई गई हैं (1) बाल, (2) कुमार, (3) यौवन और (4) वृद्ध वहीं सनातन के अनुसार जीवन के 4 आश्रम बताए गए हैं, (1) ब्रह्मचर्य, (2) गृहस्थ, (3) वानप्रस्थ और (4) संन्यास।
जीवन के हर आश्रम के अनुसार अलग-अलग वैदिक संस्कार (Vedic Sanskar) किए जाते हैं। गृहस्थ आश्रम की शुरुआत विवाह से होती है। विवाह करने से जीवन की एक नई शुरुआत होती है। शास्त्रों के अनुसार विवाह के लिए भी अलग अलग स्तर बताए गए हैं।
आपको बता दें, धर्म शास्त्रों में भी 8 तरह के विवाह का जिक्र है। (1) ब्रह्म विवाह, (2) देव विवाह, (3) आर्ष विवाह, (4) प्रजापत्य विवाह, (5) असुर विवाह, (6) गांधर्व विवाह, (7) राक्षस विवाह, (8) पैशाच विवाह।
इन 8 तरह के विवाह में देव विवाह, आर्ष विवाह और प्रजापत्य विवाह को श्रेष्ठ माना जाता है। विवाह की इन पद्धति में एक विशेष क्रिया की जाती है जिसे कन्या दान (kanya Daan) कहा जाता है। जिसके बिना विवाह को अधूरा माना जाता है।
कन्या दान का महत्व (Importance of kanya Daan)
धर्म शास्त्रों का मत है, कि विवाह करने से जातक की 21 पीढियां तर जाती हैं। इसलिए विवाह करना जरुरी है। विवाह के बाद ही वंश वृद्धि होती है। जिससे पितृ ऋण से भी मुक्ति मिलती है। सन्तान ही पूर्वजों के लिए पितृ पूजन इत्यादि कर के पितृ ऋण की मुक्ति का उपाय करते हैं।
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पूजा का नाम | मंदिर (स्थान) |
ऋण मुक्ति पूजा | ऋण मुक्तेश्वर महादेव मंदिर (उज्जैन) |
माता कामाख्या महापूजा | माता कामाख्या शक्तिपीठ (गुवाहाटी) |
शनि साढे़ साती | शनि शिंगणापुर देवस्थानम,महाराष्ट्र |
लक्ष्मी कुबेर महायज्ञ और रुद्राभिषेक | जागेश्वर कुबेर मंदिर ,अल्मोड़ा, उत्तराखंड |
राहु ग्रह शांति पूजा | जरकुटिनाथेश्वर महादेव मंदिर ,प्रयागराज |
कन्या दान का क्या मतलब होता है (Meening of Kanya Daan)
कन्या दान विवाह संस्कार की एक ऐसी विधि है, जिसमे कन्या के हाथ पीले कर के लकड़े के हाथ में हाथ रख दिया जाता है। गोत्रों के उच्चारण के साथ वंशों के पूर्वजों के नाम का उच्चारण किया जाता है। जिस से परिवार के भिन्ता की पुष्टि हो सके। विवाह विधि में इसे शाखा उच्चारण कहा जाता है। इसके बाद ही कन्या का दान वर को दिया जाता है।
कन्या दान क्यों किया जाता है (Why Prforming Kanya Daan)
कन्या दान विवाह विधि का एक प्रमुख भाग है। इसमें वर का नाम गोत्र उच्चारण कर के वर को कन्या का दान दिया जाता है। वर आजीवन उस कन्या का भार उठाने के लिए ख़ुशी से भगवान और लोगों को साक्षी मान कर उसे स्वीकार करता है।
माना जाता है कि इसके बाद से लड़की के गोत्र और कुल का परिवर्तन हो जाता है। इसके बाद किसी भी पूजा पाठ में या किसी भी आयोजन में जब भी लड़की के नाम गोत्र का उच्चारण होता है। तो विवाह के बाद से लड़के का गोत्र ही बोला जाता है। लकड़ी अब एक नए कुल की पुत्र वधु का होने की ज़िमेदारी सम्भालती है।
कन्या दान महादान क्यों
ब्रह्मा जी द्वारा बनाई इस सृष्टि के विकास के लिए सन्तान उत्पन्न करना ही एक मात्र साधन है। सनातन धर्म के अनुसार विवाह करना अनिवार्य है। विवाह संस्कार में कन्या दान महादान कहा जाता है। अपनी कन्या का दान सृष्टि विकास के लिए दूसरे कुल के लिए दे दिया जाता है। इस लिए कन्या दान को महादान कहा गया है।
कन्या दान मंत्र (Kanya Daan Mantra)
नाम्ने, विष्णुरूपिणे वराय, भरण-पोषण-आच्छादन-पालनादीनां, स्वकीय उत्तरदायित्व-भारम्, अखिलं अद्य तव पत्नीत्वेन, तुभ्यं अहं सम्प्रददे।
कन्या दान के समय संकल्प का विशेष महत्व होता है।
वर उन्हें स्वीकार करते हुए कहें- ॐ स्वस्ति।
कन्या दान से जुड़ी कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के बाद कन्यादान किया था। ब्रह्मांड के 27 नक्षत्रों को प्रजापति की पुत्रियां कहा गया है, जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ था। इन्होंने ही सबसे पहले अपनी कन्याओं को चंद्रमा को सौंपा था, ताकि सृष्टि का संचालन आगे बढ़े और संस्कृति का विकास हो।
ऐसे ही सनातन धर्म की व्रत कथा, त्योहार आदि महत्वपूर्ण जानकारी के लिए वामा ब्लॉग पढ़ें।