Gupt Navratri 2024: गुप्त नवरात्रि 6 जुलाई से शुरू, जानें कैसे करें साधना और पूजा
Gupt Navratri 2024: सनातन धर्म की विशेषता पर्वों से ही पता लग जाती है। सनातन धर्म में जितने भी पर्व और उत्सव मनाये जाते हैं, उनका प्रकृति से कुछ न कुछ सम्बन्ध निश्चित रूप से जुड़ा होता है। इसके प्रत्यक्ष उदाहरण के रूप में नवरात्रि पर्व को देखा जा सकता है।
साल में 4 बार आने वाला ये उत्सव बहुत महत्वपूर्ण है। चैत्र मास, अषाढ़ मास, आश्विन मास और माघ मास, इन चार महीनों में आने वाले नवरात्रि अपने अलग-अलग प्रभाव के कारण प्रभावशाली होते हैं।
सालभर में आने वाले नवरात्रि में हर बार ऋतु परिवर्तन देखने को मिलता है। जिसका प्रभाव पूरी सृष्टी में देखने को मिलता है। सूर्य के राशि परिवर्तन का फल इसमें मिला हुआ होता है। जिसका प्रभाव ज्योतिष के अनुसार भी समझा जा सकता है।
ऋतु परिवर्तन का प्रभाव मानसिक रूप से हमारे उपर बहुत अधिक प्रभाव दिखाता है।
इस समय में ध्यान और उपासना करने के लिए बहुत उत्तम समय होता है। जिसके प्रभाव से हमे मानसिक बल मिलता है।
गुप्त नवरात्रि में मुख्य रूप से 10 महाविद्या की पूजा की जाती है। महाकाली, तारा देवी, त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला माता इन 10 महाविद्या की पूजा जीवन के सभी कष्टों को दूर कर के समृद्धि देने वाली है। इसके प्रभाव से कर्ज, शत्रु, रोजगार, विद्या, सन्तान और भूत-प्रेत आदि जैसी हर बाधा का समाधान होता है।
जानें कब से है गुप्त नवरात्रि 2024..
गुप्त नवरात्रि कब है (Gupt Navratri 2024)
गुप्त नवरात्रि साल में 2 बार होता है, जिसमे से वर्ष 2024 में एक बार माघ मास में हो चुका है। अब आने वाले गुप्त नवरात्रि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष से शुरू हो रहे हैं। जो 6 जुलाई 2024 से होने वाले हैं। इस गुप्त नवरात्रि आपके जीवन से हर समस्या का समाधान हो, आपके लिए ला रहे हैं, गुप्त नवरात्रि से जुडी जानकारी…
गुप्त नवरात्रि पूजा विधि
गुप्त नवरात्रि में भी अन्य नवरात्रि की तरह कलश स्थापना की जाती है। माँ भगवती की पूजा की जाती है। अपनी कुल देवी के लिए या अपनी आराध्य देवी के लिए ये पूजा की जाती है। पूजा का हमे अच्छा फल प्राप्त हो उसके लिए इस विधि का प्रयोग करें।
गुप्त नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त
गुप्त नवरात्रि 2024 6 जुलाई के दिन दोपहर 11:58 से 12:54 तक अभिजीत मुहूर्त में घट स्थापना करना शुभ है।
कलश स्थापना कैसे करें
कलश स्थापना किसी भी पूजा का बहुत महत्वपूर्ण अंग होता है। अगर पूजा में कलश स्थापना सही ढंग से की जाए तो पूजा का सफल होना निश्चित है।
- कलश में सप्त धान्य डालें।
- कलश में सर्वो औषधि डालें।
- कलश में पञ्च रत्न डालें।
- कलश में मीठा डालें।
- कलश में हल्दी की 5 गांठ डालें।
- कलश में चाँदी का सिक्का डालें।
- कलश में कोढ़ी डालें।
- कलश में आम के पत्ते या 5 पलव डालें।
भगवती स्थापना विधि
नवरात्रि में माँ भगवती की आराधना से पहले माता की प्रतिमा की स्थापना करने का विधान है। अगर भगवती की प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा की हुई हो तो सर्वोतम माना जाता है।
- लकड़ी के पटड़े पर लाल या पीला वस्त्र बिछा कर भगवती की प्रतिमा की स्थपना करें।
- भगवती की सोने, चाँदी, पीतल या ताम्बे की प्रतिमा की स्थापना करें।
- माता को दूध, दही, घी, शहद, शक्कर और गंगा जल से अभिषेक करें।
- दूध से या फलों के रस से माता का विशेष अभिषेक करें।
- माता को आभूषण अर्पण करें।
- माता को वस्त्र अर्पण करें।
- माता को सुगन्धित द्रव्य अर्पण करें।
दीप स्थापना विधि
किसी भी अनुष्ठान के लिए कर्म के साक्षी के रूप में दीप प्रज्वलित किया जाता है। माँ की साधना में घी का दीपक लगाने का विधान है।
- सप्त धान्य रख कर उसके उपर घी के दीपक की स्थापना करें।
- पूजा स्थल के दाएँ ओर सरसों के तेल का दीपक लगाएं।
- पूजा स्थल के बाएं ओर घी का दीपाक लगाएं।
- आरती के लिए कपूर का प्रयोग अवश्य करें।
पूजा का आसन कैसा हो
पूजा या अनुष्ठान के लिए आसन लगाया जाता है, आसन से एकाग्रता की वृद्धि होती है जिसके फल स्वरूप भगवती की साधना सफल होती है।
- लाल रंग का रेशमी या सूती आसन लें।
- कम्बल का आसन सबसे शुभ माना जाता है।
- काले कम्बल का आसन अधिक शुभ माना जाता है।
गुप्त नवरात्रि में गुप्त साधना करें
गुप्त नवरात्रि में 10 महा विद्या की गुप्त साधना करने का सबसे अच्छा समय होता है। महाकाली, तारा देवी, त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला माता की पूजा करने से माता की कृपा से हर कार्य सिद्ध होता है। माँ भगवती की कृपा प्राप्ति के लिए 10 महा विद्या के मन्त्रों का जाप करें।
महाकाली बीज मंत्र
‘ॐ श्री महा कालिकायै नमः॥
तारा देवी बीज मंत्र
‘ॐ श्री महा कालिकायै नमः॥
त्रिपुरा सुंदरी बीज मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः॥
भुवनेश्वरी बीज मंत्र
ॐ ह्रीं भुवनेश्वर्ये नम:॥
छिन्नमस्ता बीज मंत्र
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा:॥
त्रिपुर भैरवी बीज मंत्र
ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:॥
धूमावती बीज मंत्र
ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा॥
बगलामुखी मंत्र
ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम:॥
मातंगी बीज मंत्र
ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा॥
कमला माता बीज मंत्र
ह्स्रो: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:॥
दस महाविद्या स्तोत्र | Das Mahavidya Stotra
नमस्ते चण्डिके । चण्डि । चण्ड-मुण्ड-विनाशिनि ।
नमस्ते कालिके । काल-महा-भय-विनाशिनी । ।।1।।
शिवे । रक्ष जगद्धात्रि । प्रसीद हरि-वल्लभे ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं, जगत्-पालन-कारिणीम् ।।2।।
जगत्-क्षोभ-करीं विद्यां, जगत्-सृष्टि-विधायिनीम् ।
करालां विकटा घोरां, मुण्ड-माला-विभूषिताम् ।।3।।
हरार्चितां हराराध्यां, नमामि हर-वल्लभाम् ।
गौरीं गुरु-प्रियां गौर-वर्णालंकार-भूषिताम् ।।4।।
हरि-प्रियां महा-मायां, नमामि ब्रह्म-पूजिताम् ।
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्ध-विद्या-धर-गणैर्युताम् ।।5।।
मन्त्र-सिद्धि-प्रदां योनि-सिद्धिदां लिंग-शोभिताम् ।
प्रणमामि महा-मायां, दुर्गा दुर्गति-नाशिनीम् ।।6।।
उग्रामुग्रमयीमुग्र-तारामुग्र – गणैर्युताम् ।
नीलां नील-घन-श्यामां, नमामि नील-सुन्दरीम् ।।7।।
श्यामांगीं श्याम-घटिकां, श्याम-वर्ण-विभूषिताम् ।
प्रणामामि जगद्धात्रीं, गौरीं सर्वार्थ-साधिनीम् ।।8।।
विश्वेश्वरीं महा-घोरां, विकटां घोर-नादिनीम् ।
आद्यामाद्य-गुरोराद्यामाद्यानाथ-प्रपूजिताम् ।।9।।
श्रीदुर्गां धनदामन्न-पूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं, चन्द्र-शेखर-वल्लभाम् ।।10।।
त्रिपुरा-सुन्दरीं बालामबला-गण-भूषिताम् ।
शिवदूतीं शिवाराध्यां, शिव-ध्येयां सनातनीम् ।।11।।
सुन्दरीं तारिणीं सर्व-शिवा-गण-विभूषिताम् ।
नारायणीं विष्णु-पूज्यां, ब्रह्म-विष्णु-हर-प्रियाम् ।।12।।
सर्व-सिद्धि-प्रदां नित्यामनित्य-गण-वर्जिताम् ।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्व-सिद्धिदाम् ।।13।।
विद्यां सिद्धि-प्रदां विद्यां, महा-विद्या-महेश्वरीम् ।
महेश-भक्तां माहेशीं, महा-काल-प्रपूजिताम् ।।14।।
प्रणमामि जगद्धात्रीं, शुम्भासुर-विमर्दिनीम् ।
रक्त-प्रियां रक्त-वर्णां, रक्त-वीज-विमर्दिनीम् ।।15।।
भैरवीं भुवना-देवीं, लोल-जिह्वां सुरेश्वरीम् ।
चतुर्भुजां दश-भुजामष्टा-दश-भुजां शुभाम् ।।16।।
त्रिपुरेशीं विश्व-नाथ-प्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् ।
अट्टहासामट्टहास-प्रियां धूम्र-विनाशिनीम् ।।17।।
कमलां छिन्न-मस्तां च, मातंगीं सुर-सुन्दरीम् ।
षोडशीं विजयां भीमां, धूम्रां च बगलामुखीम् ।।18।।
सर्व-सिद्धि-प्रदां सर्व-विद्या-मन्त्र-विशोधिनीम् ।
प्रणमामि जगत्तारां, सारं मन्त्र-सिद्धये ।।19।।
।।फल-श्रुति।।
इत्येवं व वरारोहे, स्तोत्रं सिद्धि-करं प्रियम् ।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति, सत्यं वै गिरि-नन्दिनि ।।1।।
कुज-वारे चतुर्दश्याममायां जीव-वासरे ।
शुक्रे निशि-गते स्तोत्रं, पठित्वा मोक्षमाप्नुयात् ।।2।।
त्रिपक्षे मन्त्र-सिद्धिः स्यात्, स्तोत्र-पाठाद्धि शंकरी ।
चतुर्दश्यां निशा-भागे, शनि-भौम-दिने तथा ।।3।।
निशा-मुखे पठेत् स्तोत्रं, मन्त्र-सिद्धिमवाप्नुयात् ।
केवलं स्तोत्र-पाठाद्धि, मन्त्र-सिद्धिरनुत्तमा ।
जागर्ति सततं चण्डी-स्तोत्र-पाठाद्-भुजंगिनी ।।4।।
श्रीमुण्ड-माला-तन्त्रे एकादश-पटले महा-विद्या-स्तोत्रम् सम्पूर्णं।।
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