Pitra dosh puja: पितृ दोष शांति पूजा क्या है? यहां जानिए, पितरों का श्राद्ध कैसे करें?
Pitra Dosh Puja Online: भारत की पुण्य भूमि परम पवित्र है। इसके हर कण में देवताओं का वास है। उसके बाद भी कुछ स्थान ऐसे हैं, जहाँ पर पूजा कर्म करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं।
भारत में 55 स्थान ऐसे हैं, जिनमे पुण्य कर्म करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इन सब में सब से पहले गया जी का नाम आता है। फल्गु नदी के किनारे बसा गया शहर पूरा क्षेत्र ही परम पवित्र है।
गया जी का पौराणिक महत्व
वायु पुराण, गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण के साथ साथ अन्य कथाओं से गया का महत्व पता लगता है। श्री राम जी ने भी अपने पूर्वजों के मोक्ष की कामना से गया जी में पिण्ड दान और तर्पण किया था। अन्य कथा से पता लगता है कि पांडवों ने महाभारत युद्ध के बाद अपने सभी पूर्वजों के मोक्ष और उनके दोष से बचने के लिए गया जी में ही श्राद्ध किया था। तभी से गया जी में पितृ मोक्ष के लिए पिण्ड दान और तर्पण का महत्व बना।
गया सुर की पुण्य कथा
गया-सुर नाम के दैत्य ने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या कर के वरदान प्राप्त किया। जिसके फल स्वरूप गया-सुर के दर्शन करने से किसी के भी पाप समाप्त हो जाते थे। ऐसे में लोगों में पाप का डर समाप्त हो गया और लोग और अधिक पाप करने लगे। और गया सुर का दर्शन कर के पापों से मुक्त होने लगे। इस से स्वर्ग और नरक का संतुलन बिगड़ने लगा।
धरती पर बुरे लोगों का इतना प्रभाव बढ़ गया की, लोग गया-सुर के पास गए और उनसे मदद मांगी। उन्होंने अपने शरीर का दान कर दिया और कहा की आप मेरे उपर यज्ञ करो। गया-सुर धरती पर लेट गए और उनके शरीर पर 360 वेदी बना कर हवन किया गया। किन्तु अब केवल 48 वेदी ही प्राप्त होती हैं। जितने हिस्से में गया-सुर का शरीर फ़ैला उतना हिस्सा आज गया तीर्थ क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है।
अब जानते हैं, त्रिपिंडी पूजा (Tripindi Puja) क्या होती है?
त्रिपिंडी पूजा (tripindi puja)
जब भी कोई मनुष्य मृत्य को प्राप्त करता है, तो वह प्रेत योनि को प्राप्त करता है। मरने के बाद हर मनुष्य प्रेत योनी को प्राप्त करता है। मृत व्यक्ति के लिए कर्म करने से ही उसे मुक्ति प्राप्त होती है। अन्यथा वह अपने कुल के लोगों को दिखने लगता है। कभी कभी अदृश्य रूप से लोगों को परेशान करता है। ऐसे में त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा करने से उस मृत व्यक्ति की आत्म को मुक्ति मिलती है। ये पूजा कुल के 7 पीढ़ी तक के लोगों के लिए की जाती है।
इस पूजा के माध्यम से प्रेत को देव लोक की प्राप्ति हो ऐसी कामना से पूजा की जाती है। मृत आत्मा को मुक्ति के लिए विष्णु लोक की प्राप्ति की कमाना करते हुए पूजा की जाती है। त्रिपिंडी पूजा एक ऐसा कर्म है जिसके द्वारा किसी भी प्रेत की मुक्ति की जाती है।
पितृ दोष का पता कैसे करें
पितृ दोष एक ऐसी समस्या है, जो आज हर घर में देखने को मिल रही है। आज की व्यस्त जीवन यात्रा में सब इतने व्यस्त हो गए हैं, कि किसी की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार भी ठीक से नही करते हैं। जिसके कारण शुरुवात होती है घर में पितृ दोष की। इसे लक्षणों से भी अनुभव किया जा सकता है, कि क्या आपके घर में भी पितृ दोष है की नही। इसके होने से होने से घर में अजीब से घटनाएँ होने लगती हैं।
- घर में बरकत की कमी होने लगती है।
- धन जोड़ने में बाधा आने लगती हैं।
- व्यापार में नुकसान होने लगता है।
- विद्यार्थियों को पढ़ाई में बाधा होती है।
- नौकरी मिलने में समस्या आती है।
- घर में बीमारी दूर नही होती है।
पितृ दोष का निवारण कैसे करे?
माता च पिता, पितृ शब्द की उत्त्पति करता है। अगर घर में माता पिता का अनादर होता है तो पितृ दोष के लक्ष्ण पैदा होने लगते हैं। पितृ दोष के निवारण के लिए शास्त्रों में बहुत से उपाय बताए गए हैं, जिसमे से गया जी में पितृ पूजन विशेष है।
- गया जी में पितृ पूजन करें।
- गंगा जी के किनारे पितृ पूजन करें।
- किसी भी तीर्थ के किनारे पितृ पूजन करें।
- कृष्ण पक्ष में करें पितृ पूजन।
- गया जी में विष्णु पद का दर्शन करने से भी पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
पितृ पूजा कब करें
अमावस्या व्दादशैव क्षयाहव्दितये तथा।
षोडशापरपक्षस्य अष्टकान्वष्टाकाश्च षट॥
संक्रान्त्यो व्दादश तथा अयने व्दे च कीर्तिते।
चतुर्दश च मन्वादेर्युगादेश्च चतुष्टयम॥
पितृ पूजा करने के लिए समय का विशेष महत्व है। पितृ पूजा किसी भी महीने की अमावस्या तिथि और पूर्णिमा तिथि पर करना शुभ माना जाता है। अन्य किसी भी महीने के कृष्ण पक्ष में पितृ पूजा की जाती है।
शास्त्रों के नियम अनुसार अश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पितृ पक्ष कहा जाता है। इस समय में पितृ पूजा के लिए विशेष महत्व होता है। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में किसी भी दिन पितृ पूजा की जा सकती है।
पितृ पूजा ना करने से दोष
न सन्ति पितरश्र्चेति कृत्वा मनसि यो नरः।
श्राध्दं न कुरुते तत्र तस्य रक्तं पिबन्ति ते॥
(आदित्यपुराण)
शास्त्रों में पुत्र जन्म प्राप्ति के साथ ही 3 तरह के ऋण मनुष्य पर आ जाते हैं। जिसमे से एक है पितृ ऋण। पितृ ऋण से मुक्ति के लिए पितृ पूजा की जाती है। अगर कोई अज्ञानता के कारण पितृ पूजन नही करता है, तो उसे पितरों की तरफ से किसी प्रकार का आशीर्वाद नही मिलता और वो मृत लोग उनका खून चूसने लगते हैं। जिसके कारण बहुत से रोग शरीर में होने लगते हैं।
क्या बेटियां पिंड दान कर सकती है?
पितृ पूजा एक ऐसा कर्म है, जिसमे हमे बहुत सावधानी रखनी होती है। नियम अनुसार पितृ पूजा में शौर कर्म करना अनिवार्य होता है। शौर कर्म कर के ही पितृ पूजा की जाती है। घर की स्त्रियों के बाल उनकी शोभा होते हैं, सुलक्षणा स्त्रियों में बालों का महत्व लक्षण ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है। इसलिए स्त्रियों के बाल ना काटें जाए उसके लिए ऐसा नियम है कि उनके द्वारा पितृ कर्म करना निषेध है।
पिंडदान में उपयोग होने वाली आवश्यक सामग्री
पितरों की पूजा एक क्षणिक कार्य होता है। इसमें अधिक समय और अधिक सामग्री की जरूरत नहीं होती है। पिण्ड दान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और धन धान्य वृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
- श्राद्ध में तर्पण करने के लिए तिल का प्रयोग करें।
- जल प्रयोग करें।
- चावल प्रयोग करें।
- कुशा प्रयोग करें।
- गंगाजल आदि का उपयोग अवश्य ही किया जाना चाहिए।
- उड़द प्रयोग करें।
- सफेद पुष्प प्रयोग करें।
- गाय के दूध प्रयोग करें।
- घी प्रयोग करें।
- खीर प्रयोग करें।
- स्वांक के चावल प्रयोग करें।
- जौ प्रयोग करें।
- मूंग प्रयोग करें।
- गन्ने आदि का प्रयोग करें।
- श्राद्ध में पितर प्रसन्न होते हैं और घर में सुख शांति बनी रहती है।
पिंडदान करते समय रखें इन बातों का विशेष ध्यान
जब भी किसी के लिए पिण्ड दान किया जाता है। उसके लिए प्रयोग होने वाली सामग्री शुद्ध होनी चाहिए। पीतल के बर्तनों का प्रयोग करें या ढ़ाक के पत्तों का प्रयोग करें। सफेद वस्त्र धारण कर के पूजन करें। दक्षिण दिशा में देखते हुए पितृ गणों का ध्यान करते हुए पूजा करें।
तो आज VAMA द्वारा करवाई जा रही पितृ दोष शांति एवं त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा में भाग लें।
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