Laxmi Pujan: लक्ष्मी पूजन विधि, मुहूर्त, रंगोली के रंगों का महत्त्व, और मन्त्र

सौंदर्य, ऐश्वर्या, सौभाग्य, वैभव, शक्ति, समृद्धि, स्त्रीत्व और ​​संतान की देवी, जगदम्बा, और करुणा की देवी महालक्ष्मी जी को कहते हैं।

Laxmi Puja: सौंदर्य, स्वास्थ्य, ऐश्वर्या, सुख, प्रेम, धन, भोजन, सौभाग्य, वैभव, शक्ति, धैर्य, समृद्धि, मोक्ष, स्त्रीत्व और ​​संतान की देवी , जगनमाता, मूल प्रकृति, आदिशक्ति, जगदम्बा, सुख संपत्ति, और करुणा की देवी महालक्ष्मी जी को कहते हैं।

आइए जानते हैं VAMA के ज्योतिषाचार्य डॉ देव से महालक्ष्मी से जुड़ी रोचक जानकारी

महालक्ष्मी जगत की माता हैं। लक्ष्मी माता स्वयं दुर्गा का रूप हैं। गायत्री माता की सेवा से प्राप्त ज्ञान से उत्पन होती हैं महालक्ष्मी।

लक्ष्मी जी के विषय में कहा जाता है, कि लक्ष्मी का वास हर उस स्थान पर है, जहाँ सत्य और स्वछता है। स्वछता केवल घर की ही नही बुद्धि की भी होनी चाहिए।

अगर बुद्धि में किसी के लिए विरोध वैर की भावना ना हो तो हमे धन, समृधि, कीर्ति, इज्ज़त सम्मान रूपी लक्ष्मी की प्रप्ति होती है। 

धन की देवी हैं महालक्ष्मी। सनातन धर्म के अनुसार अगर हम बात करें तो, धन के स्वामी के रूप में कुबेर जी को माना जाता है। वही कर्मों के अनुसार कितने धन की प्राप्ति होगी उसके लिए हमे लक्ष्मी की कृपा से ही धन की प्राप्ति होती है।

लक्ष्मी माता ही कर्मों के अनुसार धन वैभव की समृद्धि प्रदान करती हैं। महालक्ष्मी की पूजा के लिए दिनों की जरूरत नही, किसी भी दिन अच्छे कर्म कर के इन्सान माता की कृपा प्राप्त कर सकता है।

लक्ष्मी पूजन विधि (Laxmi pujan Vidhi)

लक्ष्मी पूजन (lakshmi pujan) करने के लिए हमे तन के साथ मन को स्वच्छ करना होता है। बिना किसी लालच के अगर माता की पूजा की जाती है, तो माता बहुत जल्दी प्रसन्न हो कर अपने भगतों की सभी मनोकामना पूरी करती हैं। शास्त्रों के अनुसार पूजा विधान निर्धारित किया गया है।

  • प्रातः जल्दी उठ कर शीतल जल से स्नान करें।
  • स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें। 
  • पूर्व की ओर मुख कर के पीले आसन पर बैठें।
  • गंगा जल से शुद्धि करण करें।
  • हाथ में जल फूल चावल दूर्वा लेकर संकल्प करें।
  • पीले चावल और पीले फूलों से माता का अर्चन करें।
  • माता को हल्दी के जल से अभिषेक करवाएं।
  • माता को हल्दी का तिलक लगाएं और माता को हल्दी चन्दन का तिलक लगाएं।
  • माता को प्रसन्न करने के लिए कमल के फूल सामर्थ्य अनुसार चढ़ाएं। 
  • माता को श्रृंगार रूप में सोने चाँदी के आभूषण अर्पण करें। 
  • पूजा के लिए माता को नए वस्त्र अर्पण करें।
  • माता को पिली मिठाई का भोग लगाएं। 

लक्ष्मी पूजन मुहूर्त (laxmi pujan muhurat) 

ऐसे तो भगवान की पूजा के लिए कोई समय निश्चित नहीं होता, परन्तु शुभ समय में शुभ काम करने से कार्य के फल की अधिकता बढ़ जाती है। माता का पूजन अगर दोपहर के अभिजीत काल में किया जाए तो शुभ फल देने वाला होता है। रात्रि के अभिजीत काल में भी इसका शुभ फल अधिक बढ़ जाता है। ये ऐसा समय है, जो किसी भी दिन लक्ष्मी पूजा (lakshmi puja) करने के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसके अलावा संध्या का समय भी माता की पूजा के लिए उपयुक्त माना जाता है। महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए, किसी भी त्यौहार और उत्सव के दिन विशेष रूप से पूजा कर के किया जाता है। 

  • दीपावली की रात्रि होती है विशेष महत्त्वपूर्ण
  • होली की रात्रि में भी होती है मन्त्र की सिद्धि
  • किसी भी ग्रहण के समय में लक्ष्मी के मन्त्रों का जाप करने से भी होती है सिद्धि प्राप्ति
  • स्थान का विशेष महत्व माना जाता है, अगर किसी सिद्ध मंदिर या स्थान पर। माता की विशेष पूजा की जाती है तो उसका एक अलग ही प्रभाव देखने को मिलता है।
  • नवरात्र का समय होता है हर किसी के लिए अनुकूल इस समय में सात्विक रूप से माता की पूजा की जाए तो होती है धन समृद्धि की प्राप्ति। 

लक्ष्मी पूजन में रंगोली का महत्व (laxmi pujan rangoli)

महालक्ष्मी जब हमारे घर में आएं, तो हम ऐसा क्या करें की माता का स्थाई निवास ही हमारे घर में हो जाए। माता के स्वागत में मुख्य द्वार पर रंगोली बनाई जाती है। रंगोली में प्रयोग होने वाले रंगों का विशेष महत्व होता है। हर रंग माता को आकर्षित करता है। जब माता लक्ष्मी की पसंद के रंगों से रंगोली बनाई जाती हैं, तो माता प्रसन्न होती है और घर में स्थाई निवास करती हैं। 

जब हम घर के बाहर या आँगन में रंगोली बनाते हैं, तो ध्यान रहे जिन चीजों का प्रयोग हम करते हैं, वो सब सात्विक होनी चाहिए। हमे रंगोली फूलों से बनानी चाहिए। जिस से हम महालक्ष्मी को बहुत जल्द प्रसन्न कर लेते हैं और हमारा रंगोली बनाना सफल होता है।

  • लाल रंग होता है एश्वर्य का कारक, माता घर में देती है एश्वर्य का आशीर्वाद।
  • पीला रंग होता है धन समृद्धि का करक, घर में होने लगती है धन की वर्षा।
  • सफेद रंग होता है शांति का कारक, घर में आती है ख़ुशी और शांति। 
  • भगवा रंग होता है आरोग्य का कारक, इसका प्रयोग करने से घर से बीमारी दूर होती हैं, और ख़ुशी के मौहाल के साथ होती है, बरकत। 
  • हरा रंग होता है समृद्धि का कारक, इसके प्रयोग से होती है आपकी यश मान प्रतिष्ठा में वृद्धि। 
VAMA द्वारा आयोजित ऑनलाइन पूजा में भाग लें (अपने नाम और गोत्र से पूजा संपन्न कराएं)
पूजा का नाममंदिर (स्थान)
ऋण मुक्ति पूजाऋण मुक्तेश्वर महादेव मंदिर (उज्जैन)
माता कामाख्या महापूजामाता कामाख्या शक्तिपीठ (गुवाहाटी)
शनि साढे़ सातीशनि शिंगणापुर देवस्थानम,महाराष्ट्र
लक्ष्मी कुबेर महायज्ञ और रुद्राभिषेकजागेश्वर कुबेर मंदिर ,अल्मोड़ा, उत्तराखंड
राहु ग्रह शांति पूजाजरकुटिनाथेश्वर महादेव मंदिर ,प्रयागराज

महालक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है। सरल भाषा में कहा जाए तो लक्ष्मी जी के मन्त्रों (laxmi pujan mantra 2024) को मनी मन्त्रों के नाम से भी जाना जाता है।

महालक्ष्मी के मंत्रों के जाप से पुराने से पुराना क़र्ज़ उतर जाता है। इसके प्रयोग से धन वृद्धि के साथ साथ रोजगार के अवसर खुलने लगते हैं। बुद्धि का विकास होता है। लक्ष्मी जी के मन्त्रों के जाप करने से जीवन के बहुत से कष्टों से छुटकारा मिलता है। 

आपकी सुविधा के लिए बता रहे हैं, लक्ष्मी प्राप्ति के अचूक मन्त्र इनका जाप करने से आपके सभी मनोरथ पूर्ण होंगे।

लक्ष्मी जी मन्त्र को जाप करने के लिए किस माला का प्रयोग करें

कमलगट्टा माला, स्फटिक माला

लक्ष्मी जी के मंत्र जाप के समय प्रयोग किये जाने वाले पुष्प 

गुलाब और कमल के फूल

लक्ष्मी जी के मंत्र जप करने का श्रेष्ठ समय और मुहूर्त

शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा तिथि, चन्द्रावली, शुभ नक्षत्र

लक्ष्मी जी के मंत्र की जप संख्या

11000 से 1,25,000 

लक्ष्मी जी के विशेष मन्त्र (Laxmi Pujan Mantra): 

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ ।

ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा ।

ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॐ ।।

“ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः”

ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ ।।

।।ॐ श्रीं श्रियें नमः ।।

महालक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए अलग अलग स्तोत्रों का पाठ भी किया जाता है जिसमे श्री सूक्त का विशेष महत्व है:- 

श्रीसूक्त का पाठ करने से पहले न्यास करें |

न्यास:

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्यवर्णायै अङ्गुष्ठाभ्यां नमः | बोलकर अंगूठे को स्पर्श करे |

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्यै तर्जनीभ्यां नमः | बोलकर तर्जनी को स्पर्श करे |

ॐ नमो भगवते महालक्ष्म्यै सुवर्णरजतस्त्रजायै मध्यमाभ्यां नमः | बोलकर मध्यमा ऊँगली को स्पर्श करे |

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै चन्द्रायै अनामिकाभ्यां नमः | बोलकर अनामिका ऊँगली को स्पर्श करे |

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्मयै कनिष्ठिकाभ्यां नमः | बोलकर कनिष्ठिका ऊँगली को स्पर्श करे |

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै सुवर्ण रजतस्त्रजायै शिखायै नमः | बोलकर शिखा को स्पर्श करे |

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै चन्द्रायै कवचाय हुम् | बोलकर दोनों हाथो से परस्पर कवच बनाये |

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्मयै नेत्रत्रयाय वौषट | बोलकर दोनों आँखों को स्पर्श करे |

ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै अस्त्राय फट | बोलकर सिर के ऊपर से तीन बार हाथ घुमाकर तीन बार ताली बजाये |

ॐ भूर्भुवः स्वरोमिति दिग्बन्धः | बोलकर दिशाओ को बाँध ले |

महालक्ष्मी ध्यान मन्त्र:- 

ॐ अरुणकमल संस्था तद्रजः पुञ्जवर्णां, करकमल धृतेष्ठाभीति युग्माम्बुजा च |

मणिमुकुटविचित्रालङ्कृता कल्पजातैः भवतु भुवनमाता सन्ततं श्रीं श्रिये नः ||

ध्यान करने के बाद महालक्ष्मी मानसोपचार पूजा करें 

मानस पूजा ( मन में सब वस्तुओं का ध्यान कर के माता को अर्पण करें)

ॐ लं पृथिव्यात्मकं गन्धं परिकल्पयामि | ॐ हं आकाशात्मकं पुष्पं परिकल्पयामि |

ॐ यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि | ॐ रं तेजात्मकं दीपं परिकल्पयामि |

ॐ शं सोमात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचारान परिकल्पयामि |

ॐ छत्रं चामरं मुकुट पादुकां परिकल्पयामि |

श्री सूक्त का पाठ करने के लिए लक्ष्मी जी का मानसिक ध्यान करें:- 

अक्षस्त्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्म धनुष्कुण्डिकां 

दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्। 

शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां 

सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ॥

श्री सूक्त के 16 मंत्र (lakshmi 16 mantra)

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्रजां |

चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह || 1 ||

ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम |

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहं || 2 ||

ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रबोधिनीम |

श्रियं देवी मुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषतां || 3 ||

ॐ कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं |

पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियं || 4 ||

ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम |

तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वं वृणे || 5 ||

ॐ आदित्यवर्णे तपसोधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोथ बिल्वः |

तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः || 6 ||

ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह |

प्रादुर्भूतो सुराष्ट्रेस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु में || 7 ||

ॐ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठांलक्ष्मीं नाशयाम्यहं |

अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद में गृहात || 8 ||

ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करिषिणीम |

ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियं || 9 ||

ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि |

पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः || 10 ||

ॐ कर्दमेन प्रजाभूता मयि संभव कर्दम |

श्रियं वासय में कुले मातरं पद्ममालिनीं || 11 ||

ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस में गृहे |

नि च देविं मातरं श्रियं वासय मे कुले || 12 ||

ॐ आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीं |

सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह || 13 ||

ॐ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीं |

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह || 14 ||

ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम |

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान विन्देयं पुरुषानहं || 15 ||

ॐ यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहयादाज्यमन्वहं |

सूक्तं पञ्चदशचँ च श्रीकामः सततं जपेत || 16 ||

|| श्री सूक्त: सम्पूर्णं ||