Amavasya 2024: सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का है खास महत्व, इस दिन पूजा करने से पितर होते हैं प्रसन्न
Amavasya 2024 : अमावस्या और पूर्णिमा सूर्य चन्द्र के अंशों की दूरी के अनुसार होने वाली घटना है। आकाश मंडल में भ्रमण करने वाले बहुत से पिण्डों में सूर्य और चन्द्र ऐसे पिण्ड हैं, जिनका पृथ्वी पर सीधा असर देखा जाता है।
सूर्य चन्द्र के एक साथ होने पर अमावस्या तिथि होती है, और सूर्य चन्द्र के 180 अंशों की दूरी पर पूर्णिमा तिथि होती है।
इस परिवर्तन को पृथ्वी पर हम शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के रूप में देख सकते हैं। शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की रोशनी बढ़ने के साथ पूर्णिमा तिथि पर ये शुक्ल पक्ष पूर्ण होता है, और चंद्रमा की रोशनी घटनी शुरू होती है। आकाश में चंद्रमा के पूर्ण आभाव होने पर अमावस्या तिथि होती है।
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पूजा का नाम | मंदिर (स्थान) |
ऋण मुक्ति पूजा | ऋण मुक्तेश्वर महादेव मंदिर (उज्जैन) |
माता कामाख्या महापूजा | माता कामाख्या शक्तिपीठ (गुवाहाटी) |
शनि साढे़ साती | शनि शिंगणापुर देवस्थानम, महाराष्ट्र |
लक्ष्मी कुबेर महायज्ञ और रुद्राभिषेक | जागेश्वर कुबेर मंदिर, अल्मोड़ा, उत्तराखंड |
राहु ग्रह शांति पूजा | जरकुटिनाथेश्वर महादेव मंदिर, प्रयागराज |
आइए जानते हैं, VAMA के ज्योतिषाचार्य डॉ देव से, अमावस्या का महत्व क्या है?
साल 2024 में अमावस्या कब-कब है?
6 जून 2024, बृहस्पतिवार, ज्येष्ठ, कृष्ण अमावस्या
प्रारम्भ – 05 जून 2024, शाम 07:55
समाप्त – 06 जून 2024, शाम 06:08
5 जुलाई 2024, शुक्रवार,आषाढ़, कृष्ण अमावस्या
प्रारम्भ – 05 जुलाई 2024, सुबह 04:58
समाप्त – 06 जुलाई 2024, सुबह 04:27
4 अगस्त 2024, रविवार, श्रावण, कृष्ण अमावस्या
प्रारम्भ – 03 अगस्त 2024, दोपहर 03:51
समाप्त – 04 अगस्त 2024, शाम 04:43
2 सितम्बर 2024, सोमवार,भाद्रपद, कृष्ण अमावस्या
प्रारम्भ – 02 सितम्बर 2024, सुबह 05:22
समाप्त – 03 सितम्बर 2024, सुबह 07:25
2 अक्टूबर 2024, बुधवार, आश्विन, कृष्ण अमावस्या
प्रारम्भ – 01 अक्टूबर 2024,रात 09:40
समाप्त – 03 अक्टूबर 2024, रात 12:19
1 नवम्बर 2024, शुक्रवार, कार्तिक, कृष्ण अमावस्या
प्रारम्भ – 31 अक्टूबर 2024, शाम 03:53
समाप्त – 01 नवम्बर 2024, शाम 06:17
1 दिसम्बर 2024, रविवार, मार्गशीर्ष, कृष्ण अमावस्या
प्रारम्भ – 30 नवम्बर 2024, सुबह 10:30
समाप्त – 01 दिसम्बर 2024, सुबह 11:51
30 दिसम्बर 2024, सोमवार, पौष, कृष्ण अमावस्या
प्रारम्भ – 30 दिसम्बर 2024, सुबह 04:02
समाप्त – 31 दिसम्बर 2024, रात 03:57
क्या अमावस्या तिथि शुभ होगी या अशुभ?
एक साल में 12 अमावस्या और 12 पूर्णिमा तिथि होती हैं। हर अमावस्या का नाम भी अलग अलग होता है। हर महीने की अमावस्या का अलग अलग महत्व होता है। जिसमें कुछ अमावस्या शुभ होती हैं, तो कुछ अशुभ होती हैं।
अमावस्या की रात्रि, चंद्रमा का आकाश में दिखाई ना देना पृथ्वी पर अपना बहुत बुरे प्रभाव के रूप में दिखाई देता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। जिन लोगों की कुण्डली में चंद्रमा की स्थिति ख़राब होती है, उन लोगों के लिए अमावस्या बहुत महत्तवपूर्ण होती है। उस दिन चंद्रमा के लिए उपाय किया जाए तो शुभ फल की प्राप्ति होती है।
क्यों महत्वपूर्ण है अमावस्या
अमावस्या तिथि में किए गये पुण्य कभी समाप्त नहीं होते। इस दिन विशेष कामना के लिए विशेष पूजा की जाती हैं। हर अमावस्या का अलग महत्त्व होता है। हर अमावस्या के अनुसार अलग अलग शुभ कार्य किए जाते हैं।
जिस दिन दोपहर के समय में अमावस्या तिथि हो, उस दिन पितृ पूजन किया जाता है। सनातन धर्म के अनुसार इस दिन पितरों का वास धरती पर होता है। इस दिन पितरों के लिए किया गया कर्म सीधा पितरों को प्राप्त होता है। इस दिन पितरों के निमित्त पूजा हवन और दान इत्यादि करने का विधान है।
अमावस्या के दिन भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए पूजा हवन इत्यादि कर्म करने से जीवन की बहुत सी समस्याओं का समाधान होता है। अगर आप कुण्डली में किसी तरह के दोष से पीड़ित होते हैं, तो इस दिन विशेष पूजा विधि की जाती है, जिस से हमें और भी अधिक शुभ फल की प्राप्ति होती है। जीवन के कष्टों का समाधान होता है।
इस दिन किए गए कर्म कर्ज से मुक्ति के लिए भी बहुत सहायक होते हैं। इस दिन रात्रि में विशेष हवन और पूजा विधि का पालन करने से कही रुका हुआ धन वापिस प्राप्त होता है। अगर जीवन में किसी शत्रु से परेशान हैं, तो इस दिन शत्रु विनाश की विशिष्ट विधि की पूजा का पालन करने से शत्रुओं से मुक्ति मिलती है।
अमावस्या पर कैसे करें पूजा
अमावस्या तिथि कुछ महत्तवपूर्ण कार्य करने के लिए विशेष महत्तवपूर्ण है। इस दिन करने वाले कर्म की विधि अगर शास्त्र के अनुसार हो तो, किया गया कर्म पूर्ण फल देता है। इस दिन पितरों के लिए विशेष पूजा की जाती है।
शास्त्र में हर प्रकार के लोगों का ध्यान रखते हुए पूजा विधि बताई गई हैं। पूजा विधान क्षेत्र के अनुसार अलग अलग हो सकता है। कुछ लोग अपनी लौकिंक परम्पराओं के आधार पर अलग अलग विधि का पालन करते हैं, तो कुछ शास्त्र विधि का पालन करते हुए कर्म करते हैं।
- सूर्य उदय से पूर्व उठ कर किसी तीर्थ में या पवित्र नदी में स्नान करें।
- स्वच्छ वस्त्र धारण करें, मस्तक पर सफ़ेद चन्दन का तिलक करें।
- पितृ गणों का ध्यान करते हुए दिन की शुरुवात करें।
- किसी ब्राहमण को भोजन का निमंत्रण दें।
- दोपहर का समय होने पर, पितृ गणों का ध्यान करते हुए तर्पण करें।
- ब्रहम भोज करवाएं।
- गरीब लोगों में भोजन वितरण करें।
- अन्न का दान करें।
- हवन करने से पुण्य अधिक प्राप्त होता है, पितरों के निमित्त हवन करें।
- विष्णु भगवान जी की पूजा कर के, पिण्ड दान इत्यादि कर्म भी किया जाता है।
- जिनके माता पिता जीवित हैं, वो अपने माता पिता को कोई भी वस्तु उपहार रूप में भेंट दें।
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