दुर्गा चालीसा पाठ के 10 लाभ | 10 Benefits of Durga Chalisa
10 Benefits of Durga Chalisa: माँ दुर्गा को जगत जननी कहा जाता है। माता की कृपा से दुनिया का कोई ऐसा सुख नहीं जो प्राप्त ना किया जा सकता हो, परन्तु बिना पूजा विधि के ज्ञान के कोई भी कैसे माता की पूजा करें ये प्रश्न सबके मन में आता है।
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आइए जानते हैं, दुर्गा चालीसा पाठ करने के 10 लाभ
जीवन हर दिन एक जैसा नहीं होता, कभी लाभ तो कभी हानि होती रहती है, जीवन में कष्ट भी आते जाते रहते हैं।
परन्तु कष्टों के समय में हमें किसी ऐसी शक्ति का साथ चाहिए होता है जो हमें हिम्मत दे सके, वो शक्ति किसी भी रूप में हमारी मदद करती है दुर्गा चालीसा का पाठ करने से, हमे मानसिक शक्ति प्राप्त होती है।
जीवन में सब कष्टों से उभार कर जो शक्ति हमारी मदद करती है, उसे जगदम्बा कहते हैं, माता की शक्ति से, जीवन के सभी कष्टों का अंत होता है, नवरात्र के दिनों में इसके पाठ का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
परन्तु माता की कृपा अपने भगतों पर दिन रात पूरा साल बरसती है, दुर्गा चालीसा के पाठ करने से एक ही नही अनेक लाभ हैं,
दुर्गा चालीसा के 10 लाभ
- कष्टों का होता है अंत
- सन्तान की कामना करने वालों की होती है इच्छा पूरी
- कोर्ट के मुक़दमे में मिलती है विजय
- शत्रु होते हैं समाप्त
- जीवन साथी से प्यार में होती है वृद्धि
- विद्यार्थियों को मिलती है सफलता
- रूठे प्यार को मनाया जा सकता है
- घर के कलेश का होता है समाप्त
- किसी भी प्रकार की तन्त्र बाधा का होता है अंत
- रोग होते हैं समाप्त
दुर्गा चालीसा पाठ (durga chalisa path)
नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।
नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥ 1 ॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी ।
तिहू लोक फैली उजियारी ॥ 2 ॥
शशि ललाट मुख महाविशाला ।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥ 3 ॥
रूप मातु को अधिक सुहावे ।
दरश करत जन अति सुख पावे ॥ 4 ॥
तुम संसार शक्ति लय कीना ।
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥ 5 ॥
अन्नपूर्णा हुयि जग पाला ।
तुम ही आदि सुंदरी बाला ॥ 6 ॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी ।
तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ॥ 7 ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावे ।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावे ॥ 8 ॥
रूप सरस्वती का तुम धारा ।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥ 9 ॥
धरा रूप नरसिंह को अम्बा ।
परगट भयि फाड के खम्बा ॥ 10 ॥
रक्षा कर प्रह्लाद बचायो ।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥ 11 ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माही ।
श्री नारायण अंग समाही ॥ 12 ॥
क्षीरसिंधु में करत विलासा ।
दयासिंधु दीजै मन आसा ॥ 13 ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।
महिमा अमित न जात बखानी ॥ 14 ॥
मातंगी धूमावति माता ।
भुवनेश्वरी बगला सुखदाता ॥ 15 ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी ।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥ 16 ॥
केहरि वाहन सोह भवानी ।
लांगुर वीर चलत अगवानी ॥ 17 ॥
कर में खप्पर खडग विराजे ।
जाको देख काल डर भाजे ॥ 18 ॥
तोहे कर में अस्त्र त्रिशूला ।
जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥ 19 ॥
नगरकोटि में तुम्हीं विराजत ।
तिहुँ लोक में डंका बाजत ॥ 20 ॥
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे ।
रक्तबीज शंखन संहारे ॥ 21 ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी ।
जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥ 22 ॥
रूप कराल कालिका धारा ।
सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥ 23 ॥
पडी भीढ संतन पर जब जब ।
भयि सहाय मातु तुम तब तब ॥ 24 ॥
अमरपुरी अरु बासव लोका ।
तब महिमा सब कहें अशोका ॥ 25 ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।
तुम्हें सदा पूजें नर नारी ॥ 26 ॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावे ।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवेम् ॥ 27 ॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लायि ।
जन्म मरण ते सौं छुट जायि ॥ 28 ॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।
योग न होयि बिन शक्ति तुम्हारी ॥ 29 ॥
शंकर आचारज तप कीनो ।
काम अरु क्रोध जीत सब लीनो ॥ 30 ॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥ 31 ॥
शक्ति रूप को मरम न पायो ।
शक्ति गयी तब मन पछतायो ॥ 32 ॥
शरणागत हुयि कीर्ति बखानी ।
जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥ 33 ॥
भयि प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दयि शक्ति नहिं कीन विलंबा ॥ 34 ॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो ।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥ 35 ॥
आशा तृष्णा निपट सतावे ।
रिपु मूरख मॊहि अति दर पावै ॥ 36 ॥
शत्रु नाश कीजै महारानी ।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥ 37 ॥
करो कृपा हे मातु दयाला ।
ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला । 38 ॥
जब लगि जियू दया फल पावू ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनावू ॥ 39 ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।
सब सुख भोग परमपद पावै ॥ 40 ॥
देवीदास शरण निज जानी ।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥
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