Shardiya Navratri 2024: नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, जानिए पूजा विधि और मंत्र…
Maa Brahmacharini Puja Vidhi: नवरात्रि में मां दुर्गा जी की उपासना की जाती है। इस दौरान मां दुर्गा जी की नौ स्वरूपों की उपासना की जाती है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है।
इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर को हो रही है और 4 अक्टूबर को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाएगी।
माता ब्रह्माचारिणी को तप का देवी कहा जाता है। इसदिन भक्त विशेष मंत्र और भोग के द्वारा माता को प्रसन्न करते हैं। ऐसे में इसदिन किस विधि से पूजा की जाती है, मंत्र क्या है, क्या भोग लगाएं? इसके बारे में जानना बेहद जरूरी है।
तो चलिए, यहां VAMA के ज्योतिषाचार्य डॉ. आचार्य देव से जानते हैं- नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा कैसे करें?
सबसे पहले मां दुर्गा जी का द्वितीय स्वरूप को जान लेते हैं।
ब्रह्मचारिणी : मां दुर्गा का दूसरा रूप
‘ब्रह्मचारिणी’ दो शब्द ‘ब्रह्म’ और ‘चारिणी’ से मिलकर बना है। जहां ‘ब्रह्म’ का अर्थ है तपस्या, वहीं ‘चारिणी’ का अर्थ है आचरण करने वाली।
अर्थात, ब्रह्मचारिणी का शाब्दिक अर्थ है, ‘तप का आचरण करने वाली’। महादेव को अपने पति के रूप में पाने के लिए की गई कठोर तपस्या के कारण ही देवी के ब्रह्मचारिणी स्वरूप (brahmacharini avtar) का आविर्भाव हुआ था।
मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से भक्तों को शुभ फल की प्राप्ति होती है और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। साथ ही शक्ति, बुद्धि और ज्ञान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
आइए अब यहां जानते हैं, माता ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि और मंत्र क्या है?
मां ब्रह्मचारिणी पूजा विधि (Maa Brahmacharini Puja Vidhi)
- नवरात्रि के दूसरे दिन यानी 4 अक्टूबर, 2024 को स्नानादि से निवृत्त होकर मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान करें।
- साथ ही कलश के पास मां ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा को स्थापित करें।
- माता को सबसे पहले पंचामृत से स्नान कराएं।
- इसके बाद रोली, अक्षत, चंदन आदि अर्पित करें।
- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में गुड़हल या कमल के फूल का ही प्रयोग करें।
- मां को मीठे पान का भोग लगाएं।
- दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
- सफेद चंदन के चूरे में कपूर रखकर उसे प्रज्वलित करें, अग्नि शांत करके उसके धूएं से मां ब्रह्मचारिणी की आरती करें।
मां ब्रह्मचारिणी का बीज मंत्र
ह्रीं श्री अम्बिकायै नमः.
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पूजा का नाम | मंदिर (स्थान) |
ऋण मुक्ति पूजा | ऋण मुक्तेश्वर महादेव मंदिर (उज्जैन) |
शनि साढे़ साती | शनि शिंगणापुर देवस्थानम, महाराष्ट्र |
राहु ग्रह शांति पूजा | जरकुटिनाथेश्वर महादेव मंदिर, प्रयागराज |
माँ बगलामुखी महापूजा | माँ बगलामुखी धाम, उज्जैन |
पितृ दोष शांति एवं त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा | धर्मारण्य तीर्थ, गया, बिहार |
मां ब्रह्मचारिणी के लिए भोग (Maa Brahmacharini Ka Bhog)
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी को चीनी, सफेद मिठाई या मिश्री का भोग लगाने का विधान है। इस दिन मिश्री, दूध और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए। इन चीजों का भोग लगाने से भक्त को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त है। साथ ही आरोग्य की प्राप्ति होती है।
मां ब्रह्मचारिणी पूजा मंत्र (Maa Brahmacharini Puja Mantra)
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
मां ब्रह्मचारिणी की आरती (Maa Brahmacharini ki Aarti)
पूजा संपन्न होने के बाद मां ब्रह्मचारिणी की आरती अवश्य करें।
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।
मां ब्रह्मचारिणी की कथा (maa brahmacharini ki katha)
पौराणिक कथाओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी ने अपने पूर्व जन्म में राजा हिमालय के घर में पुत्री रूप में लिया था। तब नारद के उपदेश से इन्होने भगवान शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी।
इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपस्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हज़ार वर्ष उन्होंने केवल फल, मूल खाकर व्यतीत किए और सौ वर्षों तक केवल शाक पर निर्वाह किया था।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए देवी ने खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के भयानक कष्ट सहे। इस कठिन तपस्या के पश्चात तीन हज़ार वर्षों तक केवल ज़मीन पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर वे भगवान शिव की आराधना करती रहीं।
इसके बाद उन्होंने सूखे बेलपत्रों को भी खाना छोड़ दिया और कई हज़ार वर्षों तक वे निर्जल और निराहार तपस्या करती रहीं। पत्तों को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम ‘अर्पणा’ भी पड़ गया।
कई हज़ार वर्षों की इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का शरीर एकदम क्षीण हो उठा,उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मेना अत्यंत दुखी हुई और उन्होंने उन्हें इस कठिन तपस्या से विरक्त करने के लिए आवाज़ दी ‘उ मा’।
तब से देवी ब्रह्मचारिणी का एक नाम उमा भी पड़ गया। उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी देवी ब्रह्मचारिणी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे।
अंत में पितामह ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वर में कहा-‘हे देवी!आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की जैसी तुमने की हैं। तुम्हारे इस आलोकक कृत्य की चारों ओर सराहना हो रही हैं।
तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी। भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हे पति रूप में प्राप्त अवश्य होंगे।अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हे बुलाने आ रहे हैं।’
इसके बाद माता घर लौट आएं और कुछ दिनों बाद ब्रह्मा के लेख के अनुसार उनका विवाह महादेव शिव के साथ हो गया।
ये तो थी, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि और मंत्रों (Maa Brahmacharini Ki Puja Vidhi) की बात। ऐसे ही सनातन धर्म की अन्य पूजा और मंत्रों की जानकारी के लिए वामा ऐप से जुड़े रहें।