Masik Kalashtami 2024: कालाष्टमी की पूजा विधि और काल भैरव मंत्र, यहां जानिए
Masik Kalashtami 2024: कालाष्टमी भैरव अष्टमी के नाम से भी जानी जाती है। इस दिन रुद्र के अवतार भैरव का जन्म माना जाता है जिसे रुद्राष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
काल भैरव के 12 अवतार हुए हैं जिनमें से रोरव भैरव, स्वर्ण आकर्षण भैरव एवं काल भैरव मुख्य रूप से जाने जाते हैं।
रुद्र का अवतार होने से काल भैरव स्वरूप में दिखाया जाता है। नाम से ही शत्रु का विनाश करने वाले दुख दरिद्र का हरण करने वाले वह तंत्र बाधा प्रेत बाधा भूत बाधा का निवारण करने वाले स्वामी माने गए हैं।
भैरव यथा रूप अपना पूर्ण प्रभाव कलयुग में दिखने वाले एक ही मात्रा देवता माने गए हैं भैरव की साधना साधक रूप से की जाती है।
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भैरव की साधना में भक्तों को बहुत ही कठोर नियमों का आचरण करना पड़ता है। भैरव शीघ्र ही प्रसन्न होकर भक्तों को उनका मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
काल भैरव अष्टमी एकमात्र ऐसी अष्टमी है जो साधक के सभी कष्टों का निवारण करती है। काल भैरव की अष्टमी मां दुर्गा अष्टमी के समान अति प्रभावशाली व दुख निवारणशाली मानी गई है।
तो आइए, मार्च माह में पड़ने वाली कालाष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त और व्रत कथा जानते हैं।
कालाष्टमी मुहूर्त 2024 (Masik Kalashtami 2024 date)
कालाष्टमी प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है जोकि भगवान शिव के ही एक रौद्र रूप भगवान भैरव को समर्पित है। प्रत्येक माह में आने के कारण यह त्योहार एक वर्ष में कुल 12 बार, तथा अधिक मास की स्थिति में 13 बार मनाया जाता है। काल भैरव को पूजे जाने के कारण इसे काल भैरव अष्टमी अथवा भैरव अष्टमी भी कहा जाता है।
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कालाष्टमी पूजा विधि (Masik Kalashtami Puja Vidhi)
- काल भैरव की पूजा में सबसे एक काला आसान लगाएं।
- उसपर साधक को स्वयं काले रंग का वस्त्र धारण करके पूर्वाभिमुख बैठना चाहिए।
- भगवान भैरव के निमित्त सरसों के तेल का एक दीपक लगाएं।
- दीपक के सामने सात लौंग का भोग लगाया जाता है
- 7 पतासे, एक मीठा पान, एक पानी वाला नारियल सामने रखें।
- ये सभी वस्तुएं भैरव जी को अर्पण करें।
- इसके बाद काल भैरव मंत्रों का जाप और स्त्रोत का पाठ करें।
काल भैरव मंत्र (kalashtami mantra)
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:॥
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ॥
भैरव स्तोत्र (bhairav stotra)
यं यं यं यक्ष रूपं दशदिशिवदनं भूमिकम्पायमानं।
सं सं सं संहारमूर्ती शुभ मुकुट जटाशेखरम् चन्द्रबिम्बम्।।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुखं चौर्ध्वरोयं करालं।
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।1
रं रं रं रक्तवर्ण कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्राविशालम्।
घं घं घं घोर घोष घ घ घ घ घर्घरा घोर नादम्।।
कं कं कं काल रूपं घगघग घगितं ज्वालितं कामदेहं।
दं दं दं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।2
लं लं लं लम्बदंतं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वकरालं।
धूं धूं धूं धूम्र वर्ण स्फुट विकृत मुखं मासुरं भीमरूपम्।।
रूं रूं रूं रुण्डमालं रूधिरमय मुखं ताम्रनेत्रं विशालम्।
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।3
वं वं वं वायुवेगम प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपम्।
खं खं खं खड्ग हस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करम् भीमरूपम्।।
चं चं चं चालयन्तं चलचल चलितं चालितं भूत चक्रम्।
मं मं मं मायाकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।4।।
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालांधकारम्।
क्षि क्षि क्षि क्षिप्रवेग दहदह दहन नेत्र संदिप्यमानम्।।
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहनगर्जित भूमिकम्पं।
बं बं बं बाललील प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।5।।
ओम तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पांत दहन प्रभो!
भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातु महर्षि!!
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कालाष्टमी के दिन इन बातों का रखें विशेष ध्यान
- काल भैरव को दही में काले उड़द ही मिलाकर भोग लगाएं।
- प्रसाद के पतासे को काले कुत्ते को खिलाए जाते हैं, ऐसा करने से भैरव शीघ्र ही प्रसन्न होकर साधक की मन वांछित इच्छा को पूर्ण करते हैं।
- पूजा के दौरान कुछ विघ्न आते हैं हमें उनसे सावधान रहने की आवश्यकता है। अतः किसी पंडित जी के सानिध्य में यह पूजा संपन्न करें।
भैरव अष्टमी व्रत कथा (Kaal Bhairav Ashtami Katha)
एक बार भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानि त्रिदेवों के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया है कि उनमें से कौन सर्वश्रेष्ठ है। विवाद को सुलझाने के लिये समस्त देवी-देवताओं की सभा बुलाई गई। सभा ने काफी मंथन करने के पश्चात जो निष्कर्ष दिया उससे भगवान शिव और विष्णु तो सहमत हो गए, लेकिन ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं हुए। यहां तक कि भगवान शिव को अपमानित करने का भी प्रयास किया जिससे भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गये। भगवान शंकर के इस भयंकर रूप से ही काल भैरव की उत्पत्ति हुई। सभा में उपस्थित समस्त देवी देवता शिव के इस रूप को देखकर थर्राने लगे।
कालभैरव जो कि काले कुत्ते पर सवार होकर हाथों में दंड लिये अवतरित हुए थे ने ब्रह्मा जी पर प्रहार कर उनके एक सिर को अलग कर दिया। ब्रह्मा जी के पास अब केवल चार शीश ही बचे उन्होंने क्षमा मांगकर काल भैरव के कोप से स्वयं को बचाया।
ब्रह्मा जी के माफी मांगने पर भगवान शिव पुन: अपने रूप में आ गए, लेकिन काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष चढ़ चुका था जिससे मुक्ति के लिये वे कई वर्षों तक यत्र तत्र भटकते हुए वाराणसी में पंहुचे जहां उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली। भगवान काल भैरव को महाकालेश्वर, डंडाधिपति भी कहा जाता है। वाराणसी में दंड से मुक्ति मिलने के कारण इन्हें दंडपाणी भी कहा जाता है।
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ये तो थी, कालाष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा की जानकारी। ऐसे ही सनातन धर्म की अन्य व्रत-त्योहारों को जानने के लिए VAMA ऐप डाउनलोड करें।