Siddh Kunjika Stotram: करें दुर्गा सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ, मिलेंगे चमत्कारी लाभ
Siddh Kunjika Stotram: मां दुर्गा (Maa Durga) को शक्ति रूप में पूजा जाता है। नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। इस दौरान मां को प्रसन्न करने के लिए भक्त प्रतिदिन चालीसा, आरती, दुर्गा सप्तशती, सिद्ध कुंजिका स्तोत्र और कुछ विशेष मंत्रों का पाठ करते हैं।
मान्यता है कि नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का संपूर्ण पाठ अवश्य करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती में 13 अध्याय हैं जिसमें 700 श्लोकों के माध्यम से मां दुर्गा की आराधना की जाती है।
आपको बता दें, दुर्गा सप्तशती का संपूर्ण पाठ करने में कम से कम 3-4 घंटे का समय लगता है, लेकिन आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में प्रतिदिन संपूर्ण पाठ करना सबके लिए संभव नहीं हो पाता है।
ऐसे में आपके पास समय कम है तो आप दुर्गा सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Durga Siddh Kunjika Stotram) का पाठ करके भी मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
मान्यता है कि सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddh Kunjika Stotram) में दिए गए मंत्र अत्यंत शक्तिशाली माने जाते हैं। इनमें इच्छाओं को पूर्ण करने की शक्ति होती है।
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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ विधि (siddha kunjika path vidhi)
- माता की सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करते समय शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- पाठ के दौरान मां दुर्गा के समक्ष घी का दीपक जला लें और पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ आप सुबह एवं शाम दोनों समय कर सकते हैं।
- पाठ करते समय मंत्रों का उच्चारण स्पष्ट होना चाहिए।
- पाठ करते समय हाथ में जल, फूल और अक्षत जरूर ले लें।
- मनचाहा फल पाने के लिए संपूर्ण नवरात्रि के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।
तो आइए, नवरात्रि के दौरान सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ कर मां दुर्गा का असीम आशीर्वाद प्राप्त करें।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (siddha kunjika stotram)
॥सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥1॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥2॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥3॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥4॥
॥अथ मन्त्रः॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”
॥इति मन्त्रः॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥1॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥2॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥4॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥5॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥7॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥8॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥
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