Saraswati Chalisa: सरस्वती चालीसा पाठ विधि और लाभ…

अज्ञान रूपी अन्धकार से प्रकाश की और ले जाने वाली ज्ञान की देवी सरस्वती चालीसा (Saraswati Chalisa) पाठ से प्रसन्न होती है।

Saraswati Chalisa: धर्म शास्त्रों के अनुसार सरस्वती माता को बुद्धि की देवी माना गया हैं। सरस्वती जी की कृपा से व्यक्ति को बुद्धिबल के साथ निर्णय शक्ति का बल प्राप्त होता है। सरस्वती चालीसा का पाठ मनुष्य को जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति प्रदान करता है।

सरस्वती माता बुद्धि की देवी हैं। सरस्वती चालीसा (Saraswati Chalisa) का पाठ करने से माँ सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। महाकाली, महालक्ष्मी और माँ सरस्वती शक्ति के रूप हैं। तीन गुणों से युक्त इन देवियों में मां सरस्वती का विशेष प्रभाव है। अगर जीवन में संकटों से लड़ने की बुद्धि हो तो मनुष्य निरंतर आगे बढ़ता है। जीवन में उन्नति करता है। 

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पूजा का नाममंदिर (स्थान)
ऋण मुक्ति पूजाऋण मुक्तेश्वर महादेव मंदिर (उज्जैन)
शनि साढे़ सातीशनि शिंगणापुर देवस्थानम,महाराष्ट्र
लक्ष्मी कुबेर महायज्ञ और रुद्राभिषेकजागेश्वर कुबेर मंदिर ,अल्मोड़ा, उत्तराखंड
राहु ग्रह शांति पूजाजरकुटिनाथेश्वर महादेव मंदिर ,प्रयागराज

सरस्वती चालीसा (Saraswati Chalisa) का पाठ करने से मनुष्य के घर में सभी प्रकार की वृद्धि देखी जाती है।

सरस्वती चालीसा पाठ विधि (Saraswati Chalisa Path Vidhi) 

सरस्वती चालीसा का पाठ शुद्ध और निर्मल बुद्धि के साथ किया जाता है। बुद्धि और मन को शांत रखते हुए सरस्वती चालीसा पाठ विधि का पालन करें। 

  • प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में शुद्ध जल से स्नान करें। 
  • शुद्ध सफेद या पीले वस्त्र धारण करें। 
  • शुद्ध स्वच्छ आसन बिछाएं। 
  • सरस्वती माता की प्रतिमा स्थापित करें। 
  • माता को शुद्ध जल से स्नान करवाएं। 
  • माँ सरस्वती को श्वेत चंदन का तिलक लगाएं। 
  • सफेद फूल भेंट करें। 
  • धूप दीप से पूजन करें। 
  • सरस्वती माँ को पेड़ा अर्पण कर भोग लगाएं। 
  • सरस्वती माता का ध्यान करें और बीज मंत्र का जाप करें। 
  • मंत्र जाप करने के बाद सरस्वती चालीसा (Saraswati Chalisa) का पाठ करें। 
  • पाठ के बाद फिर से सरस्वती के मंत्रों का जाप करें।
  • मंत्र जाप स्फटिक की माला से करें, एवं स्फटिक धारण करें।
  • जो लोग सुबह जल्दी नहीं उठ सकते, वो किसी भी समय इस पाठ को कर सकते हैं।

सरस्वती चालीसा (Saraswati Chalisa)

॥ दोहा ॥

जनक जननि पद्मरज,

निज मस्तक पर धरि ।

बन्दौं मातु सरस्वती,

बुद्धि बल दे दातारि ॥

पूर्ण जगत में व्याप्त तव,

महिमा अमित अनंतु।

दुष्जनों के पाप को,

मातु तु ही अब हन्तु ॥

॥ चालीसा ॥

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी ।

जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी ॥

जय जय जय वीणाकर धारी ।

करती सदा सुहंस सवारी ॥

रूप चतुर्भुज धारी माता ।

सकल विश्व अन्दर विख्याता ॥

जग में पाप बुद्धि जब होती ।

तब ही धर्म की फीकी ज्योति ॥

तब ही मातु का निज अवतारी ।

पाप हीन करती महतारी ॥

वाल्मीकिजी थे हत्यारा ।

तव प्रसाद जानै संसारा ॥

रामचरित जो रचे बनाई ।

आदि कवि की पदवी पाई ॥

कालिदास जो भये विख्याता ।

तेरी कृपा दृष्टि से माता ॥

तुलसी सूर आदि विद्वाना ।

भये और जो ज्ञानी नाना ॥

तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा ।

केव कृपा आपकी अम्बा ॥

करहु कृपा सोइ मातु भवानी ।

दुखित दीन निज दासहि जानी ॥

पुत्र करहिं अपराध बहूता ।

तेहि न धरई चित माता ॥

राखु लाज जननि अब मेरी ।

विनय करउं भांति बहु तेरी ॥

मैं अनाथ तेरी अवलंबा ।

कृपा करउ जय जय जगदंबा ॥

मधुकैटभ जो अति बलवाना ।

बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना ॥

समर हजार पाँच में घोरा ।

फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा ॥

मातु सहाय कीन्ह तेहि काला ।

बुद्धि विपरीत भई खलहाला ॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी ।

पुरवहु मातु मनोरथ मेरी ॥

चंड मुण्ड जो थे विख्याता ।

क्षण महु संहारे उन माता ॥

रक्त बीज से समरथ पापी ।

सुरमुनि हदय धरा सब काँपी ॥

काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा ।

बारबार बिन वउं जगदंबा ॥

जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा ।

क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा ॥

भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई ।

रामचन्द्र बनवास कराई ॥

एहिविधि रावण वध तू कीन्हा ।

सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा ॥

को समरथ तव यश गुन गाना ।

निगम अनादि अनंत बखाना ॥

विष्णु रुद्र जस कहिन मारी ।

जिनकी हो तुम रक्षाकारी ॥

रक्त दन्तिका और शताक्षी ।

नाम अपार है दानव भक्षी ॥

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा ।

दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा ॥

दुर्ग आदि हरनी तू माता ।

कृपा करहु जब जब सुखदाता ॥

नृप कोपित को मारन चाहे ।

कानन में घेरे मृग नाहे ॥

सागर मध्य पोत के भंजे ।

अति तूफान नहिं कोऊ संगे ॥

भूत प्रेत बाधा या दुःख में ।

हो दरिद्र अथवा संकट में ॥

नाम जपे मंगल सब होई ।

संशय इसमें करई न कोई ॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई ।

सबै छांड़ि पूजें एहि भाई ॥

करै पाठ नित यह चालीसा ।

होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा ॥

धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै ।

संकट रहित अवश्य हो जावै ॥

भक्ति मातु की करैं हमेशा ।

निकट न आवै ताहि कलेशा ॥

बंदी पाठ करें सत बारा ।

बंदी पाश दूर हो सारा ॥

रामसागर बाँधि हेतु भवानी ।

कीजै कृपा दास निज जानी ॥

॥दोहा॥

मातु सूर्य कान्ति तव,

अन्धकार मम रूप ।

डूबन से रक्षा करहु,

परूँ न मैं भव कूप ॥

बलबुद्धि विद्या देहु मोहि,

सुनहु सरस्वती मातु ।

राम सागर अधम को,

आश्रय तू ही देदातु ॥

 सरस्वती चालीसा के लाभ (Benefits Of Saraswati Chalisa)

ज्ञान की देवी सरस्वती जीवन से अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाली हैं। जब मनुष्य को सत्य का ज्ञान ज्ञान होता है, तो वह जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सफल होता है। जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए ज्ञान का होना बहुत जरुरी है। ऐसी की कृपा प्राप्ति के लिए सरस्वती जी की उपासना की जाती है। 

  • सरस्वती चालीसा का पाठ करने से मनुष्य को निर्मल बुद्धि की प्राप्ति होती है।
  • इस पाठ को करने से मंदबुद्धि को भी तीव्र बुद्धि की प्राप्ति होती है।
  • चालीसा का पाठ करने से मनुष्य सभी प्रकार की समृद्धि प्राप्त करता है। 
  • इस पाठ के करने से विद्यार्थियों को परीक्षाओं में सफलता प्राप्त होती है। 
  • नित्य पाठ करने से मनुष्य को धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
  • माँ का ये पाठ यश एवं कीर्ति देने वाला है। 
  • भगवती का ये पाठ पुष्टि प्रदान करता है। 
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