Panch Dev Puja: ऐसे करें पंचदेव पूजा, होगी धन धान्य की बारिश

अगर आप भी हर ख़ुशी के अवसर पर या हर दिन भगवान की पूजा करते हैं तो जानें पंच देव पूजा (Panch Dev Puja), विधि और मंत्र...

Panch Dev Puja: सनातन धर्म में किसी भी धार्मिक कार्य के शुरू में देवों की पूजा करने का विधान है। परंतु कभी-कभी पंडित जी को बुलाकर पूजा करवाने की इच्छा होती है, परंतु व्यवस्था नहीं हो पाती जिसके कारण सालों साल घरों में पूजा नहीं हो पाती है। 

आपकी इसी दुविधा के निवारण के लिए लेकर आए हैं, सरल पूजा पद्धति। जिसके माध्यम से आप अपने घर में नित्य पांच देवों का पूजन करके वरदान प्राप्त कर सकते हो। जिससे आपके घर में सुख समृद्धि, धन-धान्य की वृद्धि एवं पुत्र-पौत्र की वृद्धि होगी। 

तो आइए, यहां जानते हैं प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य डॉ आचार्य देव से जानते हैं- पंचदेव कौन हैं और पंच देव जी की पूजा (Panch Dev Puja) कैसे करें?

सबसे पहले पंचदेव को समझते हैं।

पंच देव कौन हैं (Panch devta)

सबसे पहले हमें ज्ञात करना है कि पंच देव कौन से हैं। सूर्य, गणेश, विष्णु, महेश और दुर्गा जी इन्हें पंच देवों में शामिल किया गया है। ये पंचदेव पंचतत्व का स्वरूप है। इसी कारण इनका पूजन नित्य रूप से किया जाता है। 

सृष्टि की रचना भी पांच तत्वों के आधार पर ही हुई है। हमारा शरीर भी पंच तत्वों से बना है। इन पांच देवों की पूजा करने से हमारा शरीर आरोग्य को प्राप्त करता है। जिससे हमें सृष्टि के पांच तत्वों का उपभोग करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। 

रविर्विनायकश्चण्डी ईशो विष्णुस्तथैव च।

अनुक्रमेण पूज्यन्ते व्युत्क्रमे तु महद् भयम्।।

उपरोक्त श्लोक के माध्यम से पंचदेव पूजन का क्रम हमें इस प्रकार से प्राप्त होता है। सबसे पहले सूर्य भगवान का पूजन करें, फिर गणेश और मां दुर्गा का पूजन करें, फिर शिव का पूजन करें और अंत में सृष्टि के पालन करता विष्णु जी का पूजन किया जाता है। 

हमारी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गणेश जी का पूजन सबसे पहले किया जाता है। जिसे हम गणेश लक्ष्मी पूजन के नाम से जानते हैं। गणेश लक्ष्मी पूजन के बाद सूर्य भगवान का पूजन किया जाता है। उपरांत महेश व विष्णु भगवान जी का पूजन किया जाता है। आईए जानते हैं कैसे करें इन पंच देवों का पूजन… 

पंच देव पूजा विधि (Panch dev Puja Vidhi) 

सनातन धर्म में हर चीज का नियम निर्धारित किया गया है। इन नियमों के आधार पर सभी कार्यों को किया जाता है। पंचदेव पूजा के लिए भी इसी प्रकार के विधान और नियम निर्धारित किए गए हैं। इन्ही नियमों के अनुसार पूजा कर्म का पालन किया जाता है। 

किसी भी प्रकार के शुभ कर्म में पंच देव पूजन किया जाता है। नित्य पूजा के रूप में भी इन्ही पंच देवों का पूजन किया जाता है।

आइए जानते हैं कैसे करें पंच देव पूजन…

  • पूजन करने के लिए सूर्य उदय से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में उठें।
  • नित्य कम से निवृत होकर शुद्ध शीतल जल से स्नान करें।
  • स्वच्छ निर्मल वस्त्र धारण करें। 
  • शुद्ध स्वच्छ निर्मल आसन पर पूर्व की ओर मुख कर के बैठें।  
  • पूजन हेतु जैसा आपका समर्थ है, उसके अनुसार सामग्री एकत्रित करें।
  • गाय के दूध का शुद्ध देशी घी लें, उसका दीपक जलाएं।
  • सभी देवों को पंचा अमृत से स्नान करवाएं, नही हो तो केवल जल से स्नान करवाएं। 
  • देवों को चन्दन का तिलक लगाएं, स्वयं भी तिलक धारण करें।
  • फूल माला अर्पण करें।
  • फल और मिठाई का भोग लगाएं।
  • स्तोत्र पाठ इत्यादि से देवों को प्रसन्न करें। 

पंचदेव पूजन सम्पूर्ण विधि

1. आत्मशुद्धि के लिए आचमन करें:-

“ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः मंत्र का तीन बार आचमन करें। इसके बाद, “ॐ विष्णवे नमः” ये मंत्र बोलें।

बायें हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से अपने ऊपर और पूजा सामग्री पर डालें और ये श्लोक पढ़ें:-

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। 

यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।

ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु।

2.आसन शुद्धि करें:-

आसन शुद्धि के लिए ये मंत्र का बोलें और आसन पर जल डालें।

ॐ पृथ्वि! त्वया धृता लोका देवि ! त्वं विष्णुना धृता।

त्वं च धारय मां देवि ! पवित्रां कुरु चासनम् ।।

3. शिखा बांधते समय निचे लिखा मंत्र बोलें।

ॐ चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते। 

तिष्ठ देवि शिखाबद्धे तेजोवृद्धि कुरुष्व मे ।।

ॐ मानस्तोके तनये मानऽ आयुषि मानो गोषु मानोऽ अश्वेषुरीरिषः । 

मानोव्वीरान् रुद्रभामिनो व्वधीर्हविष्मन्तः सदमित्त्वा हवामहे । 

4. कुशा धारण करें:- 

बाएं हाथ में कुश की तीन और दाएं हाथ में दो अंगूठी बना कर धारण करें।

“ॐ पवित्रोस्थो वैष्णव्यो सवितुर्व्वः प्रसवऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रोण सूर्यस्य रश्मिभिः। तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुनेतच्छकेयम्।”

ललाट पर कुंकुम तिलक लगाएं। तिलक लगाते हुए निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें:-

“ॐ आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा मरुद्गणाः।

तिलकन्ते प्रयच्छन्तु धर्मकामार्थसिद्धये।”

5. पृथ्वी का पूजन करें:-

दायें हाथ को पृथ्वी पर रखें और निम्न मंत्र बोल कर पृथ्वी का पूजन करें:-

आधारभूता जगतस्त्वमेका महीस्वरूपेण यतः स्थितासि। 

अपां स्वरूपस्थितया त्वयैत- दाप्यायते कृत्स्नमलद्ध्यवीर्ये।। 

ओम् भूः पृथ्व्ये आधार शक्त्यै नमः

6. दीपक का पूजनः करें:-

गरुड्मुद्रा दिखाकर घण्टा बजाएं और दीपक को दाहिनी ओर स्थापित करें। उसके बाद इस मंत्र से दीपकपूजन करें 

भो दीप देव रूपस्त्वं कर्म साक्षी ह्यविघ्नकृत् |

यावत् कर्म समाप्ति स्यात् तावत् त्वं सुस्थिरो भव ||

7. शंख का पूजन करें:-

शंख को चन्दन का लेप लगाएंऔर देवताओं के बायीं ओर पुष्पों पर रखकर ये मंत्र बोलें

त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे। 

नमितः सर्वदेवैश्च पाइजन्या नमोऽस्तुते ।।

पाञ्चजन्याय विद्महे पावमानाय धीमहि तन्नः शंखः प्रचोदयात्।

8. बजाने वाले घंटे का पूजन करें:-

ॐ सर्ववाद्यमयीघण्टायै नमः आगमार्थन्तु देवानां गमनार्थन्तु रक्षसाम्। 

कुरु घण्टे वरं नादं देवतास्थानसत्रिधो।। 

9. गणेश गौरी पूजन:-

हाथ में चावल लेकर, भगवान गणेश का ध्यान करें:-

“गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्।।”

गौरी का ध्यान करें:-

“नमो देव्यै महादेव्यै शिवाये सततं नमः। 

नमः प्रकृत्ये भद्राये नियताः प्रणताः स्म ताम् ।। 

श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, ध्यानं समर्पयामि।”

गणेश जी का आवाहन करें:-

हाथ में चावल लेकर “

एह्येहि हेरम्ब महेशपुत्र! समस्तविघ्नोधविनाशदक्ष!। 

माङ्गल्यपूजाप्रथमप्रधान गृहाण पूजा भगवन्! नमस्ते।।

ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च।”

गौरी का आवाहन करें:-

“ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन। 

ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ।। 

हाथ के चावल गौरी गणेश जी को अर्पण करें।

प्रतिष्ठाः

हाथ में चावल लेकर गौरी गणेश जी पर डालते रहें।

“ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु। 

विश्वे देवास इह मादयन्तामो 3 म्प्रतिष्ठ ।। 

अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्ये प्राणाः क्षरन्तु च। 

अस्यै देवत्वमचयैि मामहेति च कश्चन ।। 

गणेशाम्बिके। सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम् ।

10. स्वस्तिवाचन पाठ करें। (इसे शांति पाठ भी कहा जाता है।)

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। 

स्वस्ति नस्तार्थ्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।” 

इस मंत्र का उच्चारण करें और स्वस्तिवाचन पूरा करें।

देव पूजा के जितने साधन आपके पास हों उन सब से देवताओं का पूजन करें।

पंचदेव ध्यान मंत्र (Panch Dev Puja Mantra)

श्री गणेश मंत्रः

“प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम्। उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड-माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम्।।”

सूर्य देव मंत्रः

“प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं, रूपं हि मण्डलमृचोअथ तनुर्यन्जूषि। 

सामानि यस्य किरणाः प्रभावादिहेतु, ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिन्त्यरूपम्।।”

भगवान विष्णु मंत्रः

“प्रातः स्मरामि भवभीतिमहार्तिनाशं नारायणं गरुडवाहनमब्जनाभम्। महाभिभृतवरवारणमुक्तिहेतुं चक्रायुधं तरुणवारिजपत्रनेत्रम् ॥”

भगवान शिव मंत्रः

“प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम् । खद्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥”

मां दुर्गा मंत्रः

प्रातः स्मरामि शरदिन्दुकरोज्ज्वलाभां सद्रत्नवन्मकरकुण्डलहारभूषाम् । दिव्यायुधोर्जितसुनीलसहस्त्रहस्तां रक्तोत्पलाभचरणां भवतीं परेशाम् ।।

पंचदेव गायत्री मंत्र:-

गणेश गायत्री मंत्र-

ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात।।

गौरी गायत्री मंत्र

ॐ महादेव्यै विद्महे दुर्गायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्।।

विष्णु गायत्री महामंत्र-

ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात् ।। 

भगवान शिव- 

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि

तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

सूर्य गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः स्वः

तत्सवितुर्वरेण्यं

भर्गो देवस्य धीमहि।

धियो यो नः प्रचो॒दयात्॥

पूजा कर्म में आप अपने सामर्थ्य के अनुसार कम या अधिक कर सकते हैं। हमारे नित्य कर्म के कुछ आवश्यक मंत्र हैं। जिनका ध्यान हमें प्रातः काल निश्चित रूप से करना चाहिए। 

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