Rashi Aur Rog: अपनी राशि अनुसार जानें, आपको हो सकती है कौन सी बीमारी
Rashi Aur Rog: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों का प्रभाव किसी ना किसी रूप में हमारे उपर पड़ता रहता है। ग्रहों के स्वरूप के अनुसार अलग अलग प्रभाव देखा जाता है। ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों का गोचर राशियों और नक्षत्रों में होता है। जिसके प्रभाव से राशियों के रोगों का विचार किया जाता है।
तो आइए, VAMA के ज्योतिषाचार्य डॉ आचार्य देव से जानें, राशि के अनुसार आपको कौन सी बीमारी (Rashi Aur Rog) हो सकती है?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राशि अनुसार रोगों का विवरण हमें शास्त्रों में प्राप्त होता है। हर राशि में कुछ ना कुछ ऐसा होता है, कि उसमे किसी चीज़ की प्रबलता होती है, तो किसी अन्य चीज़ की कमी होती है। किस राशि को कौनसे रोग अधिक होने के सम्भावना होती है।
आइए, जानते हैं।
राशियां और रोग विचार
राशियां | रोग |
मेष | मुख रोग, नेत्र रोग, सिर दर्द, मेद रोग, मानसिक तनाव, उन्माद और अनिद्रा |
वृष | श्वासनली, आँख नाक गले और घट रोग |
मिथुन | मज्जा, श्वास, रक्त विकार और चरम रोग |
कर्क | रक्त और दिल के रोग |
सिंह | मेद वृद्धि, वायु विकार और उदार विकार |
कन्या | जिगर, लीवर, अपच, मन्दाग्नि, कमर और शरीर दर्द |
तुला | शुगर, मूत्र विकार, पेट के विकार और हर्निया |
वृश्चिक | बासीर, भगन्दर, एड्स, और गुप्त रोग |
धनु | लीवर, मौसम परिवर्तन के रोग, हड्डी टूटना, मज्जा के रोग, और रक्त के विकार |
मकर | वात जन्य रोग, चमड़ी के रोग, ब्लड प्रेसर के रोग और ठण्ड लगने वाले रोग, |
कुम्भ | मानसिक रोग, शरीर में गांठ, शरीर में गर्मी और जलोदर के रोग |
मीन | खून के रोग, स्टमक की बीमारी, अल्सर, अलर्जी और गठिया रोग |
ज्योतिष शास्त्र में काल पुरुष की कल्पना की गई है। जिसमे सभी राशियों की कल्पना एक पुरुष की आकृति के अनुसार की गई है। जिस से असानी से समझा जा सकता है, कि कौनसी राशि का स्थान और प्रभाव हमारे शरीर में होता है।
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पूजा का नाम | मंदिर (स्थान) |
ऋण मुक्ति पूजा | ऋण मुक्तेश्वर महादेव मंदिर (उज्जैन) |
शनि साढे़ साती | शनि शिंगणापुर देवस्थानम, महाराष्ट्र |
लक्ष्मी कुबेर महायज्ञ और रुद्राभिषेक | जागेश्वर कुबेर मंदिर, अल्मोड़ा, उत्तराखंड |
राहु ग्रह शांति पूजा | जरकुटिनाथेश्वर महादेव मंदिर, प्रयागराज |
राशियों से रोग ज्ञान करने के बाद हमे जिज्ञासा होती है, कि हमे ये भी पता लग जाए की शरीर के किस अंग में रोग होगा तो हम और सावधान हो जाते हैं। समय रहते उपाय के माध्यम से रोगों और कष्टों से बचा जा सकता है।
राशि और अंग विचार
राशियाँ | सम्बंधित अंग |
मेष | माथा, दिमाक, सिर |
वृष | आँख, कान नाक गला, होठ, मुख, दांत, गला और जीभ |
मिथुन | गर्दन, गला, बाजू, कन्धा, कोहनी, कलाई, छाती, स्तन |
कर्क | दिल, श्वास नली, फेफड़े |
सिंह | आंत, पेट, दिल, गुर्दा, नाभि |
कन्या | नितम्ब और कमर |
तुला | गर्भाशय, बस्ती, मूत्राशय |
वृश्चिक | गर्भाशय, गुदा, गुप्तांग |
धनु | दोनों जांघ का जोड़ |
मकर | घुटना और जांघ |
कुम्भ | जांघ के नीचे का भाग और पिंडली |
मीन | टखना, पैर, पैर के निचे का भाग और उंगलियाँ |
ज्योतिष शास्त्र में रोग विचार के लिए द्रेष्काण का प्रयोग किया जाता है। द्रेष्काण क्या होता है उसको समझते हैं।
ज्योतिष शास्त्र में द्रेष्काण का अर्थ लग्न का 10व़ा हिस्सा होता है। एक लग्न 30 अंश का होने से एक हिस्सा 10 अंश का होता है। इस तरह एक लग्न के 3 द्रेष्काण होते हैं। हर द्रेष्काण भाव के अनुसार शरीर के अंगों का विचार किया जाता है।
अगर आपका जन्म लग्न के पहले 10 अंशों में होता है, तो आपका जन्म पहले द्रेष्काण में माना जाता है। आइए जानते हैं पहले द्रेष्काण में जन्म होने पर किस भाव से किस अंग का विचार किया जाता है।
पहले द्रेष्काण में प्रभाव
- पहले भाव से सिर का विचार किया जाता है
- दूसरे भाव से दायें नेत्र का विचार किया जाता है
- तीसरे भाव से दाएँ कान का विचार किया जाता है
- चतुर्थ भाव से दाएँ नथुने का विचार किया जाता है
- पचम भाव से गले के दाएँ भाग का विचार किया जाता है
- छटे भाव से ठोड़ी के दाएँ भाग का विचार किया जाता है
- सातवें भाव से मुख का विचार किया जाता है
- आठवें भाग से ठोड़ी के बाएं भाग का विचार किया जाता है
- नवम भाव से गले के बाएं भाग का विचार किया जाता है
- दशम भाव से बाएं नथुने का विचार किया जाता है
- ग्यारवें भाव से बाएं कान का विचार किया जाता है
- बाहरवें भाव से बाएं नेत्र का विचार किया जाता है
अगर आपका जन्म 10 अंशों से 20 अंशों के बीच होता है, तो आपका जन्म दूसरे द्रेष्काण में हुआ है। जाने दूसरे द्रेष्काण में जन्म के फलस्वरूप आपको किस अंग में रोग हो सकता है।
दूसरे द्रेष्काण में प्रभाव
- पहले भाव से गले का विचार किया जाता है
- दूसरे भाव से दाएँ कंधे का विचार किया जाता है
- तीसरे भाव से दाएँ हाथ का विचार किया जाता है
- चतुर्थ भाव से दाएँ बगल का विचार किया जाता है
- पचम भाव से सीने के दाएँ भाग का विचार किया जाता है
- छटे भाव से पेट के दाएँ भाग का विचार किया जाता है
- सातवें भाव से नाभि का विचार किया जाता है
- आठवें भाग से पेट के बाएं भाग का विचार किया जाता है
- नवम भाव से छाती के बाएं भाग का विचार किया जाता है
- दशम भाव से बाएं बगल भाव का विचार किया जाता है
- ग्यारवें भाव से बाएं हाथ का विचार किया जाता है
- बाहरवें भाव से बाएं कधें का विचार किया जाता है
अगर आपका जन्म 20 अंशों से 30 अंशों के बीच होता है तो आपका जन्म तीसरे द्रेष्काण में हुआ है। दूसरे द्रेष्काण में जन्म के फलस्वरूप आपको किस अंग में रोग हो सकता है।
तीसरे द्रेष्काण में प्रभाव
- पहले भाव से बस्ति का विचार किया जाता है
- दूसरे भाव से गुप्तांग (लिंग और योनी) का विचार किया जाता है
- तीसरे भाव से गुप्तांग के दाएँ भाग का विचार किया जाता है
- चतुर्थ भाव से दाएँ ऊरू का विचार किया जाता है
- पचम भाव से दाएँ घुटने का विचार किया जाता है
- छटे भाव से जंघा के दाएँ भाग का विचार किया जाता है
- सातवें भाव से पैरों का विचार किया जाता है
- आठवें भाग से जंघा के बाएं भाग का विचार किया जाता है
- नवम भाव से बाएं घुटने का विचार किया जाता है
- दशम भाव से बाएं ऊरू का विचार किया जाता है
- ग्यारवें भाव से गुप्तांग के बाएं भाग विचार किया जाता है
- बाहरवें भाव से गुदा का विचार किया जाता है
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