Nirjala Ekadashi: बेहद खास है निर्जला एकादशी का व्रत, जानिए व्रत का महत्व, पूजा विधि और व्रत कथा
Nirjala Ekadashi: विष्णु जी की प्रिय तिथि एकादशी है। इस दिन विष्णु जी की पूजा करने के लिए विशेष दिन माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु जी का पूजा का विधान है। एक साल में 24 एकादशी आती हैं, जिसमें 12 शुक्ल पक्ष में और 12 कृष्ण पक्ष में आती हैं।
निर्जला एकादशी सभी एकादशी में सबसे बड़ी एकादशी मानी जाती है। निर्जला एकादशी के व्रत से जन्म-जन्मान्तर के पापों से मुक्ति मिलती है।
सृष्टी की उत्पत्ति करने वाले भगवान विष्णु सृष्टी के कण-कण में समाए हैं। विष्णु जी ही सृष्टी का पालन करने वाले हैं और सभी जीवों का उद्धार करने वाले हैं। विष्णु जी सबके लिए मोक्ष के कारक हैं।
तो आइए, इस ब्लॉग में निर्जला एकादशी (nirjala ekadashi) का महत्व, पूजा विधि और व्रत कथा को जानते हैं।
सबसे पहले निर्जला एकादशी व्रत के महत्व को जान लेते हैं।
एकादशी के स्वामी भगवान विष्णु जी और लक्ष्मी जी हैं। इस दिन लक्ष्मी नारयण की प्रसन्नता के लिए व्रत करने का विधान है। श्रीमद् भगवत गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है, तिथियों में मुझे एकादशी प्रिय है। इस लिए पूरे साल हर एकादशी का अलग और विशेष महत्व होता है। जिसमें निर्जला एकादशी ख़ास होती है।
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) कब है?
जून 2024 माह में इस बार 18 जून को निर्जला एकादशी व्रत पड़ रही है। साथ ही यहां जानते हैं कि आगामी एकादशी कब पड़ रही है।
निर्जला एकादशी – ज्येष्ठ माह 2024
अपरा एकादशी ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष 3 जून 2024
निर्जला एकादशी (nirjala ekadashi) शुक्ल पक्ष 18 जून 2024
निर्जला एकादशी – आषाढ़ माह 2024
योगिनी एकादशी कृष्ण पक्ष 2 जुलाई 2024
हरिशयनी एकादशी शुक्ल पक्ष 17 जुलाई 2024
निर्जला एकादशी – श्रवण माह 2024
कामिका एकादशी कृष्ण पक्ष 31 जुलाई 2024
पवित्रा एकादशी शुक्ल पक्ष 16 अगस्त 2024
निर्जला एकादशी – भाद्रपद माह 2024
अजा एकादशी कृष्ण पक्ष 29 अगस्त 2024
पद्मा एकादशी शुक्ल पक्ष 14 सितम्बर 2024
निर्जला एकादशी – अश्विन माह 2024
इंदिरा एकादशी कृष्ण पक्ष 28 सितम्बर 2024
पापांकुशा एकादशी शुक्ल पक्ष 14अक्तूबर 2024
निर्जला एकादशी – कार्तिक माह 2024
रमा एकादशी कृष्ण पक्ष 28 अक्तूबर 2024
हरिप्रबोधनी एकादशी (देव उठनी) 12 नवम्बर 2024
निर्जला एकादशी – मार्गशीर्ष माह 2024
उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष 26 नवम्बर 2024
मोक्षदा एकादशी शुक्ल पक्ष 11 दिसम्बर 2024
निर्जला एकादशी – पौष माह 2024
सफला एकादशी पौष कृष्ण पक्ष 26 दिसम्बर 2024
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पूजा का नाम | मंदिर (स्थान) |
ऋण मुक्ति पूजा | ऋण मुक्तेश्वर महादेव मंदिर (उज्जैन) |
माता कामाख्या महापूजा | माता कामाख्या शक्तिपीठ (गुवाहाटी) |
शनि साढे़ साती | शनि शिंगणापुर देवस्थानम,महाराष्ट्र |
लक्ष्मी कुबेर महायज्ञ और रुद्राभिषेक | जागेश्वर कुबेर मंदिर ,अल्मोड़ा, उत्तराखंड |
राहु ग्रह शांति पूजा | जरकुटिनाथेश्वर महादेव मंदिर ,प्रयागराज |
एकादशी व्रत (Ekadashi vrat) के आहार
शास्त्रों के नियम अनुसार व्रत रखने वाले व्यक्ति को एकादशी के दिन, कुछ वस्तुओं और मसालों का प्रयोग करते हुए, अपने व्रत का भोजन भी कर सकते हैं जैसे-
- ताजे फल
- सूखे मेवे
- चीनी
- कुट्टू का आटा
- नारियल पानी वाला
- जैतून का तेल
- गाय का दूध
- अदरक
- काली मिर्च
- सेंधा नमक
- आलू
- साबूत दाना
निर्जला एकादशी व्रत का भोजन पूर्णत (शाकाहारी) फलाहारी होना चाहिए। कुछ व्यक्ति यह व्रत बिना पानी पिए भी रखते हैं जिसे निर्जला एकादशी के रूप में भी जाना जाता है।
एकादशी व्रत और पूजा विधि (Ekadashi Vrat Puja Vidhi)
- एकादशी के दिन सुबह सूर्य उदय से पहले उठें।
- उठ कर स्नान कर के साफ़ वस्त्र धारण करें।
- साफ़ आसन पर पूर्व की ओर मुख कर के बैठें।
- गणेश जी का ध्यान कर के सभी देवताओं को प्रणाम करें।
- फिर विष्णु भगवान जी का ध्यान और पूजन करके एकादशी की पूजा कथा करें।
- विष्णु जी के मन्त्रों का जाप करें।
एकादशी पूजा सामग्री (ekadashi puja samagri list)
- गंगाजल
- चौकी
- पीला कपड़ा
- आम के पत्ते
- कुमकुम
- फूल
- मिठाई
- अक्षत
- पंचमेवा
- धूप
- दीप
- फल
- भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा
विष्णु भगवान जी की प्रतिमा को दूध, दही, शहद, घी और शक्कर से स्नान करवाकर, फल, फूल, मिठाई अर्पण कर के, धूप दीप दिखाकर पूजा करें। एकादशी की कथा सुने या पढ़ें। साथ ही विष्णु भगवान जी के मन्त्रों का जाप करें।
निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi vrat katha)
जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ: धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया था।
तब युधिष्ठिर ने कहा: जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिये।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे राजन्! इसका वर्णन परम धर्मात्मा सत्यवती नन्दन व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान हैं।
तब वेदव्यास जी कहने लगे : कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों पक्षों की एकादशी में अन्न खाना वर्जित है। द्वादशी के दिन स्नान करके पवित्र हो और फूलों से भगवान केशव की पूजा करे। फिर नित्य कर्म समाप्त होने के पश्चात् पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करे।
यह सुनकर भीमसेन बोले: परम बुद्धिमान पितामह! मेरी उत्तम बात सुनिये। राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव, ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि भीमसेन एकादशी को तुम भी न खाया करो परन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जायेगी।
भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा: यदि तुम नरक को दूषित समझते हो और तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और तो दोनों पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन नहीं करना चाहिए।
भीमसेन बोले महाबुद्धिमान पितामह! मैं आपके सामने सच कहता हूँ। मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता, तो फिर उपवास करके मैं कैसे रह सकता हूँ। मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है।
इसलिए महामुनि! मैं पूरे वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ। जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये। मैं उसका यथोचित रूप से पालन करुँगा।
व्यासजी ने कहा: भीम! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो। केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान पुरुष मुख में न डाले, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है।
एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है। तदनन्तर द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करें। इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करे।
वर्षभर में जितनी एकादशियाँ होती हैं, उन सबका फल निर्जला एकादशी के पालन मात्र से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी कोई सन्देह नहीं है। शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है।
एकादशी व्रत करने वाले पुरुष के पास विशालकाय, विकराल आकृति और काले रंगवाले दण्ड पाशधारी भयंकर यमदूत नहीं जाते। अंतकाल में पीताम्बरधारी, सौम्य स्वभाव वाले, हाथ में सुदर्शन धारण करने वाले और मन के समान वेगशाली विष्णुदूत आख़िर इस वैष्णव पुरुष को भगवान विष्णु के धाम में ले जाते हैं।
अत: निर्जला एकादशी को पूर्ण यत्न करके उपवास और श्रीहरि का पूजन करो। स्त्री हो या पुरुष, यदि उसने मेरु पर्वत के बराबर भी महान पाप किया हो तो वह सब इस एकादशी व्रत के प्रभाव से भस्म हो जाता है। जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है। उसे एक-एक प्रहर में कोटि-कोटि स्वर्णमुद्रा दान करने का फल प्राप्त होता सुना गया है।
मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन स्नान, दान, जप, होम आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है, यह भगवान श्रीकृष्ण का कथन है। निर्जला एकादशी को विधिपूर्वक उत्तम रीति से उपवास करके मानव वैष्णवपद को प्राप्त कर लेता है। जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है, वह पाप का भोजन करता है। इस लोक में वह चाण्डाल के समान है और मरने पर दुर्गति को प्राप्त होता है।
जो ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में एकादशी को उपवास करके दान करेंगे, वे परम पद को प्राप्त होंगे। जिन्होंने एकादशी को उपवास किया है, वे ब्रह्महत्यारे, शराबी, चोर तथा गुरुद्रोही होने पर भी सब पातकों से मुक्त हो जाते हैं।
कुन्तीनन्दन! निर्जला एकादशी के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं, उन्हें सुनो: उस दिन जल में शयन करने वाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु का दान करना चाहिए अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृतमयी धेनु का दान उचित है।…
पर्याप्त दक्षिणा और भाँति-भाँति के मिष्ठानों द्वारा यत्नपूर्वक ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए। ऐसा करने से ब्राह्मण अवश्य संतुष्ट होते हैं और उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं। जिन्होंने शम, दम, और दान में प्रवृत हो श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है।…
निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए। जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है। चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इसके श्रवण से भी प्राप्त होता है।…
पहले दन्तधावन करके यह नियम लेना चाहिए कि मैं भगवान केशव की प्रसन्नता के लिए एकादशी को निराहार रहकर आचमन के सिवा दूसरे जल का भी त्याग करुँगा। द्वादशी को देवेश्वर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्त्र से विधिपूर्वक पूजन करके जल के घड़े के दान का संकल्प करते हुए निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करे।
संसारसागर से तारने वाले हे देव ह्रषीकेश! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइये।
भीमसेन! ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए। उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है।…
तत्पश्चात् द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे। जो इस प्रकार पूर्ण रूप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है। यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया। तबसे यह लोक में पाण्डव द्वादशी के नाम से विख्यात हुई।
ज्येष्ठ शुक्लपक्ष एकादशी के ही दिन भगवान श्री कृष्ण ने देवी रुक्मणी का हरण किया था अतः यह एकादशी रुक्मणी-हरण एकादशी के नाम से भी जानी जाती है।