Somvar Vrat: सोमवार व्रत क्या है? जानिए पूजा विधि, महत्व और व्रत कथा
Somvar Vrat: सनातन धर्म में प्रत्येक दिन का एक विशेष महत्व है। सोमवार का दिन भगवान शंकर को अत्यंत प्रिय है इसलिए भगवान शंकर की कृपा प्राप्ति के लिए सोमवार का व्रत किया जाता है।
इसी तरह मंगलवार का दिन भगवान हनुमान, बुधवार का दिन गणेश, गुरुवार का दिन विष्णु, शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी व माता संतोषी, शनिवार का दिन शनिदेव और रविवार का दिन भगवान भास्कर को समर्पित है।
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पूजा का नाम | मंदिर (स्थान) |
ऋण मुक्ति पूजा | ऋण मुक्तेश्वर महादेव मंदिर (उज्जैन) |
माता कामाख्या महापूजा | माता कामाख्या शक्तिपीठ (गुवाहाटी) |
शनि साढे़ साती | शनि शिंगणापुर देवस्थानम, महाराष्ट्र |
लक्ष्मी कुबेर महायज्ञ और रुद्राभिषेक | जागेश्वर कुबेर मंदिर, अल्मोड़ा, उत्तराखंड |
राहु ग्रह शांति पूजा | जरकुटिनाथेश्वर महादेव मंदिर, प्रयागराज |
आज हम आपको इस ब्लॉग में सोमवार व्रत का महत्व, पूजा विधि, नियम और व्रत कथा की जानकारी दे रहे हैं, जिससे आप इस व्रत को विधि पूर्वक करके भगवान शिव की कृपा पा सकते हैं।
आइए, सबसे पहले सोमवार व्रत का महत्व जान लेते हैं।
सोमवार व्रत का महत्व (Importance of Somvar Vrat)
सोमवार का व्रत (Somvar Ka Vrat) मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित है। मान्यता है कि सोमवार का व्रत करने से न केवल भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है बल्कि माता पार्वती भी प्रसन्न होकर अपनी कृपा की वर्षा करती हैं।
सोमवार का दिन ज्योतिषशास्त्र में चंद्र ग्रह का माना गया है इस कारण सोमवार का व्रत करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है और उससे संबंधित कष्टों का शमन होता है।
मान्यता है कि, यदि कोई भक्त सोमवार का व्रत (Somvar Ka Vrat) रखता है तो भगवान शिव उसकी सभी मनोकामना अवश्य पूर्ण करते हैं। सोमवार के व्रत करने से मानसिक रोगों में शांति प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए भी सोमवार का व्रत किया जाता है।
सोलह सोमवार व्रत का महत्व (Importance of 16 Somvar Vrat)
किसी विशेष कामना के लिए 16 सोमवार का व्रत (16 Somvar Ka Vrat) करने का विधान है। इसके फलस्वरूप कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और विवाहितों के जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। संतान की कामना करने वाली स्त्रियों के लिए 16 सोमवार का व्रत चमत्कारिक रूप से फल देने वाला होता है।
सोमवार व्रत के प्रकार (Types of Somvar Vrat)
सोमवार के व्रत मुख्य रूप से 3 प्रकार के होते हैं।
- सामान्य सोमवार व्रत
- सोम प्रदोष व्रत
- सोलह सोमवार व्रत
ये तीनों व्रत भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए किए जाते हैं। इन तीनों व्रत की पूजा विधि भी समान होती है।
सोमवार व्रत की पूजा विधि (Somwar Vrat Puja Vidhi)
- सबसे पहले ब्रह्ममुहूर्त में उठें।
- स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान शिवजी का ध्यान करें।
- किसी मंदिर या शिवालय में जाकर शिव जी को जल और बेल पत्र चढ़ाएं।
- भांग और धतूरा विशेष रूप से चढ़ाएं।
- साथ ही विधि-विधान से शिव-गौरी की पूजा करें।
- अपनी मनोकामना को मन में धारण करके व्रत का संकल्प लें।
- यदि आप घर पर ही पूजा कर रहे हैं, तो भगवान शिव और मां पार्वती की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना करें।
- इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का चंदन से तिलक करें,
- उन्हें रोली, अक्षत अर्पित करें और पान सुपारी चढ़ाएं।
- इसके पश्चात फल फूल आदि अर्पण करके मीठे का भोग लगाएं।
- भगवान शिव को मालपुए पसंद है अतः आप मालपुए बनाकर इसका भोग भगवान शिव को अर्पित कर सकते हैं।
- पूजा के उपरांत भगवान शिव और मां पार्वती जी की आरती करें
- सोमवार के दिन मुख्य रूप से ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करना चाहिए।
सोमवार व्रत की पूजन सामग्री (Somvar Vrat Pujan Samagri)
शिव एवं पार्वती जी की मूर्ति, चंद्र देव की मूर्ति अथवा चित्र,चौकी या लकड़ी का पटरा, अक्षत, ऋतुफल, चंदन, मौली, कपूर-रूई, पंचामृत, गंगाजल, लोटा, नैवेद्य,आरती थाली इत्यादि।
सोमवार व्रत कथा (Somvar Vrat Katha)
एक समय की बात है, किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी इस कारण वह बहुत दुखी था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत (Somvar Vrat) रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था।
उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया। पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि ‘हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है।’ लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई।
माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी। माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था। उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा।
कुछ समय के बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराना। जहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना।
दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े। रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था। लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची।
साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया। लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी।
उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।’
जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया।
जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ।
शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती ने भगवान से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें।
जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया। अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है। लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे।
माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया। शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया।
इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत (Somvar Vrat) करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है।
ऐसे ही सनातन धर्म के त्योहार, व्रत कथा और पूजा विधि जानने के लिए वामा ब्लॉग पढ़ें।