Budhwar ke Upay: गणेश जी को प्रसन्न करने का उपाय व मंत्र
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
Budhwar ke Upay: देवों के देव भगवान गणेश जी को सनातन धर्म में सबसे प्रमुख देव माना जाता है। गणेश जी की पूजा के लिए बुधवार का दिन सबसे अधिक शुभ माना जाता है। इस दिन गणेश जी की उपासना और विशेष अनुष्ठान करने से भगवान अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
सनातन धर्म में किसी धार्मिक अनुष्ठान में गणेश जी की पूजा सबसे पहले होती है। अगर आप भी भगवान गणेश जी के अन्यन्य भक्त हैं और भगवान गणेश जी का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो प्रत्येक बुधवार को गणेश जी के मंत्रों का पाठ करें।
तो आइए, VAMA के ज्योतिष आचार्य डॉ देव से जानते हैं, गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए क्या करें?
गणेश जी को प्रसन्न करने के उपाय
- गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए लड्डू का भोग लगया जाता है ऐसा करने से आपके जीवन में उन्नति आएगी।
- गणेश जी को पेडे का भोग भी पंसद है इस लिए पेडे का भोग लगाया जाता है ऐसा करने से आपके घर में समृद्धि आएगी।
- बूंदी के लड्डू में लौंग डालकर विशेष कमाना सिद्धि के लिए भोग लगाया जाता है ऐसा करने से आपके कर्यों की बाधा दूर होती हैं।
- गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए हाथी को खाने की वस्तु भेंट की जाती हैं ऐसा करने से आपके रोग शान्त होते हैं।
- गणपति अथर्वशीर्ष के द्वारा गणेशजी का अभिषेक करें, ऐसा करने से विचारों पर नियंत्रण आता है, मन में भटकाव नहीं आते हैं।
बुधवार का उपाय (Budhwar ke Upay)
- बुधवार के दिन गणेश जी को हरी (दूर्वा) घास अर्पण करें, ऐसा करने से विद्यार्थियों को लाभ होता है।
- बुधवार के दिन गणेश जी को जल में सफ़ेद तिल मिला कर जल अर्पण करें, ऐसा करने से आपके घर के झगड़े शान्त होते हैं।
- गणेश जी को हरे रंग का वस्त्र भेंट करें, ऐसा करने से युवाओं को रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं।
- बुधवार के दिन जल में हरी दूर्वा डालकर गणेशजी का अभिषेक करें, ऐसा करने से आपके मानसिक रोग शान्त होते हैं।
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पूजा का नाम | मंदिर (स्थान) |
ऋण मुक्ति पूजा | ऋण मुक्तेश्वर महादेव मंदिर (उज्जैन) |
माता कामाख्या महापूजा | माता कामाख्या शक्तिपीठ (गुवाहाटी) |
शनि साढे़ साती | शनि शिंगणापुर देवस्थानम,महाराष्ट्र |
लक्ष्मी कुबेर महायज्ञ और रुद्राभिषेक | जागेश्वर कुबेर मंदिर ,अल्मोड़ा, उत्तराखंड |
राहु ग्रह शांति पूजा | जरकुटिनाथेश्वर महादेव मंदिर ,प्रयागराज |
गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ सर्व प्रथम करना चाहिए
श्री गणपति अथर्वशीर्ष
ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।।
त्वमेव केवलं कर्त्ताऽसि। त्वमेव केवलं धर्तासि।।1।।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि। त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।।
त्वं साक्षादत्मासि नित्यम्। ऋतं वच्मि।। सत्यं वच्मि।।2।।
अव त्वं मां।। अव वक्तारं।।
अव श्रोतारं। अवदातारं।।
अव धातारम अवानूचानमवशिष्यं।।
अव पश्चातात्।। अवं पुरस्तात्।।
अवोत्तरातात्।। अव दक्षिणात्तात्।।
अव चोर्ध्वात्तात।। अवाधरात्तात।।
सर्वतो मां पाहिपाहि समंतात्।।3।।
त्वं वाङग्मयचस्त्वं चिन्मय। त्वं वाङग्मयचस्त्वं ब्रह्ममय:।।
त्वं सच्चिदानंदा द्वितियोऽसि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।4।
सर्व जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्व जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।। सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति।।
त्वं भूमिरापोनलोऽनिलो नभ:।। त्वं चत्वारिवाक्पदानी।।5।।
त्वं गुणयत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत: त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं। त्वं शक्ति त्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम् त्वं शक्तित्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं।
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव: स्वरोम्।।6।।
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।।
अनुस्वार: परतर:।। अर्धेन्दुलसितं।।
तारेण ऋद्धं।। एतत्तव मनुस्वरूपं।।
गकार: पूर्व रूपं अकारो मध्यरूपं। अनुस्वारश्चान्त्य रूपं।।
बिन्दुरूत्तर रूपं।।नाद: संधानं।। संहिता संधि: सैषा गणेश विद्या।।
गणक ऋषि: निचृद्रायत्रीछंद:।। गणपति देवता।।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।
एकदंताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नोदंती प्रचोद्यात।।
एकदंत चतुर्हस्तं पारामंकुशधारिणम्।।
रदं च वरदं च हस्तै र्विभ्राणं मूषक ध्वजम्।।
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।।
रक्त गंधाऽनुलिप्तागं रक्तपुष्पै सुपूजितम्।।8।।
भक्तानुकंपिन देवं जगत्कारणम्च्युतम्।।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृतै: पुरुषात्परम।।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनांवर:।। 9।।
नमो व्रातपतये नमो गणपतये।। नम: प्रथमपत्तये।।
नमस्तेऽस्तु लंबोदारायैकदंताय विघ्ननाशिने शिव सुताय।
श्री वरदमूर्तये नमो नम:।।10।।
श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र (Shri Sankat Nashan Ganesh Stotra)
॥ श्री गणेशायनमः ॥
नारद उवाच –
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम ।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये ॥1॥
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम ।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम ॥2॥
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ॥3॥
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम ॥4॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर: ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो ॥5॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ॥7॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: ॥8॥
॥ इति श्रीनारदपुराणे संकष्टनाशनं गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
क्यों कहा जाता है गणेश जी को देवों का देव
देवो के देव गणेश जी को सबसे पहले पूजा जाता है। एक पौराणिक कथा है। एक बार गणेश जी और कार्तिकेय में विवाद हुआ की दोनों में कौन बड़ा है। इस विवाद को लेकर वो दोनों भगवान शिव जी के पास गये।
उन्होंने उनसे समस्या का समाधान चाहा, तो भगवान शिव सोचने लगे की दोनों ही उनके लिए पुत्र हैं। तो किसी एक को बड़ा कहना ठीक नही। शिव जी ने एक युक्ति लगाई और दोनों के सामने एक परीक्षा रख दी। जो पृथ्वी की परिक्रमा पहले कर के वापिस आएगा वो श्रेष्ठ माना जाएगा।
कार्तिकेय जी अपने वाहन मोर पर बैठे और परिक्रमा करने चले गए। गणेश जी का वाहन चूहा होने के कारण, वो सोचने लगे। कि मैं कैसे जीत सकता हूँ। उन्होंने बिना कहीं जाये अपने माता पिता भगवान शिव और माता पार्वती जी के चारों और परिक्रमा लगाई और वहां पर ही खड़े हो गए। सब सोचने लगे की गणेश जी गए क्यों नहीं हैं।
कार्तिकेय जी के आने के बाद जब उन्होंने कहा की वो परिक्रमा कर आए हैं। परन्तु सबने कहा की गणेश जी तो गये ही नही हैं। तब गणेश जी ने फिर ऐसी बात कही जिसने सबके मन को मोह लिया। उन्होंने शास्त्र सम्मत बात कही थी। उनका कहना था, कि मेरे माता पिता के चरणों में ही पूरी सृष्टी है। उन्हें कहीं और जाने की जरुरत ही नही है।
तब उनके इन विचारों से सब बहुत प्रभावित हुए और उन्हें बहुत से वरदान दिए। जिसमे सबसे बड़ा वरदान ये मिला की, आपकी पूजा सब से पहले होगी।
तब से गणेश जी को ये वरदान प्राप्त हुआ कि ये सबसे पहले देव होंगे। हर पूजा कार्य में उनकी पूजा सबसे पहले होगी। उनको सबकी मनोकामना पूरी करने का वरदान भी मिला।
ऐसे ही सनातन धर्म की महत्वपूर्ण की जानकारी के लिए वामा ब्लॉग पढ़ें।