Karj Mukti Ke Upay: लक्ष्मी की कृपा और कर्ज से मुक्ति के लिए क्या करें? जानिए, ज्योतिषी उपाय

कर्ज, रोग या किसी भी प्रकार के आयोजन में धन की जरूरत होती है। ऐसे में महालक्ष्मी की कृपा अगर आप पर हो जाए तो जीवन के बहुत से कष्टों से छुटकारा पाया जा सकता है।

Karj Mukti Ke Upay: आज की ऐश्वर्य युक्त जिंदगी में हर किसी को धन की जरुरत है। जीवन की हर आवश्यकता को पूरा करने के लिए धन की जरूरत होती है।

कभी कभी कुछ लोग धन के अभाव में कार्य कर लेते हैं, परन्तु फिर उन्हें क़र्ज़ का सामना करना पड़ता है। व्यापार में बढ़ोतरी के लिए हर कोई प्रयास करता है, कि धन की वृद्धि हो सके। उसके लिए अनेक प्रकार के उपाय भी किये जाते हैं।

तो आइए जानते हैं VAMA के ज्योतिष आचार्य देव से जानते हैं क्या करें कि महालक्ष्मी की कृपा बनी रहे। 

जैसा कि आप सभी जानते हैं कर्ज में, रोग में या किसी भी प्रकार के आयोजन में धन की जरूरत होती है। ऐसे में महालक्ष्मी की कृपा अगर आप पर हो जाए तो जीवन के बहुत से कष्टों से छुटकारा पाया जा सकता है। 

धन से जीवन के हर कष्ट का निवारण नहीं है, परन्तु जीवन के बहुत से कष्टों का निवारण हो सकता है। क्या करें कि जीवन में लक्ष्मी की कमी ना रहे। 

ऐसे करें महालक्ष्मी की पूजा (Karj Mukti Ke Upay)

भगवान की पूजा करने के लिए हर दिन शुभ होता है। परन्तु विशेष पूजा के लिए दिन और समय भी विशेष होता है। महालक्ष्मी की पूजा के लिए शुक्रवार का दिन और शाम का समय बहुत शुभ रहता है। द्वादशी, अष्टमी, सप्तमी, पंचमी और पूर्णिमा के दिन पूजा करना बहुत शुभ होता है।  

लक्ष्मी माता की कृपा प्राप्त करने के लिए उपाय के रूप में भेंट दी जाती हैं, तथा मन्त्र पाठ और स्तोत्र पाठ के माध्यम से माता लक्ष्मी को प्रसन्न किया जाता है। 

ऐसे ही स्तोत्र यहां दिया जा रहा है।   

श्री गणेशाय नमः॥

नमस्तेस्तू महामाये श्रीपिठे सूरपुजिते ।

शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥१॥

नमस्ते गरूडारूढे कोलासूर भयंकरी ।

सर्व पाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥२॥

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी ।

सर्व दुःख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥३॥

सिद्धीबुद्धूीप्रदे देवी भुक्तिमुक्ति प्रदायिनी ।

मंत्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ४ ॥

आद्यंतरहिते देवी आद्यशक्ती महेश्वरी ।

योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ५ ॥

स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ती महोदरे ।

महापाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ६ ॥

पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्हस्वरूपिणी ।

परमेशि जगन्मातर्र महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥७॥

श्वेतांबरधरे देवी नानालंकार भूषिते ।

जगत्स्थिते जगन्मार्त महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥८॥

महालक्ष्म्यष्टकस्तोत्रं यः पठेत् भक्तिमान्नरः ।

सर्वसिद्धीमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥९॥

एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनं ।

द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्य समन्वितः ॥१०॥

त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रूविनाशनं ।

महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥११॥

॥ इतिंद्रकृत श्रीमहालक्ष्म्यष्टकस्तवः संपूर्णः ॥

– अथ श्री इंद्रकृत श्री महालक्ष्मी अष्टक

महा लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए, कुछ उपाय के रूप में और भी स्तोत्र पाठ किया जा सकता है, श्री सूक्त के पाठ करने का विशेष महत्व होता है, इसका पाठ करने से पुराने से पुराने क़र्ज़ से मुक्ति मिलती है। 

श्री सूक्त

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥1॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥2॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् ।

श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥3॥

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।

पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥4॥

प्रभासां यशसा लोके देवजुष्टामुदाराम् ।

पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥5॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।

तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥6॥

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।

प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥7॥

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।

अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद गृहात् ॥8॥

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।

ईश्वरींग् सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥9॥

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।

पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥10॥

कर्दमेन प्रजाभूता सम्भव कर्दम ।

श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥11॥

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस गृहे ।

नि च देवी मातरं श्रियं वासय कुले ॥12॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥13॥

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।

सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥14॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पूरुषानहम् ॥15॥

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।

सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥16॥

पद्मानने पद्म ऊरु पद्माक्षी पद्मासम्भवे ।

त्वं मां भजस्व पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥17॥

अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने ।

धनं मे जुषताम् देवी सर्वकामांश्च देहि मे ॥18॥

पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम् ।

प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु माम् ॥19॥

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः ।

धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमश्नुते ॥20॥

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा ।

सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु ॥21॥

न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभा मतिः ।

भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा ॥22॥

वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः ।

रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि ॥23॥

पद्मप्रिये पद्म पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि ।

विश्वप्रिये विष्णु मनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥24॥

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी ।

गम्भीरा वर्तनाभिः स्तनभर नमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया ॥25॥

लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैस्स्नापिता हेमकुम्भैः ।

नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥26॥

लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राजतनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीम् ।

दासीभूतसमस्त देव वनितां लोकैक दीपांकुराम् ॥27॥

श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्ध विभव ब्रह्मेन्द्रगङ्गाधराम् ।

त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥28॥

सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीस्सरस्वती ।

श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा ॥29॥

वरांकुशौ पाशमभीतिमुद्रां करैर्वहन्तीं कमलासनस्थाम् ।

बालार्क कोटि प्रतिभां त्रिणेत्रां भजेहमाद्यां जगदीस्वरीं त्वाम् ॥30॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।

शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥31॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे ।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥32॥

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।

विष्णोः प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥33॥

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नीं च धीमहि ।

तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥34॥

श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् पवमानं महियते ।

धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥35॥

ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः ।

भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥36॥

य एवं वेद ॐ महादेव्यै च विष्णुपत्नीं च धीमहि ।

तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥37॥

महालक्ष्मी के निमित्त हवन करें

महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए हवन में कुछ ऐसी समिधा और सामग्री प्रयोग करने का विधान हैं, जिससे माता की असीम कृपा की प्राप्ति होती है। शास्त्र के अनुसार माता को ऐसी विशेष वस्तु भेंट रूप में दी जाती हैं, जिससे माता की कृपा आपको प्राप्त होती है। जिससे क़र्ज़ से छुटकारा मिलता है। रुका हुआ धन वापस प्राप्त होता है।

पूजन सामाग्री

  • कमल गट्टा
  • खील
  • केसर युक्त खीर
  • केसर
  • गुग्गल
  • भूर्ज पत्र( भोज पत्र)
  • लोहबान
  • मखाना
  • काजू

महालक्ष्मी को विधि अनुसार पूजन हवन में जब इन उपर दी सामग्री की आहुति दी जाती है। ऐसा करने से माता की असीम कृपा की प्राप्ति होती है। आपके घर में धन धान्य की वृद्धि होती है।

ज्योतिष के माध्यम से आप अपने जीवन को आसान बना सकते हैं। किसी भी प्रकार की समस्या के लिए आप VAMA के ज्योतिषाचार्य से बात कर सकते हैं।